पौचिंत-औड़वि भौचिंत (हिं. वि. ) चिन्तारहित, खबर न । पानिहायनक ( स. पु. ) व्याकरणका एक रखनेवासा। पाठशाला। भौचिती (सं. स्त्री. ) उचितस्य भावः, उचित-ौज्वल्य (स.ली.) उलव सस्य भावः, उच्च ध्या डोष यलोपः । इनस्तहितस्य । पा ।।१५ यज । १ उच्चचता, सफाई। २दीप्ति, चमक। १ औचित्य, उपयुक्तता, मुनासिबत। २ सत्य, रास्ती, पौझक (हिं. क्रि० वि०) एकाएक, एकवारमो, सचाई। भपसे। भौचित्य (स. क्ली. ) उचितस्य भावः, उचित-ष्यन् । औझड़ (हिं. स्त्रो०) १ पाघात, प्रहार, मिड़की, १ उपयुक्तता, मुनासिबत। २ सत्य, सचाई। धक्का। २ पंजा, लात। (क्रि. वि.) ३ झटकेके पौच्च (संपु०) उच्चस्य भावः, उच्च पण । उच्च ता, साथ, धड़से, उछालकर। बुलंदी, उचाई। प्रौटन (हिं. स्त्री.) १ गर्म करनेको हासत, पोच्य (सं.क्लो०) उच्च-या । उच्चता, चापन। उबाल देने की बात। २ तमालपत्र कर्तनको कुरिका, भौच्चैःश्रवस (सं. पु०) उच्चैःश्रवस स्वार्थे तम्बाकू काटनेका चाकू.। इन्द्रका अश्व। उधवा देखो। पोटना (हिं.क्रि.) १ बासना, पामपर चढ़ा पौछ (हिं. पु.) दारुहरिद्राका मूख, दारुहल्दौको गाढ़ा करना । २ उबसना, खौलमा, जसमा। जड़। इससे मारखी रंग निकलता है। ३ क्रोधसे भस्मीभूत होना, गु.ससे जलने समना। औज (अ० पु.) १ शोषविन्दु, सबसे ऊंची जगह । ४ भ्रमण करना, घूमना-फिरना। २ पद, स्थान, रुसवा । प्रौटनी (हिं. स्त्री.) प्रौटी जानेवाली चौनके औजकमाल (प. पु.) रागभेद, किसी किस्का चलानेका औज़ार। गाना। प्रौटा (हिं० वि०) खौला, उबला, जो प्रामपर रखने भौगड़ (दि.वि.) पदक्ष, गंवार । से जलकर गाढ़ा पड़ गया हो। औजस (स.ली.) पोजस स्वार्थ भए । स्वर्ण, प्रौटाई (हिं. स्त्री.) पौटनेका काम। सोना। भोज: देखो। भौटाना (हिं. को०) प्रौटने का काम दूसरेसे सेना। भौनसिक (सं• वि.) भोजसा वर्तते, पोजस्-ठक्। भौटावनी (f'. स्त्री.) दूध उबासनेको महोबा , १ तेजस्वी, शानदार। २ बलवान, जोरावर। (पु.) बरतन, दुदहड़ी। ३ शूरवीर, बहादुर। पोटी (हिं॰ स्त्री०) १ दुग्धवर्धक औषधविशेष, भौजस्य (सं• क्लो०) भोजसो भावः, भोजस-या । दूध बढ़ानेवाली एक दवा। यह पौटकर बनायो १ तेजखिता, शानदारी। २ उग्रता, जोरावरी। और व्याने पर गायको खिलायी जाती है। एकर (वि.) ३ बलकारी, ताकत देनेवाला। इक्षुरस विशेष, उबाला हुआ गवेका अर्क। इसमें पौज़ार (प.पु.) यन्त्र, हथियार। पौटते समय पानी मिला देते हैं। पौनयनक (स• वि.) उज्जयिन्या इदम्, उन्न-ौड़ (स'• त्रि.) उन्द-क, नलोप: यम: खायें यिनी-वुन । उनयिनी सम्बन्धोय, उज्जैनसे सरोकार | अण् । पार्द्र, तर, मोसा। . रखनेवाला। |ौड़म्बर, पौडुबर देखो। पौनागरि-सुन्दरमियके गोवापत्य । पभिराममणि पौड़व (सं• पु०) पोड़व स्वार्धं पर। पक्षम नाटकमें इनका वचन उद्दत है। स्वरमिश्रित राम। पोड़व देखो। पौनिहानि (सं० पु. ) उनि हानस्य अपत्यम्, भोड़वि (सं० वि०) १मोड़वमनुगोलयति, थोड़व उनिहाम-इन । उनिहानके पुवादि। इज। मोड़व रागका अनुशौचनकारी, जो घोड़वको
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/५५६
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