पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/५५७

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पौड़वीय-चौघानपाद बाताबजाता हो। (पु.) २ क्षत्रियजाति विशेष, पौत्कण्ठावान (सं० त्रि०) उत्कण्ठित, खाहिशमन्द । एक लड़ाका कौम। औत्कथं (सं० ली.) उत्कर्षस्य भावः, उत्कर्ष चौड़वीय (स• पु०) औड़वि चत्रिय जातिके एक राजा। व्यञ् । उत्कर्षता, सबकत, बड़ाई। चौड़पिक (मं.वि.) उड़ पेन प्रवेन तरति, उड़ प. औत्कल-१ एक संस्कृतन कवि। इनका बनाया ठक् । १ उड़ पहारा पार गया हुआ, जो नावसे पद्यावली नामक ग्रन्थ विद्यमान है। २ उतकलदेशभव। पार पहुंचा हो। उड़ पस्य इदम्। २ उड़प-ौतमि (सं० पु०) उत्तमस्यापत्यम, उत्तम-इब । सम्बन्धीय, नावसे सरोकार रखनेवाला। (पु.) १ उत्तमके पुत्र एक मनु। यह तीसरे मनु थे। ३ उड़ पका यात्री, नावका मुसाफिर। (त्रि.)२ उत्तमसम्बन्धीय,उत्तमसे सरोकार रखनेवाला। पौड़ म्बर (सं• क्लो०) १ कुष्ठरोग विशेष, किसी औतमिक (स० वि०) पाकाशके प्रधान देवतावोंसे किमका कोढ़। यह कुष्ठ औदुम्बर जैसा रक्तवर्ण, | सम्बन्ध रखनेवाला। दाहयुक्त एवं कण्ड विशिष्ट होता है। कुष्ठ शब्दमैं इसको औत्तमेय (सं• पु) उत्तम ढक् । औचमि देखो। चिकित्सा देखो। २ साम, तांबा। ३ ताम्रप्रान्त, श्रौत्तर (स• वि०) उत्तरति अस्मात् उत-त-अप तबिका बरतन। (पु.) ४ चतुर्दश यमान्तर्गत | स्वार्थे पण् । १ उत्तीर्णकारी, पार लगानेवाला। बम विशेष । ५ एक सपखो। ६ पञ्चावपाखं वर्ती एक २ उत्तरवासी, जो शिमालमें रहता हो। जनपद । (वि०) ७ उड़ म्बर काष्ठ-सम्बन्धीय, गूलरको भौत्तरपथिक (सं० वि०) उत्तरपथेन गच्छति, उत्तर- लकड़ोसे सरोकार रखनेवाला। पथ-ठक् । उत्तर-पथसे गमनकारी, शिमालको राहसे बाड़ लोमि (संपु० स्त्री०) उडल ऽपत्यम्। जानेवाला। उत्तरपथेन पाहतम्। २ उत्तरपथ उड़ लोमाके पुत्रादि। हारा आइत, जो शिमाली राहसे साया गया हो। बौड़ (सं. पु. ) पोदेशानां राजा, प्रोड्- (पु.) ३ उपासक विशेष । पण । १ पोदेशके राजा। २ प्रोड्देशवासी। श्रौत्तरपदिक (स० वि०) उत्तर पदं ग्रजाति, उत्तर- चौड़पुष्प (सं• क्लो. ) जवापुष्प, गुड़हरका फल। पद-ठक् । उत्तरपद ग्रहण करनेवाला, जो पाखिरी पौडलोमो-एक संस्कृत दर्शनन। ब्रह्मसूत्र में इनका | सफूज पकड़ता हो। वचन उहत है। पौत्तरवेदिक (सं० वि.) उत्तर येयां भवः, उत्तरवेदी- बौदव (हिं. वि.) उच्छाल, बेढब, ऊटपटांग। ठक् । उत्तरवेदीसे उत्पन, उत्तरको वेदीसे सम्बन्ध चौरक (म. ली.) वैदिक गौतविशेष, वेदका रखनेवाला। एक गाना। श्रौत्तराधर्य (सं• को०) उत्तराधराणां भावः, उत्तरा- चोतंस (हिं.) अवतंस देखो। धर-ष्यत्र । अर्ध्वनिम्नता, संचा-नोचापन, जंचा- चौता (सं• वि.) उतङ्गसम्बन्धीय। उता देखो। खालो। चौतथ्य (सं.पु.) दीर्घतमाका एक उपाधि या नाम।। पौत्तराह (सं० त्रि.) उत्तरस्मिन् भवः, उत्तर-पाह। चौतरमा (हिं.क्रि.) अवतार लेना, परमेखरका उत्तरादाह । पा ॥२॥१०४। (वार्तिक) उत्तर कालादिसे पृथिवीपर किसी जीवके प्राकारमें प्रकट होना। उत्पन्न, जो आगे पानेवाले दिनसे सरोकार रखता हो। चौतार (हिं. पु०) अवतार, परमेश्वरका जीवरूपौत्तरेय (सं० पु०) उत्तराया अपत्य पुमान्, उत्तरा- चारण। यह शब्द प्रधानतः विष्णु भगवानके चौबीस | ठक्। अभिमन्युकी पत्नी उत्तराके पुत्र, परीचित् । अवतारोंका द्योतक है। पौत्तानपाद (सं• पु.) उत्तानपादस्य अपत्य पुमान्, चौत्कण्य (सं• को०) उत्कण्ठा स्वार्थे ष्यत्र । उत्तानपाद प्रण। १ उत्तानपाद राजाके पुत्र, ध्रुव । उत्कण्ठा, वाहिश, चाह।