इन्द्रजाल वृहस्पतिवारकी हाथोकी खोपड़ी में अोलका | अग्निमें छोड़नेसे समस्त विघ्न मिटता है। (दत्तात्रे यतन्त्र ) वीज बो मन्त्रपाठपूर्वक जलसेचन करे और फल ___ वशीकरण एवं आकर्षण वसन्त, विद्दषण ग्रीष्म, लगनेपर एक वीजको त्रिलोहसे लपेट मुखमें दवा ले। स्तम्भन वर्षा, मारण शिशिर, शान्तिकर्म शरत और इस प्रक्रियासे मनुष्य हस्ती जैसा बलवान् और वायु उच्चाटनकार्य हेमन्तको पूर्णिमाको करना चाहिये। तुल्य पराक्रमी हो सकता है। त्रिलोह सकल कार्यमें वशीकरण देखो। दिनके पूर्वाह्न वसन्त, मध्याह्न ग्रीष्म, प्रसिद्ध है। दश भाग सोना, बारह भाग तांबा और अपराह्न वर्षा, सन्धमा शिशिर, अर्धरात्र हेमन्त और सोलह भाग रूपा मिलानेसे त्रिलोह बनता है। महा फिर शरत् ऋतुका समय आता है। देवका वाक्य मिथ्या नहीं,-किसी वीजको अङ्गोलके पक्षादि निर्णय-मारणादि अभिचार कृष्णमें, और वीजमें मिला मट्टोमें बवि और फिर मन्त्र पढ़कर त्रि शान्ति प्रभृति मङ्गलकर्म शुक्लपक्षमें करना उचित है। लौहसे लपेट उसे मुखमें रखे तो साधक बिलकुल हादशी तथा एकादशीको मारण : तृतीया एवं नवमी- वैसा ही बन सकता है। कई वीज अकोलमें मिलाकर को वशीकरण ; चतुर्दशी, चतुर्थी तथा प्रतिपत्को बोनेसे उसी समय वृक्ष ऊगता है। अङ्गोलके फलका ! स्तम्भन और द्वितीया, षष्ठी एवं अष्टमीको शान्तिकर्म तैल एक विन्द मुख में डालनेसे मुर्दा प्रहरके मध्य हो होता है। जी उठता है। अश्विनी, मृगशिरा, मूला, पुष्था तथा पुनर्वसमें ___ शोभान्जनाका तैल, कपोतको विष्ठा, शूकर तथा वशीकरण और अनुराधा, जाष्ठा, उत्तराषाढ़ा एवं गर्दभकी चर्बी, हरिताल और मनःशिला एकमें मिला रोहिणी नक्षत्र में मारण, विजय, शान्ति तथा स्तम्भन टोका लगानेसे मनुष्य वारण-जैसा बन सकता है। । किया जाता है। इस सकल कायम तिथि और पेचकको विष्ठा एरण्डतलके साथ रगड गावमें नक्षत्रको विवेचना आवश्यक होती है, नहीं तो मन्त्रा- लगाते ही लोग पागल हो जाते हैं। दिको सिद्धि बिगड़ जाती है। सर्पका दन्त, काले बिच्छका कण्टक और छिप जय-पुथा नक्षत्र में गोजिह्वा और अपामार्गका कलो (ककलास) का रक्त एकमें पौस गात्रपर लगाते मूल उखाड़ मस्तकपर रखनेसे सकल विवाद में जय ही मनुष्य मरता है। मिलता है। सिन्दूर, गन्धक, हरिताल तथा मनःशिलाको एकत्र ___सौभाग्य-पुष्थानक्षत्र में खेत विकीरणका मूल पीस वस्त्रपर डालने और पीछे उसी वस्त्रको मस्तक उखाड़ दक्षिण वाहुपर बांधनेसे सौभाग्य बढ़ता है। पर बांधनेसे समस्त जगत् अग्निमय दीख पड़ता है। क्रोधोपशम-ॐ शान्त प्रशान्त सर्वक्रोधोपशमनी विकीरण, वट और उडम्बरका दुग्ध किसी पात्रो | स्वाहा' मन्त्र इक्कीस बार जपकर जो मनुष्य मुख धोता मध्य लगा कर जल डालनेसे दूध निकलता है। है, उसके प्रति किसीको क्रोध नहीं होता। पङ्कोलके फलका तैल अङ्गमें मलनेसे मनुष्य - खेत अपराजिताका मूल हस्तपर बांधने और राक्षस-जैसा लगता है और उसे देखते ही सब कोई शिवजटाका मूल मुखमें डालनेसे हस्ती निकट नहीं भय खाकर भागते हैं। पा सकता। अकोलके फलका तेल रात्रिको प्रदीपमें जलानेसे वृहतीमूल हस्त और मुखमें धारण करने से व्याघ्र- आकाशका भूत सकल भूमिपर दौख पड़ता है। का भय छट जाता है। बुध वा शनिबारको कक्लास मारकर शत्र गणके हीं होंहों श्रीं श्रों थों स्वाहा' मन्त्र पढ़कर पत्थर मूत्रोत्सर्ग-स्थानमें गाड़ दे। पोछे उसे न उखाड़नेसे | फंकनेसे व्याघ्र नतो मुख भुका सकता है और न शन क्लीब हो जाते हैं। चल हो सकता है। नारिकेलमूल कृष्णचतुर्दशीको गन्धक, हरिताल, गोमूत्र और विष एकत्र पोस | धारण करनेसे व्याघ्रका भय नहीं होता। (इन्द्रलालतन्त्र )
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/४७
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