ओम्-ओमन्वान् “अकारथ तथोकारो मकारशचरवयम् । ढतीय चित्शक्ति और अर्ध मात्रा श्रेष्ठपद जैसी कल्पित एता एव बयोमावाः सात्वराजसतामसाः ॥ है। इसी प्रकार समस्त प्रोङ्कारको योगको भूमि निगु या यौगिगमयान्या चार्ध मावोवं संस्थिताः । समझना चाहिये। ॐ शब्दके उच्चारणसे समुदाय गान्धारौति च विज्ञेया गान्धारस्वरसंधया । असत् सत् बन जाता है। इसको प्रथमा इस्व, द्वितीया पिपीलिकागतिस्पर्णा प्रयुक्ता मूनि लक्ष्यते ॥४ दीर्घ, तोया प्लुत पौर अर्धमात्रा वाक्यसे अगोचर तथा प्रयुक्त पोद्धारः प्रतिनि र्याति मूर्धनि । अथोङ्कारमयो योगी त्वचर वंचरो भवेत् ॥६ है। इसी अक्षरमय ब्रह्मका नाम प्रोङ्कार है। प्रायो धनुः शरो ह्यात्मा ब्रह्म वेथमनुत्तमम् । "इच्छा क्रिया तथा ज्ञान गौरी ब्राह्मौ च वैभवी। अप्रमत्तेन वेदव्यं शरवत् तन्मयो भवेत् ॥७ विधा शक्तिः स्थिता लोके तत्पर शक्तिरोमिति ॥” (गोरचसंहिता) भोमित्ये तत् वयो वैदास्त्रयो लोकास्त्रयोऽग्रयः । आद्याशक्तिस्वरूप प्रणवसे तीन शक्ति समुत्पन्न हुयी विष्णन या इरथैव ऋक् सामानि यज'षि च ॥८ थौं-इच्छाशक्ति, क्रियाशक्ति और ज्ञानशक्ति । इच्छा- मावाः सार्धाय तिम्रय विज्ञेयाः परमार्थतः । शक्ति गौरी है। (यह तमोगुणके अनुसार महेश्वरके तब युक्तस्तु यो योगी स तलवमवाप्नुयात् ॥ साथ रहतो है।) क्रियाशक्ति ब्राझी है। (यह रजो- अकारस्वथ भूलॊक उकारयोचाते भुवः । गुणके अनुसार ब्रह्माके साथ सृष्टिकार्य करती है।) सव्यञ्जनो मकारच खर्लोक: परिकल्पाते ।।१० व्यक्ता तु प्रथमा मावा द्वितीयोऽव्यक्तसज्ञिता । ज्ञानशक्ति वैष्णवी है। (यह सत्वगुणके अनुसार मावा तौया चिच्छक्तिरर्ध मावा परं पदम् ॥११ विष्णु के साथ रह पालन करती है)। .. अनेन व क्रमेण या विशेया योगभूमयः । . अब सबने समझ लिया होगा-प्रोङ्कार क्या है। घोमित्यु चारणात् सर्व ग्रहोतं सदसद्भवेत् ॥१२ मूल कथा-ओं ही हमारे धर्मशास्त्रको भित्ति है। इस्खा तु प्रथमा मावा हितौया दैयं सयुता । जिसने प्रोङ्कार समझनेको चेष्टा लगायो, उसौने हमारे बतौया च सुतार्धाख्या वचस: सा न गोचरा ।।१३ धर्मको कुछ बात देख पायो है। इत्येतदक्षरं ब्रह्म परमोकारसज्ञितम् ॥” (मार्कण्डेयपु० ४२ १०) __ बौद्धधर्मशास्त्रमें भी ॐ शब्द व्यवहृत हुआ है। अकार, उकार एवं मकार तीन अक्षर साव, राजस भोट देशके बौद्ध 'ओं हन् ह" पवित्र शब्द धर्मकर्मादि- तथा तामस विविध मात्रा हैं। फिर इसमें निगुण में उच्चारण करते हैं। उक्त देशमें किसी किसी घरको योगिगम्य अर्धमात्रा भी अवस्थित है। गान्धार स्वरके छतपर यह तौमों शब्द खुदे हैं। लोग इनके 'बुद्ध, पाश्रयसे उसे गान्धारी कहते हैं। मस्तकपर लगनेसे | धर्म और सङ्घ तीन अर्थ लगाते हैं। कभी कभी बौद्ध वह पिपीलिकागतिक स्पर्शकी भांति देख पड़ती है। 'ओं मणिपद्म हुम्' पवित्र नाम उच्चारण करते हैं। मोकार उठनेसे उसका स्वरूप जैसे मस्तकके प्रति ___ हमारे शास्त्रकारोंने जैसे प्रों अर्थात् अ, उ, म- निकल पाता, वैसे ही प्रोङ्कारमय योगी अक्षरमें अक्षर तीन वर्णसे ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश्वर अर्थात् सृष्टि- हो जाता है। प्राण धनुःखरूप, आमा शरस्वरूप कर्ता, पालनकर्ता और ईश्वरका अभिप्राय रखते, वैसे और ब्रह्म वेध्यस्वरूप है। अप्रमत्त रह शरवत् उसे | ही प्राचीन मिसरके लोग भी 'आमौना' 'आमौन् विड कर सकनेसे साधक ब्रह्ममय हो जाता है। ओं निउ' और 'सिवेक रा' ईश्वरके परिचायक तीन नाम शब्द तीनों वेद, तीनों लोक और तीनों अग्नि है। उच्चारण करते थे। उक्त तीनों मूर्तियां ही प्राचीन ब्रह्मा, विष्णु एवं हर और ऋक, साम तथा यजः ग्रीकों और रोमकोंके जुपिटर, नेपचुन एवंटो हैं। ॐ ही है। इसमें साढ़े तीन मात्रा लगती हैं। जो मोम (सं० पु.) १ रक्षक, मुहाफिज़। २ कपालु, योगी उनमें मिलता, उसका लय ब्रह्ममें जा लगता मेहरबान, भलाई चाहनेवाला। ३ वपापान, जो है। प्रकार मूलॊक, उकार भुवलोक और सव्यसन | हिफाजत पाने काबिल हो। . मकार खलोंक है। प्रथम व्यक्ता, द्वितीय अव्यक्त, | भोमन्वान् (सं० वि०) १ अच्छा लगनेवाला, खुश-
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/५४३
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