इन्द्रजाल स्तम्भन-जिस व्यक्तिके सुखमें सफेद चिरभिटीको। सात पांसे उठायिये। उनमेंसे तीन कटिमें बांधने पर जड़ रहती है उसके सामने किसीकी बात नहीं चलती। और बाको हाथमें रखनेपर चौरगति रुक जाती है। ___ॐ ह्रीं ह्रीं रक्ष रक्ष चामुण्डे कुरु कुरु अमुकं मे देहरञ्जन-कदम्बपत्र, लोध और अर्जुनपुष्यो वशमानय वशमानय स्वाहा' मन्त्रसे कार्यसिद्धि होती एकत्र पौस अङ्गमें लगानेसे दुर्गन्ध दूर होती है। है। रविवारको पुष्थानक्षत्र में यष्टिमधुका मूल उखाड़ एला, शटी, तेजपत्र, रक्तचन्दन, हरीतकी, शोभा- सभामें फेंक देनेसे सबका मुंह बन्द हो जाता है। ञ्जन, मुस्तक, कुष्ठ और अन्यान्य सुगन्ध द्रव्य पोस मेघस्तम्भन-एक ईटपर चार चतुष्कोण रेखा गात्रमें मलनेसे जो सोरभ उठता है, उससे सकल ही खौंच दूसरी ईटसे दबावे और 'ॐ मेघान् स्तम्भय मोहित हो जाते हैं। स्तम्भय स्वाहा' मन्त्र पढ़कर किसी बागमें गाड़ देवे पाम एवं जम्बुको पाठी तथा पद्ममूल पास तो मेघको दृष्टि रुकती है। मधुके साथ रात्रिको मुखमें रखनेस पुरुषके मुखका भरणीनक्षत्रमें उदुम्बर प्रभृति क्षीरोवृक्षके मूलको टुगन्ध दूर होता है और सुगन्ध पाने लगती है। मुरा- और पांच अङ्गल परिमाण एकखण्ड काष्ठको नौकामें मांसी, नागकेशर एवं कुष्ठको बांटकर पन्द्रह दिन तक डाल देनेसे उसको चाल रुक जातो है। प्रातः तथा सन्धयाकाल चाटनेसे स्त्रीके मुखमें कपूरको ____ निद्रास्तम्भन-यष्टिमधु और वृहतौका मूल बारोक गन्ध भर जाती है। पोसकर सूचनेसे निद्रा नहीं आती। लोहका मल, जवापुष्य और आमलकी बांटकर अस्त्रस्तम्भन-कपित्यका मूल वत्तिका नक्षत्रमें शिरःपर लगानेसे तीन मासके मध्य सफेद बाल काले उखाड़ धारण करनेसे देवगणका अस्त्र भी स्तम्भित | हो जाते हैं। होता है। छागीके दुग्ध हारा सात दिन पर्यन्त भावना दे गुलञ्चका मूल उखाड़ हस्तपर धारण करनेसे शस्त्र तिलका तेल निकाले और फिर उस शिरःमें लगावे भय छूट जाता है। तो काले बाल सफेद हो जाते हैं। ___ 'ॐ अहो कुम्भकर्ण महाराक्षस निकषागर्भसम्भूत अश्विनी नक्षत्र में वटको जीवन्तिका दुग्धके साथ परसैन्यस्तम्भन महाभय रणरुद्र आज्ञापय स्वाहा' खानेसे पुरुष बलवान् बनता है। पुष्यनक्षत्रमें मन्त्र १०८ बार जप करने और अपामार्गमूल शुभ | विकीरणका मूल उखाड़ गोदुग्ध से बांटकर खानेपर नक्षत्रमें उखाड़ शरीरपर मलनेसे समस्त शस्त्रका | सात दिनमें वृद्ध भी युवाके समान कूदने लगता है। स्तम्भन होता है। जन्मवन्धया-चिकित्सा-रविवारको मूलपत्र तथा __ पेटको हडडी गोष्ठको चारो ओर भूमिमें गाड़ | शाखा सहित गन्धनाकुलो उखाड़ एकवणे गोके दुग्ध में देनेसे गो, मेष, महिष, अश्व प्रभृति स्तम्भित हो | अविवाहित कन्यासे पिसा ऋतुकालमें चार तोले जाते हैं। परिमाण सात दिन पर्यन्त खावे और दृग्ध एवं ___ भृङ्गराज, अपामार्ग, खेत सर्षप, सहदेविका, मूंगको दाल प्रभृति लघु पथ्य खावे तो वन्ध्याके गर्भ 'अर्शन, वच और खेत विकीरणका मूल उखाड़ लौह रह जाता है। इस औषधको खाकर उद्देग, भय, पात्रमें रखे और दो दिनके बाद निकाले। फिर शोक और दिवानिद्रा त्याग कर देना चाहिये । उसका तिलक लगावे और 'ॐ नमो भगवते परिश्रमका कार्य करना भी मना है। केवल पतिका विश्वामित्राय नमः सर्वसुखीभ्यां विश्वामित्र आगच्छ सहवास रखना कहा है। अन्यथा होनेसे गर्भ नहीं स्वाहा' मन्त्रका जप करे तो सव प्राणियोंकी बुद्धि रहता। स्तम्भित होती है। कृष्ण अपराजिताका मूल छागीके दुग्धमें बांटकर 'ॐ ब्रह्मवेशिनि शिर रक्ष रक्ष स्वाहा' मन्त्र पढ़कर | ऋतुकालपर पीनेसे वन्धया गर्भधारण करती है।
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/४८
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।