पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/४६

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इन्द्रजननौय-इन्द्रजाल ४५ सम्बन्धः, छः। १ इन्द्रका जम्म । २ परमात्माका देह। मनुष्य हो जाता है। ६, कृष्णचतुर्दशीको कबू- सम्बन्ध विशेष। तरके मत्थे पर मट्टी डाल तिल बोये और दूधर्म इन्द्रजननीय (सं० वि० ) इन्द्रजन्म-सम्बन्धीय, इन्द्रको पानी मिला उसे सौं-चता रहे । फूल निकलनेपर उसे पैदायशका हाल बतानेवाला। मुखमें रखनेसे कोई उस मनुष्यको देख नहीं सकता। इन्द्रजम्बूकवत्पना (सं० स्त्री०) कृष्णसारिवा, काली और उस तिलके फलको कूटपीस गात्रमें लगा देनेसे सतावर। मनुष्य किङ्कर बन जाता है। तथा समग्र धन-सम्पत्ति इन्द्रजव (हिं०) इन्द्रयव देखो। स्वेच्छाक्रमसे छोड़ बैठता है। ७, फिर उसी तिलको इन्द्रजा (व.वि.) इन्ट्रसे उतपन, जो इन्द्रसे पैदा हो। कपिलाके दृधमें पीस गोली बनावे और सात राततक इन्द्रजानु (स० पु.) वानरविशेष, किसी बन्दरका नाम । पकाता रहे। पीछे गोली मुखमें दवा लेनेसे देवता भी इन्द्रजाल ( स० ली. ) इन्द्राणां इन्द्रियाणां उस मनुष्यको देख नहीं सकते। किन्तु गोली उगुल जालं पावरकं यहा इन्द्रस्येश्वरस्य जालं मायेव । देनेसे उसको सब लोग फिर देख सकते हैं। वह सौ १ इन्द्रका पाश। २ युद्ध-कल्पना, जङ्गका फरेब । वर्षतक जीता है और क्या स्त्री क्या पुरुष सब कोई ३ छल, धोखा। ४ माया, हस्तलाघव, तिलस्म, | उसके वश्य हो जाते हैं। ८,कृष्ण चतुर्दशीको शकुनिके बाजीगरी। ५ तन्त्रशास्त्र विशेष। मस्तक पर मट्टी डाल लहसुन लगायिये और फूल मन्त्र एवं द्रव्य द्वारा किसी वस्तुको अन्य प्रकार | आनपर पुष्थानक्षत्रमें तोड़ कपिलाके घृतसे काजल बनाना इन्द्रजाल नामक स्वतन्त्र शास्त्र तन्त्रके पारिये। उस फलको उक्त काजलमें मिला आंखमें अन्तर्गत है। गुरु उपदेश विना इसकी शिक्षा नहीं लगानेसे सौ योजन पर्यन्त दीख पड़ता है। दिनके मिलती। इन्द्रजालमें नाना विषय वर्णित हैं। उस समय नक्षत्र दृष्टिगोचर होते हैं। ऊंट, गर्दभ, महिष दृष्टान्त स्वरूप कुछ नीचे लिखते हैं,- . .. प्रभृति बड़े-बड़े जन्तुके मस्तकपर यदि लहसुन बोवे १, एक प्रस्थ (२ सेर परिमाण ) महाकाल या| और फल-फल तोड़ रखे तो फिर इस फल-फलको लाल इन्द्रायणक वीजमें धानोरसको सात भावना दे मुहमें डालनेसे उक्त जन्तुके जीवित हो जाने में कोई और उसे गोली जैसा बना मुखके भीतर रखें तो सन्देह नहीं रहता। मनुष्य कपोत बन जाता है। २, छागलके मस्तकपर | उक्त सकल धारणाका मन्त्र 'ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रए काली मट्टी रखने और उसमें धतूरेका वीज बोनेसे ल ल ॐ भौ स्वाहा' लचजप करनेसे पुरश्चरण और जो फल आता है,उसको गात्रमें लगाते ही मनुष्य बकरा | सहस्र जप करनेसे होम होता है। घृत द्वारा तर्पण बन जाता है। ३, कृष्णचतुर्दशीको मयूरके मस्तक- और मार्जन करना चाहिये। ब्राह्मणभोजनादि पर काली मट्टी चढ़ा संनका वीज डालनेसे जब फल- करानेसे सिद्धि मिलती है। फल उतरे, तब उसको गलेमें बांधते ही मनुष्य मयरका उल्लकी खोपड़ी में घतसे कज्जल पार उसे आंखमें रूप धारण कर लेता है। ४, कृष्णचतुर्दशीको मयरके | आंजनेपर अन्धकारमें भी पुस्तक पढ़ सकते हैं। 'ॐ मस्तकपर काली मट्टी लगा कपासका वीज बोनेसे | नमो नारायणाय विश्वम्भराय इन्द्रजाल-कौतुकानि दर्शय जब फल-फल लगे, तब उसे कूट-पीसकर गात्रपर सिद्धिं कुरु स्वाहा' मन्त्र १०८ बार जपनेसे कार्यसिद्धि मलनेसे मनुष्य पानीमें नहीं डूबता और भूमिकी तरह होती है। उक्त मन्त्र सिद्ध न होनेसे कार्य में सफलता जलपर खड़ा रहता है। ५, काले कौवेके मस्तक नहीं मिलती। पर मट्ठी डाल वृहती या बढ़न्तेका वीज बोये। | ॐ नमः परब्रह्म परमात्मने मम शरीरं पाहि और उसके फलको मुखमें दबा लेनेपर मनुष्य कौवेको पाहि कुरु कुरु' रक्षामन्त्र है। इसी मन्त्रसे रक्षा तरह उड़ता है, किन्तु उसे उगल देनेसे वह फिर बांध कार्य करना चाहिये। Vol. III. 12