४२२ ऊषपुट-जयगान जवपुट (सं.ली.) कागजमें लिपटा नमकका दाना। ऊसर (हिं.) ऊपर देखो। जवर (सं० वि०) जर्ष चारमृत्तिकां राति ददाति, ऊह (धातु) वा आत्म सक सेट । “ वित ऊष-र अथवा जप-रा-क। नोना स्थान,रेहको जगह। (कविकल्पद्रुम) सन्देहसे तर्क करना,शुबहसे बहस छेड़ना। “तव विद्या न वप्तव्या अभं बौनमिवोधरे।” (मनु २११२) ऊह (स• पु.) जह-घञ्। १ वितक, बहस। ऊषरज (स लो०) अषरात् जायते, ऊषर-जन-ड। २ अध्याहार, छिपाव । ३ परीक्षा, जांच । ४ अनन्वित १पांशुलवण। २ रोमक नामक अयस्कान्त विशेष। विभक्ति लिङ्गको छोड़ अन्वययोग्य विभक्तयादिको जषवान् (स० वि०) ऊषो विद्यतेऽस्य, ऊष-मतुप कल्पना। ५ प्रारोप, लगाव। ६ सिद्दिविशेष। मस्य वः । नोना स्थान, रेहको जगह। . ७ अनुमान, फर्ज। ........ जषा, उषा देखो। ऊहगान (सं० क्लो०) सामगानका एक ग्रन्थ।। जम, उप देखो। । साम देखो। ऊष्मण ( स० वि०) ऊभोऽस्तास्य, ऊष्म-न। ऊष्म- जहन (सं० ली.) वितर्क, बहस। ..... . युक्त, गर्म। जहनी (सं० स्त्री०) अह ल्यूट डोष्। सम्मानो। जमण्य (स.वि.) ऊष्म निवारणीयत्वेन अस्यास्ति, जहनोय (सं• त्रि.) तक्य, बहसके काबिल । अमन-यत्। अनिवारक, गौं दूर करनेवाला, ठण्डा। जहा (सं. स्त्री०) जह-टाप। जहदेखो। अमन् (स० पु०) अष-मनिन्। १ ग्रीष्म, गरमौ। ऊहापोह (स' त्रि०) अहस्तक: अपोहः अपगतो २. ताप, धप यत्र, बहुव्री०। १ तक शून्य. बेबहस। २ तक हारा अभप (सं० वि०) गर्म, भोजनका वाष्य खींच लेनेवाला। संशय मिटाये हुआ, जो बहससे शक मिटा चुका हो। जनपर (स.वि.) अमन के पहले पड़नेवाला। । ३ अध्ययनादिमें संशयहीन, सबक़में शक न रखने- जमप्रकृति (संत्रि.) अमन से निकला हुआ। । वाला। ४ सुहृदादि प्राप्तिविषयमें छतनिश्चय, दास्त अभवत् (सं• वि.) तप्त, गर्म। .वगैरहकी मुलाकात ठहराये हुआ। ५ दानादिमें जभान्त (स' 'त्रि.) जमन्में समाप्त होनेवाला। विधा मतशून्य, बेधड़क देनेवाला। ... अमान्तःस्थ ( स० पु० ) अध स्वर, जो पूरा खर न हो। अहित (सं० त्रि०) जहत। १ तर्कित, बहस ऊष्मोपगम (स• पु०) उत्तापका आगम, गर्मीको किया हुआ। २ अध्याहृत, छिपा हुआ। ३ अनुमित, आमद। | फर्ज किया हुआ। ४ सम्भावित, मुमकिन। .. जसन (हिं. पु.) वृक्षविशेष, तरमिरा, जेवा। इसे अद्य (सं०नि०) अह ण्यत् । १ तणीय, बहसके सर्वपकी भांति यव तथा गोध मके साथ बोते हैं। काबिल। २ व्यवहार्य, लगनवाला! . (को०) असनका तेज जलाते और खली गायों तथा भैसोंको ३ मीमांसा-शास्त्रोक्त जह विशेष। खिलाते हैं। | जागान, उहगान देखो।
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/४२३
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