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- एवढार-एषा
एवढार (स अव्य० ) इस प्रकार, ऐसे हो। एवार (सं० पु०) एव एवमृच्छति, ऋ-अछ । सोम- एवङ्काल (स. त्रि.) ऐसे अधरों के पापहवाला, विशेष । जो ऐसे हफों का जोड़ रखता हो। एवावद (सं० पु.) एवमेवमावदति, एव-पा-वद-अच । एवङ्गत (स.वि.) ऐसी दशामें पड़ा था। ऋविशेष। एवङ्गण (स.नि.) एवं गुणो यस्य, बहुव्री०। ऐसे | एशिया, एसिया देखो। ही गुण से युक्ता, जो ऐसा ही वस्फ रखता हो। एशियाई (हिं.वि.) एशियासे सम्बन्ध रखनेवाला, एवज (अ.पु.) १ परिवर्तन, बदला। २ प्रति- जो एशियाका हो। फल। ३ बदली। अन्यके स्थान पर जो किञ्चित्काल एष् (धातु) स्वादि आत्म सक० सेट् । “एष तौ।" कार्य चलाता, वह एवज़ कहलाता है। ( कविकल्पद्रुम) गमन करना, चल देना। एवजी ( फा० पु०) स्थानापन्न, किसीको जगहपर एष (सं० पु०) एष भावे क्विप। १ गति,चाल । २ इच्छा, कुछ वक्त तक काम करनेवाला। मरज़ो। ३ अग्रवर्ती पुरुष, आगे रहनेवाला शख्स । एवन्दुःसह ( स० वि०) सह्य करनेको ऐसा बुरा, | एषण (सं० पु०) इष-ल्युट्। १ लौहनिर्मित वाण, जो सहने में इसतरह खराब हो। लोहेका तौर। २ गमन, चाल। ३ अन्वेषण, खोज। एवमवस्थ (स.नि.) इसप्रकार अवस्थित, जो ऐसे ४ इच्छा, ख़ाहिश। ५ सल्लको वृक्ष । टिका या जमा हो। एषणा (सं० स्त्री०) इष-णिच-भावे युच् । १ इच्छा, एवमादि (सं० वि०) ऐसे प्रारम्भवाला, जो इस- ख़ाहिश । २ प्रेरणा, तरगौव । तरह शुरू हो। एषणासमिति' (स. स्त्री०) शुद्ध भोजनका अङ्गी- एवमाद्य, एवमादि देखो। कार, अच्छे खानेका लेना। जैन ४२ पदार्थ दोषरहित एवम्प्रकार (संवि.) ऐसा, जो इस तरहका हो। मानते और खाते हैं। एवम्पाय, एवम्पकार देखो। . | एषणिका (सं० स्त्री०) इष्यतेऽनयेति, इष्-ल्यट् स्वार्थे एवम्प्रभाव (सं० वि०) ऐसी शक्ति रखनेवाला, जो | | कन्-टाप् प्रत इत्वञ्च। १ कांटा। २ अस्त्र विशेष । ऐसा जोरावर हो। एषची देखो। एवम्बिध (सं० वि०) एवं बिधा प्रकारो यस्य, बहुव्री० । | एषणिन् (सं० वि०) अन्वेषण वा चेष्टा करनेवाला, ऐसा, जो इस तरहका हो। जो तलाश या कोशिश करता हो। एवम्भूत (सं० वि०) एवं भवतीति, भृ कतरि क्त । | एषणो (स. स्त्रो०) इल्ल्यु ट-डोष । १ स्वर्णादिके ऐसा, जो इस तरहका हो। । परिमाणको तुला, सोना वगेरह तौलनेको तराजु । एवम्भूतवत् (सं० वि०) ऐसे ही पदार्थ से युक्त, जो २ सुश्रुतोक्त अस्त्र विशेष, एक नश्तर। इस प्रस्त्रको इसी तरहको चीज़ रखता हो। व्रणके मध्य लगा पूयादि साव कराते हैं। मुखदेश एवम्भूमि (स'• स्त्री०) इस प्रकारका स्थान, ऐसी जगह ।। केंचवेके मुख-जैसा रहता है। माधारण बोलौमें इसे एवया (सं० वि०) एव एवं प्रवनं वा याति, या-क्किए | सलाका कहते हैं। पुषोदरादित्वात् साधुः। रक्षक, रखवाला। एषणीय (सं.वि.) इष वा एष-अनीयर् । १ गम्य, एवयामरुत् (संपु.) एवया रक्षको मरुद यस्थ, | पहुंचने लायक। २ विश्राव्य, नश्तर लगाने काबिल । बहुव्री। एक ऋषि। ३ वाञ्छनीय, चाइने सायक। वयावन् (सं० पु.) या-वनिप्, एवस्व एवम्पकारस्थ | एषवीर, एषावौर देखो। यावा। १रक्षक, रखवाला। २ विषु। ३. इसी- एषा (सं० स्त्रो०) इष-अ-टाप् । १इच्छा, ख़ारिश । प्रकार गमनमोल, ऐसे ही चखनेवाला। २ पनवर्तिनी खो, पागेवासी औरत।