औरङ्गजेब छियालीस वर्ष राजत्व करनेके बाद ८९ वर्षकी नीच प्रवृत्ति होती है। मनमें लोभ पाया। लोभ हो उम्रमे १७०७ १०के फरवरी मास इन्होंने इहलोक पाप है। उन लोगोंने निद्रावस्थामें ही जगत्सिह परित्याग किया। और उनके अनुचरों को मार डाला, परन्तु पापका धन अाज भी जिन औरङ्गजेबका नाम सुनकर मुसल-' भोग न कर सके। औरङ्गजेब और नसरतने जाकर मानौका कलेजा कांप उठता और हिन्दुओंके नेत्रों से उन डाकुओं को वध किया। जगत्सिहके खजाने में अश्रुचलने लगता, सैकड़ों वर्ष बीते उनका निस्पन्द सोना, चांदी, हीरा, मोती सब मिलाकर तीस लाख प्रेतशरीर इल्लोराकी अधित्यकामें सो रहा है। रूण्येकी सम्पत्ति थी। उस सम्पत्तिको ले जाकर शाहजहांके दुश्चरित्रके कारण सात वर्षको उमरसे ही औरङ्गजेबने पिताके पादपद्मपर रख दिया। ये, इनके बड़े भाई दारा और शुजा और छोटे भाई संसारमें विजयका डा बजा। औरङ्गजेबके मुराद अपने पितामह जहांगीरके पास कैद थे। यदि युद्ध में पदार्पण करते ही सौभाग्यलक्ष्मो पताका लेकर शाहजहां पुनर्वार अपने पिताके साथ असव्यवहार आगे आगे चलती थी। उस समय उजबक पोर करते, तो इन लोगोंके प्राण कभी न बचते। जहां ईरानी प्रसिद्ध रण पण्डित थे। संग्राममें औरङ्गजेबने गौरके मृत्य अनन्तर दश वर्षको उसमें औरङ्गजेब उन लोगोंको भी परास्त किया। पुत्रका असाधारण पिताके निकट पागरे लौट आये। साहस और रणनैपुण्य देखकर शाहजहांके आह्वादको १६३३ ई०को बुदेलोंके राजा जगतसिंह और सीमा न रही। परन्तु दारा ज्येष्ठ पुत्र थे। ज्येष्ठ पुत्र हो शाहजहांके साथ विरोध उठ खड़ा हुआ। उस समय राज्यका अधिकारी होता है। अतएव औरङ्गजब यह औरङ्गजबकी उम्र चौदह वर्षसे अधिक न थी। जिस बात मनही मन समझते थे-सम्राटदाराको अतिक्रम खूनको प्याससे भूखे सिंहको तरह यह सर्वदा घूमते ! कर और किसीको राजपदपर अभिषिक्त न कर फिरते रहे, यहां तक, कि अपने भाइयों को भी नहीं सकेंगे। इसके सिवा दारापर भो उनका आन्तरिक छोड़ा, उस दारुण पशुवत्तिका सूत्रपात यहीं हुआ। प्रेम था। इसलिये औरङ्गजेबने यहो स्थिर किया, औरङ्गजेब मालवेके सूबेदार नसरतके साथ बुदेलखण्ड विना विशेष कौशल किये राजसिंहासन मिलना गये। एकादिक्रमसे दो वर्ष युद्ध हुआ। जगत्सि हने । कठिन है। इससे लड़कपनसे हो ये कपट धार्मिक देखा,-अब रक्षा नहौं,दिन दिन सैन्चक्षय हुआ जाता बनते रहे। परन्तु दारासे इनका विद्देष दिन दिन है। अन्त में घोड़ेपर सवार हो कई अनुचरोंके साथ बढ़ने लगा। निकटका रहना चक्षुशूल होता है, वे भागकर नर्मदाके उस पार किसी जङ्गलमें जा छिपे। इसलिये सामान्य बहाना पाकर ये पिताको आन्नासे. घोड़की पीठपर वे लोग बहुत दूर निकल आये, दाक्षिणात्यके शासनकर्ता होकर चले गये। यहां न तो कुछ खाने और न सोने पाये थे; इसलिये घोड़ोंको गोलकुण्डा राज्यके सेनानायक मौरजुमला अपने पड़ोंमें बांध सबके घुम धलमें लेट गये। नौंद आ गई,! स्वामीको परित्याग कर औरङ्गजेबसे आ मिले। उस उस बनमें चारो ओर असभ्य प्रादमी थे। वे झोपड़े में समय हैदराबाद गोलकुण्डाके राजाके अधिकारमें था। रहते, वनमें आखेट करते, पशुचम्म पहनते, वनके फल मीरजुमलाको साथ लेकर औरङ्गजेबने हैदराबाद मूल और मद्य मांस खाते, राजभोग, राजैश्वर्य लट लिया। शोघ्र ही गोलकुण्डा अधिकार करने को जानते न थे। वनमें घोड़ोंकी हिनहिनाहट सुनकर भी इच्छा थी, परन्तु इसवार इनकी चिरकालको वे लोग देखने आये। पाकर देखा,-पेड़ोंमें कई घोड़े दुरभिसन्धिके पूर्ण होने का अवसर न पाया। बंधे हैं, उनकी पीठपर वेशकीमतो जड़ाऊ जोन ___शाहजहां बीमार हुए। जीवन संकटापन्न हो, पड़े हैं और कई सुपुरुष भूमिपर सो रहे हैं। उनके गया। पीछे कहीं राज्यमें अनिष्ट न हो, इसलिये सर्वाक भी मणिमाणिक्यसे लदे थे। नीच लोगोंके | दारा सम्राट्का कार्य निर्वाह करने लगे।
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/५६७
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