४८४ पोखामण्डल फिर चावदोंसे मिल उन्होंने एकबार हेरोलोंको भोज किसी न किसी प्रकार मुसलमानोंको यहांसे निकाल दिया। सब लोगोंके भोजनपर बैठ जानेसे राठोरोंको बाहर करना चाहिये। मैं सांगनजीको ढढने जाता मन्त्रणाके अनुसार चावढ़ोंने धोकेसे आ उनमें कितनों इं। तुम मुसलमानोंसे लड़ो और उन्हें शान्तिसे डाला था। फिर राठोरोंने चावढीको भी बैठने मत दो। सात वर्ष बाद वह सांगनजीको से नीचा देखाया। अपने भीषण कार्यके उपलक्ष में दोनों लौटे थे। फिर घोर युद्ध होने लगा। अन्तको मुसल- भाइयोंने 'वाधेत' उपाधि ग्रहण किया था। राठोरोंका मान हारे और पोखामण्डल छोड़ भागे। सांगनजी राज्य धीरे धीरे बढ़ा। वेरावलजीने कुछ सेनाले काठिया अरामदे सिंहासनारूढ़ हुये थे। सांगनजीके बाद वाड़ भाक्रमण और सोमनाथपाटन अधिकार किया | उनके पुत्र संग्रामजीने राज्यका उत्तराधिकार पाया था। उन्होंने परामदमें अपनी राजधानी प्रतिष्ठित | और कुछ वर्ष राज्यका सुख उठाया। फिर अखेरजी की। राज्यका उत्तराधिकार पुत्र विकमसौको मिला राजा बने थे। उनकी बहनका विवाह नवानगरके था। कच्छके राव जियाजीने अपनी कन्या उन्हें व्याह जामसे हुआ। १६६४ ई०को अखेरजीके मरनेपर दी। विकमसौके बाद नौ राने १२० वर्षतक राज्य भोजराजजीने उत्तराधिकार पाया था। उनके एक करते रहे । १०वें राना सानगनजी अरामदेके लड़की और सात लड़के थे। लड़कोका विवाह राजावों में बड़े शक्तिशालौ निकले। उन्होंने अपना कच्छके रावसे हो गया। ज्येष्ठपुत्र वाजेराजजी अपने राज्य खम्भालिया नगरतक बढ़ा लिया था। किन्तु भाइयोंसे लड़ा-भिड़ा करते थे। इसौसे उन्हें पोसितरा उनके पुत्र भोमजीने राज्य बनने पर मक्का जानेवाले नगर अलग दे दिया गया। १७१५ और १७१८ कितने ही जहाज़ लूटे। इससे अप्रसव हो अहमदा. ई.को परामदेके वाधेल राजा द्वारकावाले वाधेरोंके बादके सुलतान महमूदने उन्हें दबाना चाहा। उसी साथ काठियावाड़में कितनी ही वार घुसे। किन्तु समय भीमजीने सैयद मुहम्मदका जहाज लूटा और नवानगर, गोंडल और पोरबंदरकी फौज उनपर चढ़ी उन्हें दो दुधमुहे लड़कोंके साथ जहाजमें छोड़ा। थी। इससे उन्हें बड़ी हानि उठाना पड़ी। एक उनको स्त्री कैद कर परामदे भेजी गयौ थीं। इसपर राजा द्वारका और वसाईमें राज्य करने लगे। ११ सुलतान की फौज बदला लेने आयो। मुसलमानोंने ई०को डाकुवोंने एक बम्बईका जहाज लट लिया। हारका लटी थी। भीमजी भाग गये। किन्तु उन्होंने मलाह और मुसाफिर पानीमें फेंके गये। अंगरेज थोड़े ही दिनों बाद प्रा मुसलमानों को मार भगाया. सरकारने जो लड़ाईका जहाज़ शास्ति देनेको भेजा, था। भौमजौ और हमौरजौके वंशज मानकोंमें वह खाली हाथ लौटा था। क्षतिपूरण मांगा जानेपर हारकाके अधिकार पर झगड़ा हुपा। मानकोंने / वाधेर अस्वीकार कर गये। किन्तु १८०७ ई.को वाघेरोंके साहाय्यसे हारकाको अधिकार किया। करनल बाकर उनसे क्षतिपूरण लेने फौजके साथ भीमजीने भी अपना पक्ष सबल न देख सन्धि कर लो। हारका पहुंचे थे। वाधेल और वाधेर राजा एक १५८२ ई०को अरामदे के वाघल राजा शिव रानाने | लाख दश हजार रुपया देनेको सम्मत इये। किन्त' गुजरातके सुलतान मुजफ्फरको शरण दिया। कारण १८१० ई०को उन्होंने फिर लट मार मचायी थी। अहमदाबादके सूबेदार खान-पाजमसे काठियावाड़में बड़ोदेके रेसोडण्ट कप्तान कारनकने द्वारका कुछ हार वह अोखामण्डल भाग पाये थे। किन्तु खान् सवार भेज झगड़ा मिटाया। किन्तु डाका पड़ता ही आजमको फौज उनके पौधे रही। वाधेलोंसे युह रहा। १८१७ ई०को १८वौं नवम्बरको अंगरेज होनेपर शिवराना मारे गये। शिवरानाके पुत्र सरकारने हारका और बेयत तीर्थस्थान समझ सांगनजी काठियावाड़को भागे थे। इधर हारकाके | मायकवाडके अधीन किये थे। गायकवाड़ने इसके सामल मानकने अपने भाई मन मानकसे कहा- 'बदले मोखामण्डलके राजावोंका जुर्माना और
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