औपजानुक–घोपपातिक ५६२ औपच्छन्दसिक वृत्त बनता है। ३ पुष्पिताग्रा नामक नयनाय हितम् । २ उपनयनसाधक, जनेअसे छन्द। पुत्थिताया देखो। सरोकार रखनेवाला। "पुष्पिताधाभिध कैचिदीपच्छन्दसिक' विदुः।" (वृत्तरबाकर) । औपनासिक (स' त्रि.) उपनास भवः, उपनास- औपजानुक (सं० वि०) उपजानु जानुममोपे भवः, ठज। नामिकाके समीप उत्पन्न, नाकके पास निकलनेवाला। उपजानु-ठक । जानुका समीपवर्ती, घुटनों के पास या अपर रहनेवाला। पोपनिधिक (सं० लो०) उपनिधि स्वार्थ ठत्र । १ अपरके निकट अप्रकाशित भावसे रखा जानेवाला औपतखिनि (सं० पु०) उपतखिनस्थापत्यं पुमान्, द्रव्य, धरोहर। २ भोग करने को प्रोतिपूर्वक दिया सपतस्विन-इए । उपतखिनकै पत्र, राम नामक जानेवाला द्रव्य, काममें लाने के लिये प्यारसे दी जाने- एक ऋषि। वाली चीज़। (त्रि.) ३ उपनिधि-सम्बन्धीय, औपदेशिक (संत्रि०) उपदेशन जीवति, उपदेश- धरोहरसे सरोकार रखनेवाला। ठब। चैतमादिभ्यो जीवति। पा ।१२। १ उपदेशोपजीवो, औपनिषत्क (सं.वि.) उपनिषदा जीवति, उप- नसीहतसे जिन्दगी बसर करनेवाला। २ उपदेशानुसार निषद्-ठक । उपनिषदुक्त उपदेयके अनुसार जीविका प्राप्त, नसौहतसे मिला हुआ। निर्वाह करनेवाला। जौपष्टविक (सं० वि०) उपद्रवमधिकृत्य कृतः, उपद्रव औपनिषद (स. पु०) उपनिषद-अण् । १ उप- ठक् । उपद्रव-सम्बन्धीय,आसारसे सरोकार रखनेवाला।। निषद मात्रका वेद्य परमात्मा। २ उपनिषदके ___अथात प्रौपद्रविकमध्याय व्याख्यास्यामः ।" (सुश्रुत ) उपदेशानुसार आचरण करनेवाला। (वि) ३ ब्रह्म- चौपष्टय (सं• पु०) उपद्रष्ट स्वार्थ त्या । प्रतिपादक। ५ उपनिषद द्वारा प्रतिपादित । ३ उप- १ परुषमेध यज्ञीय देवविशेष। (क्लो०)२ साक्षी निषदको व्याख्या करनेवाला। . रहनेको स्थिति, जिस हालतमें गवाह रहें । ३ निरो-औपनिषदिक, औपनिषद देखो। क्षण, देख-भाल। . प्रौपनौविक (स.त्रि.) उपनोवि नौविसमोपे भवः, चौपधयं (स० वि०) उपधर्मस्य इदम्, उपधर्म- उपनौवि-ठक्। नोविका समीपवर्ती, नारेके पास ष्यत्र । १ उपधर्म-सम्बन्धीय, इलहाद या कुफ के | रहनेवाला, जो कमरके नजदीक पड़ता हो। मुताल्लिक.। (क्लो) स्वार्थे व्यञ् । २ उपधर्म, औपन्यासिक (स• वि०) १ उपन्यास-सम्बन्धीय, इलहाद, कुफ्र। ३ गौण धर्म, इलको नेको। बमावटी किस्म से सरोकार रखनेवाला। २ उप- औषधिक (स० वि०) छली, धोकाबाज । न्यासके योग्य, जो बनावटो किस्म में लिखने के लायक प्रोपधेनव ( स० १०) उपधेनोरपत्य पुमान्, उप- हो। ३ विलक्षण, अनोखा। धेनु-अण । धन्वन्तरिके शिष्य एक ऋषि। औपपक्ष्य (सं० त्रि.) उपपक्षस्य इदम्, उपपच-ष्यत्र । औषधेय ( वि) उपधि स्वार्थे ढब। छदिरुपधि. | बाहुमूल सम्बन्धीय, बगलो, जो काखमें रहता हो। वीटभ । पा॥१.२३। १ रथका एक अवयव, गाड़ीका पोपपत्तिक (सं० त्रि०) उपपत्या छतम्, उपपत्ति- पहिया। (त्रि.)३ रथके अवयव विशेषका कार्य ठक । युक्तियुक्त, हाजिर, मतलब निकाल देनेवाला। देनेवाला, जो गाडौके पहिये में किसी हिस्से पर लिङ्गशरीरको औपपत्तिक कहते हैं। लगता हो। औपपातिक (सं० वि०) उपपातन संस्पष्टः उप- औपनायनिक (स.वि.) उपनयनं प्रयोजनमस्य, पात-ठक्। गोवधादि उपपातकमें लिप्त, जो काई उपनयन-ठक् विपदहविच अथवा उपनयन-ठक । इलका गुनाह कर चुका हो। (को०) २किसी १.उपमयनके प्रयोजनीय, जमेजमें लगनेवाला। उप- जैन उपाङ्गका नाम। जैन देखो।
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/५६३
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