एषुकार-यात्राक ४८१ ऐषुकारि (स० पु०) इधुकारस्य अपत्यम्, इषुकार- ईश्वर, पञ्चप्राशमय, देवमाता और परमकुण्डली है। इञ्। वाणनिर्माताका पुत्र, तोर बनानेवालेका बेटा। लिखने में यह वाम दिक्से कुण्डली बन दक्षिण दिक् ऐषुकारिभक्त (सं• लो०) ऐषुकारिणां विषयो देशः, मध्यस्थलमें सिकुड़ेगा, उसके पीछे अधोदेशमें पुनर्वार ऐषुकारि-भक्तल। भोरिक्याद्यैषु कार्यादिभ्यो विधलभक्तलौ। पा वामदिकको चलेगा। इसको सकल रेखावों में ब्रह्म ४।२।५४। १ ऐषुकारिविषय। २ऐषुकारि देश, जिस विष्णु और महेश्वर अवस्थान करते हैं। इसकी मात्रा मुल्कमें तीर बनानेवाले रहें। ब्रह्मरूपिणी महाशक्ति है। (वर्णोद्धारतन्त्र ) ऐषुकार्यादि (सं० पु.) पापिन्युक्त गणविशेष। इसमें तन्त्रशास्त्रोक्त प्रोकारका नाम-सत्य, पीयूष, पश्चि- ऐषुकारि, सारस्यायन, चान्द्रायण, याक्षायण, याचा- मास्य, श्रुति, स्थिरा, सद्योजात, वासुदेव, गायत्री, दोध यण, औड़ायन,, जौलायन, खाड़ायन, दासमिति,! जबक, आप्यायनी, अवंदन्त, लक्ष्मी, वाणी, मुखो,हिज, दासमित्रायण, शौद्रायण, दाक्षायण, शायण्डायन, उद्देश्यदर्शक, तीव्र, कैलास, वसुधाक्षर, प्रणवांश, ताायण, शौचायण, सौवीर, सौवीरायण, शयण्ड, । ब्रह्मसूत्र, अजेश, सर्वमङ्गला, त्रयोदशी, दीर्घनासा, शौण्ड, शयाण्ड, वैश्वमानव, वैषधेनव, नड़, तुण्डदेव, रतिनाथ, दिमम्बरा, बैलोक्यविजया, प्रन्ना और प्रौति- विश्वदेव और सापिण्डि शब्द पड़ता है। वौजादिकर्षिणी है। मानकान्यासके अनुसार अर्ध्व ऐष्टक (सं.ली.) यान्त्रिक ईटोंका ढेर। दन्तकी पंक्तिपर न्यास किये जानेसे पभिधानमें ऐष्टिक (सं० पु.) इष्टि-ठक् । १ इष्टिके व्याख्यानका पोकारका एक नाम 'जवंदन्तपंक्ति' भी है। ग्रन्थ। २ यन्नके हितका विषय । ३ अन्तर्वेदिक कर्म- २ धातुका एक अनुबन्ध । “मोनिष्ठा-त न: ।" ( कविकल्पद्रुम) विशेष। (त्रि.) ४ यन्नके साधनमें समर्थ । ५ यन (अध्य०) ३ सम्बोधन। ४ आह्वान । ५ स्परख । सम्बन्धीय। ६ अनुकम्पा। (पु.) ७ ब्रह्मा। ऐष्टिकपौर्तिक (सं० त्रि०) इष्टापूर्त सम्बन्धीय। भों (सं• अव्य० ) १ ओङ्कार, प्रणव। ओम् देखो। ऐसा (हिं. क्रि०-वि०) इस प्रकारसे, इस तौरपर। २ तथास्तु, पामीन्, बहुत अच्छा। ऐहलौकिक (स. त्रि.) इहलोके भवः, इहलोक- पोइछना (हिं. क्रि०) वारना, सदके. या न्योछावर ठक्। १ वर्तमान जन्मसम्बन्धीय। २ मर्त्यलोक करना। सम्बन्धीय, इस दुनियासे सरोकार रखनेवाला। ओंकना, ओकना देखी। ऐहिक (सं० वि०) इहाभवम्, इह-ठक् । १ इह ओंगना (हिं. क्रि.) शकटके अक्षिमें तेल देना, लोक-जात, इस दुनियासे पैदा । २ इहलोक-सम्बन्धीय, गाडोके धुरमें तेल लगाना। ओंगनेसे शकटका चक्र इस दुनियासे सरोकार रखनेवाला। बेखटके चलता है। ऐहिकदर्शी (सं० वि०) इहलोकके कार्य निरीक्षण- भोंगा (हिं० पु०) अपामार्ग, लटजोरा। करनेवाला, जो इस दुनियाके काम देखता हो। ओटना, ओटना देखो। ऐहोल-बम्बईप्रान्तके वीजापुर जिलेका एक ग्राम। गोठ (हिं०) ओष्ठ देखो। यहां जो शिलालेख मिला, उसमें २य पुलकेशीका गोंडा (हिं० वि०) १ गभीर, गहरा। (पुं० ) २.गर्त, परिचय पड़ा है। गड्डा। ३ सेंध। - श्री पोंध (हिं० पु० ) रज्जुविशेष, एक रस्मो। इससे छाजन ओ-स्वरवर्णका त्रयोदश अक्षर। इसके उच्चारणका | पूरी करनेको लकड़ियां बांधी जाती हैं। स्थान कण्ड और पोष्ठ है। यह वर्ण दीर्घ एवं मुत ओषा (हिं. पु.) हस्ती पकड़नेका गर्त, हाथी भेदसे दो प्रकारका होता है। कामधेनुसन्त्र में कहा, फांसनेका गट्टी। कि धोकार पञ्चदेवमय, रक्तविद्युताकार, त्रिगुणात्मक, ओप्राक (सं० अव्य० ) १ वमनके वेगका शब्द, केके Vol. III. 131
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/५२२
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