ओद्म-ओम् वषिकाय चलाते और पथ-कूप प्रभृतिके निर्माणमें , सफाईको चौज। खड़गादि परिष्कार करनेवाले हाथ लगाते हैं। पहले ओहर भूतप्रेत पूजते थे, पौछे इष्टका-खण्डको ओपनी कहते हैं। वैष्णव बन गये। फिर भी पेलाम देवताका भय और ओपश (सं० पु.) १ शिरोभूषण, जुल्फः । २ शृङ्ग, प्रेम आज भी कुछ कम नहीं। बहुविवाहकी प्रथा सौंग। ( सायण ) चलित है। क्योंकि अधिक स्त्री रहनेसे अाय भी ओपथी (सं. स्त्री०) सुन्दर केशयुक्त, जुल्फोंवाला, बढ़ जाता है। स्त्रियां शारीरिक परिश्रम द्वारा अर्थी- जो बालों को बनाये-चुनाये हो। पार्जन करती हैं। योपोस्सम (अं. पु०% Opossum) पशुविशेष, एक श्रोद्म (स० पु०) उन्द भावे मन् नलोप: गुणश्च । चौपाया। यह उत्तर अमेरिकाके संयुक्तराज्य, कालि- अवोदधौद्मप्रअथहिमन्यथाः । पा हा४।२६ । लोद, तरी, गोलापन। फोरनिया, टेक्सास और दक्षिण अमेरिकामें मिलता २ प्रवाह, बहाव। है। इसमें अन्य पशुके अपक्व पोतकपर टूट पड़नेका प्रोझन् ( सं० क्लो० ) उन्द-मनिन् नलोपश्च । श्रोन देखो। विशेषत्व विद्यमान है। यह कई प्रकारका होता है। अोधना (हिं० क्रि०) बन्धनमें पड़ना, लग जाना, दांत और अंगूठे अनोखे देख पड़ते हैं। कोई चहे अटकना। जैसा छोटा और कोई बिल्लो जैसा बड़ा रहता है। श्रोधस् (सं. क्लो०) पशुस्तन, जानवरका बाख या स्त्री जाति वसन्त ऋतुमें छहसे सोलह बच्चेतक उत- आयन। पन्न करती है। चौदह या सत्रह दिनमें बच्चे होशि- श्रोधे (हिं. पु०) स्वामी, मालिक । यार हो जाते हैं। दक्षिण अमेरिकामें बच्चे मांकी ओनचन (हिं. स्त्री०) अदवायन, खाटके पायताने | पीठपर चढ़े और उसकी पूछसे अपनी पूंछ कसे लगनेवाली रस्सी। इसको कसनेसे चारपाई कड़ी रहते हैं। पर जाती है। पोफ (अ. अव्य) अरे, हाय, बाप रे बाप । प्रोनचना (हिं. क्रि०) अदवायन कसना, खाटके ओबरी (हिं० स्त्री० ) क्षुद्र ग्रह, छोटा मकान, पायतानेको रस्मो कड़ी करना । झोपड़ी। ओनवना, उनवना देखो। ओम् (सं० अव्य.) प्रवति रक्षतीति, अव-मन् टिलोपः श्रीना (हिं० पु.) जलके उद्गमनका पथ, उटच । पवतेष्टिलोपश्च । उप १।१४१ । ज्वरत्वरेत्यादि । पादा४।२० । निकलनेको राह। प्रणव। योगसूत्रकारने लिखा है- भोनाड़ (हिं.वि.) शक्तिशाली, ताकतवर । "तस्य वाचकः प्रभवः।” (१।२७) प्रोनाना (हिं. क्रि०) सुनना, कान लगाना। ईश्वरका वाचक प्रणव ठहरता अर्थात् ॐ कहनेसे ओनामासो (हिं. स्त्री०) ओं नमः सिद्धम्, विद्या- ईश्वर समझ पड़ता है। रम्भके समयका एक मङ्गल वाक्य। अब देखना चाहिये-जिस शब्दके उच्चारणसे हो ओन्दन (सं. पु०) १ मङ्गल। २ कनिष्ठ। ईखरका सम्बोधन और ईश्वरको महिमाका प्रकाशन ओप (हिं. स्त्रो०) १ शोभा, ख. बसूरती, चमक। होता, श्रुति तथा स्मतिमें उसी ॐ शब्दका किस प्रकार २ रंग, कुलई। . भाव पाया जाता है। ओपची (हिं. पु.) कवच धारण किये हुआ वीर, शुक्लयजुर्वेदको माध्यन्दिन-शाखामें सर्वप्रथम 'प्रणव' जो सिपाही बखु तर पहने हो। शब्दका उल्लेख मिलता है- भोपना (हिं. क्रि० ) परिष्कार करना, रंगना, "प्रणवैः शास्त्रायां रूपम्पयसा सोमऽ पापाते।” (१९२५) मलना। "पोम्प्रतिष्ठ।" (१३) प्रोपनी (हिं. स्त्री.) परिष्कार करनेका वस्त, फिर कृष्णयजुः प्रभृति शाखाके संहिता-भागमें ॐ
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/५३५
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