एषावौर-एसिया ४५९ एषावीर (सं० पु.) एषायां प्रतिग्राहेच्छायां वीरः, : महाहीप एसिया नामसे प्रसिद्ध हो गया। एसिया ७-तत्। स्थानास्थान विवेचनाशून्य प्रतिग्राहक निन्दित नाम नितान्त आधुनिक नहीं। ग्रीसके प्रादिकवि ब्राह्मण। होमरने इस नामका उल्लेख किया है। एषिता (सं० त्रि०) इष-दृच् । अभिलाषयुक्त, किसी-किसी ग्रीक-भाषावित्पण्डितके कथनानुसार चाहनेवाला। होमरने जिम ‘एसियाम' शब्द का उल्लेख किया, उसके एषिन् (स' त्रि.) इष-णिनि । इच्छक, खाहिशमन्द। पाठसे बोध न हुआ-एसिया नामक कोई भूभाम एष्टव्य (स.त्रि०) दृघु-तव्य। वाञ्छनीय, चाहने उनका समझा था। उन्होंने 'एसियाम' ( Asias) लायक। नामसे लिदीय देशके राजाका उल्लेख किया है। इस एटा (स. त्रि.) अभिलाषयुक्ता, खाहिशमन्द। सम्बन्ध पर हम वादानुवाद करना नहीं चाहते। एष्टि (सं० स्त्री०) आन्यज-इष वा तिन् । १ अभि सत्व असत्य का विचार युरोपीय पण्डित ही करेंगे। यजन। २ अभिकामना, खाहिश । फिर ग्रीसके प्राचीन कवि हिसियदके पुस्तकमें भी एष्य (सं० वि०) इष कर्मणि ण्यत्। १ वाञ्छनीय, एसिया नाम मिलता है। उनके मतसे एसिया किसी चाहके काबिल। २ गम्य, पहुंचने काबिल। (को०) अप्सराका नाम है। यह ओसेनस (Oceanus) एवं भावे यत्। ३ सुश्रुतोक्ल अष्टविध शल्य कर्ममें एक टेथिस (Tethys) की कन्या और प्रमिथियस (प्रमन्य) कर्म। अभ्यन्तरस्थ शब्यादिके अन्वेषण करनेको हो की भार्या रहौं। हिरोदोतासने लिखा-ग्रोक लोगोंके एण्य कर्म कहते हैं। यह कर्म धुने काष्ठ, वंश, नल, मतसे प्रमिधियसको पत्नीके नामानुसार एसिया नाड़ी और सूखी तोंबी प्रभृतिमें सौखना पड़ता है। खण्डका नाम पड़ा है। किन्तु लिदौयन यह मत ४ एषणकार्यसाध्य एक रोग। नहीं मानते। उनके कथनानुसार कोटिस (Cotys) एष्यत् (सवि.) भविषत्, आयिन्दा, आनेवाला। पुत्र एसियाम् ( Asias )-से एसिया नाम चला है। एण्यत्कालीय (सं० वि०) भविष्यत् काल सम्बन्धीय, अपना मत सप्रमाण करनेको वह सादिशको एसियान पायिन्दा जमानेसे सरोकार रखनेवाला । जातिका उल्लेख किया करते हैं। ( Herodotus एवा (स. स्त्रो०) आमलको वृक्ष, प्रांवलेका पेड़ । Melpomene, XLV.) ऐतिहासिक ट्रेबोके मतमें एसिड (अ० पु०= Acid.) अन्न, तेजाब। लिदीयाका प्राचीन नाम एसिया है। अनेक अनुसन्धान एसिया-पृथिवोके चार महाद्दोपोंमें एक महाद्दोप। पोछे भाषाके तत्त्वविदोंने निश्चय किया,-एसिया यह युरोप और उत्तर अफरौकाके पूर्वसे प्रशान्त शब्दका अर्थ सूर्य एवं एसियान शब्दका अथ सूर्यलोक- महासागरके उपकूल पर्यन्त विस्तृत है। वासी अर्थात् पूर्वदिक्वासी है।
- अति पूर्वकालको इस महाद्दोपका नाम एसिया देखना चाहिये-प्राचीन ग्रीक और रोमक एसिया
न रहा। उस समय इस विस्तीर्ण भूमिखण्डको आर्य का विषय कैसा समझते थे। होमरको वर्णनासे ऋषि सुदर्शन अथवा जम्बुहोप कहते थे। एसिया | समझ पड़ता-ट्रय युद्धसे बहुत पहले एसिया पौर नाम यवन-प्रदत्त है। युरोपौष भूगोलवेत्ता बताया युरोपमें संस्रव था। किन्तु उक्त सम्बन्ध बन्धुभाव करते, कि वर्तमान एसिया-माइनरके एक छोटे नहों, घोरतर प्रतिद्वन्दिता और विषम शवभावका जिलेको पूर्वकाल 'एसिया' कहते थे। प्रोस देशके | पादर्श रहा। प्राचीन ग्रोक एसिया-माइनर तक -यवन इसी स्थानसे पूर्वको पोर विजयको अग्रसर जानते थे। उसो स्थानमें जा पायोनोय ग्रीक उप- हुये। एसिया-माइनरको पूर्व भोर उन्होंने जो देश निवेश करते थे। वहो प्राचीन हिन्दुवाँके निकट .या खान खोज और जौत पाया, उस समस्त भूभागका यवन-जैसे परिचित रहे। जाम 'एसिया' बताया था। कास पाकर यह विस्तीर्ण ईसा मसीहके जन्म २० वर्ष पहले पारस्व-