४३ पणि वत्स प्रभृति प्रधान प्रधान असुरांको भी इन्द्रने । पौराणिकके मतमें इन्द्रके पिता कश्यप रहे। मारा था। (ऋक् १।१२।१८, १॥ १२ । ८-१०, ४ । १८॥ १२ माताका नाम अदिति था। इन्होंने वृत्रादि असुरोंका इत्यादि) नमुचि-वधक समय अखिय एवं सरखतौने वध करनेसे वृत्रहा नाम पाया। इन्द्र पूर्वदिक्के इन्द्रको साहाय्य दिया। पालक और सबको जलदान करनेवाले हैं। इस सम्बन्धपर एक गल्प है- तैत्तिरीय-ब्राह्मण में लिखा, इन्द्रको अपर किसी “इन्द्र स्य इन्द्रियमन्नस्य रस सोमस्य भव सुरया आसुरो नमुचिरहरत् । देवोके रूपपर मोह नहीं हुआ । इन्होंने केवल इन्द्रा- सोचिनौ च सरखतीच उपधावत् । शेपानोश्मि नमुचये न त्वा दिवा न णोको ही रूपपर मोहित हो पत्नी बनाया था। किन्तु नक्त' हनानि न दण्डेन न धन्वना न पृथेन न मुष्टिना न शुष्क ण न आट्रण पौराणिक मतसे इन्द्रने पुलोमा दैत्यको मार अथ मे दमहार्षीत् । इद' मे पाजिहीर्ष थ :ति । तेऽब्रुवन्नस्तु नाऽवाघ्यथ उसकी कन्या ग्रहण की थी। वही कन्या इन्द्राणी आहराम इति। सह न एतदथ बाहरत इत्यब्रवीदिति । तावश्विनौ च हुई। इन्होंने दितिके गर्भस्थ पुत्र को नाश करने के सरखतौ च अपांफेन वज्रमसिचन् न शुष्को न प्राः इति। तेन इन्द्रो लिये खण्ड खण्ड किया, उनौसे मरुद्गणने जन्म नमुचिरासरस्थ व्युष्टायां रावी अनुदिते आदित्ये न दिवा न नक्तमिति शिर उदवासयत् । तस्य शीर्ष 'किन्न लोहितमिवः सोमोतिष्ठत् ।" (शतपथ- लिया। दिति और मरुद देखो। . ब्राह्मण १२।७३।१) पारिजातके लिय इन्द्र के साथ कृष्णका विवाद . नमुचि नामक असुर इन्द्रका इन्ट्रिय, अबरस और हुआ था। कण और पारिजात देखो। व्रजके गोप इन्द्रको सुराके साथ सोमपात्र अपहरण कर ले गया। पोछ । पूजा करते रहे। किन्तु पोछे कृष्णने उस पूजाको । उन्होंने अश्विद्दय एवं सरस्वतीके निकट जाकर कहा, उठा दिया था। इन्द्र क्रुद्ध हो अनवरत जल मैंने नमुचिको दिवा अथवा रात्रिमें यष्टि, धनुः, चप बरसाने और व्रज डुबाने लगे। कृष्णने गोवर्द्धन टिका मुष्टिसे शुष्क अथवा आद्र स्थानपर न मारने धारणकर व्रजवासियों की रक्षा की। (हरिवंश ) इन्द्र के का शपथ किया है। इस समय मेरी सर्व शक्ति पुत्र जयन्त, ऋषभ और मोद्र रहे। दृतीय पाण्डव हरण कर ली है। क्या आपलोग मेरा उद्धार कर अर्जन भी इन्द्रपुत्र कहे जाते हैं। राज्यका अमरा- सकते हैं ?" उसके बाद अखिदय एवं सरस्वतोने वती, उद्यानका नन्दन, अखका उच्चैःश्रवा. हस्तीका
- जलके फेनसे वजको सिञ्चन कर उत्तर दिया, 'यह ऐरावत, रथका विमान, सारथिका मातलि, धनुःका
शुष्क वा श्राद्र नहीं हैं। इन्द्रने उसी वजसे नमु इन्द्रधनुः और असिका 'नाम परज है। इन्द्र सब चिका मस्तक खण्ड खण्ड कर डाला। उस समय देवताओंके राजा हैं। गुरुपत्नी अहल्याको हरण रात्रि बीतनपर भोर हो रहा था। सूर्योदय न होनसे | करनेसे इनके सहस्र चक्षुः हुआ। पहल्या देखो। प्रधान वह समय रात्रि दिन कैसे समझा जा सकता था। अस्त्र वन है। एक एक मनु पर्यन्त इन्द्रका अधि- नमुचिके मस्तक-छेदन काल सोम रक्त मिश्रित होने कार रहता है। राजत्वके बाद यह १०० वर्ष पर्यन्त पर अवज्ञा करने लगे, किन्तु पोछे सब कोई पो गये। ब्रह्माके निकट ब्रह्मविद्या अध्ययन करते, उसके बाद अथर्वसंहितामें लिखते,-इन्द्र असुरनारोके कैवल्य पाते हैं। इन्द्र त्वष्टपुत्र विश्वरूपके वध प्रेममें मुग्ध हुये थे। काठकके (१३.५) मतसे यह पापसे राज्यच्युत हुये। अनन्तर इन्होंने पाप भोग विलिस्तेङ्गा नामक दानवीपर अनुरक्त रहे। ऋक करने पर फिर अपना राज्य प्राप्त किया था। इन्होंने संहितामें इन्द्र के अतिशय सोमप्रिय होनेका विस्तर पर्वतोंका पक्ष छेदनेसे गोत्रहा और १०० शत अखमेध प्रमाण मिलता है। यन्न करनेसे शतक्रतु नाम पाया है। इन्दजित देखो। इन्द्र वारिवषण करते और वज एवं विद्युत् चलाते इन्द्र के नाम अनेक हैं-महेन्द्र, शक्रधनु, ऋभुक्षु, हैं। इन्होंने असुरोंके लोहनिर्मित नगर तोड़ असंख्य अह, दत्तेय, वचपाणि, मेघवाहन, पाकशासन, देव- दस्य वा दास जातिको विनाश किया था। : । पति, दिवस्पति, स्वर्गपति, उलूक, जिष्णु, मरुत्वान्,