इन्दौर व अपने हाथ ले शान्तिपूर्वक ३० वर्षतक । हरिराव मरे और उनके दत्तकपुत्र भी कुछ मास शासन चलाया था। १७८५ ई०को अहल्या-बाईके बाद चल बसे। १८५१ ई० को तुकारावजी सिंहा- मरनेपर एहविवादसे होलकर वंशका बल घटा। सनारूढ़ हुये थे। १८५७ ई० को इन्दौरको सेनाने किन्तु तुकारावजीके जारजपुत्र यशोवन्त रावने बिगड़ा : अंगरेजी पोलिटिकल रेसिडेण्ट सर हेनरी डण्डको काम बनाया था। एकबार भीषण रूपसे सेंधियाके घेर लिया। मुश्किलसे वह अपने बालबच्चों को ले साथ हारते ही उन्होंने अपनी सेना सुधारने के लिये भूपाल पहुंचे थे। किन्तु सेनाके कुछ सप्ताह बाद युरोपीय अफसर नौकर रखे। १८०२ ई०को यशो हथियार रख देनेसे फिर शान्ति हो गयी। वन्त-रावने पेशवा और सेंधियाको संयुक्त सेना हरा १८९८ ई०को इन्दौरमें वृटिश रेसिडेण्ट नियुक्त पूना नगर अधिकार किया था। किन्तु बसई में जो हुआ। उस समय राज्य-शासन-संक्रान्त कितने सन्धि हुयी, उसके अनुसार यशोवन्त-रावको सवारी नियम परिवर्तित और मन्त्रिसभा स्थापित हुई। इन्दौर वापस आयी और पेशवाको उनको राजधानी १९०३ ई. महाराज शिवाजीराव होलकर अपने मिल गयो। १८०३ ई के महाराष्ट्र-युद्धसे यशोवन्त १२ वर्षकै अवस्थावाले पुत्र तुकाजी रावको राज्यभार राव अलग रहे। अन्तको वह अंगरेज सरकारसे लड़ सौंपा। बाद १८०८ ई०को महाराज शिवाजीका गये थे। पहले तो उन्होंने करनल मोनसनको पौछ | परलोक हुआ। महाराज तुकारावजी इस समय हटाया और अंगरेज राज्यपर आक्रमण मारा, किन्तु वर्तमान महीप है। होलकर देखो। अन्तको लाड लेकसे हारनेपर १८०५ ई के दिसम्बर इन्दौर राज्यको लोकसंख्या नौ लाखसे ऊपर है। मास बियास नदी किनारे आत्मसमर्पणकर सन्धिपत्र ____अंगरेज इन्दौरको रक्षा करते और दूसरे राज्यसे लिख दिया। सन्धिके अनुसार युद्ध में जीता प्रान्त विवाद बढ़ने पर मिटा देते हैं। इन्दौरके महाराज अंगरेजोको मिला था। किन्तु दूसरे वर्ष अंगरेजोंने | दूसरे राज्यसे सीधे पत्रव्यवहार न चलाने, अधिक उनका अधिकार वापस किया। १८११ ई०को यशो सेना न रखने, किसी युरोपीय या अमेरिकनको अपने वन्तराव पागल होकर मर गये। उनके लड़के मल्हार राज्यमें नौकरी न देने पर वाध्य हैं। उन्हें गोद लेनेकी राव रहे, जो तुलसी-बाई नामक रानौसे पैदा हये सनद दी गयी है। अंगरेजीमें १८ और अपने थे। कक वर्षतक राज्यमें कितना ही झगडा चला| राज्यमें २१ तोपोंकी सलामी वह पाते हैं। ३१०० और पिण्डारी डाकुवोंका उपद्रव बढ़ा। सेनाके विप्लव मामूली तथा २१५० गैरपाबन्द पैदल और २१०० मचाने पर रानीने अपनी और मल्हार रावकी रक्षाके मामूली एवं १२०० गैरपाबन्द सवार रहते हैं। २४ लिये अंगरेज सरकारसे सहायता मांगी थी। इसी बीच तोपोंमें ३४० आदमी लगते हैं। महाराजको फांसी पेशवा और अंगरेज सरकारमें युद्ध लग गया। इन्दौरने देनेका अधिकार प्राप्त है। भी पेशवाके साथ योग दिया था। रानीका वध हुआ राज्यका प्रायः बढ़ते जाता है। इन्दौरकी रेसि- और महीदपुरमें इन्दौरकी सेनाको पूर्ण रीतिसे नीचा | डेन्मो में मध्य भारतीय राजावोंके लड़कों को शिक्षा देखना पड़ा। १८१८ ई०को मन्दसोरमें जो सन्धि देने के लिये राजकुमार-कालेज बना है। किन्तु वह हुयी, उससे कितनी ही भूमि राज्यसे निकल गयो राज्यसे कोई सम्बन्ध नहीं रखता, समस्त व्यय थो। १८३३ ई० को मल्हाररावके मरनेपर उनकी अंगरेज-सरकारसे मिलता है। १२से २० पर्यन्त राज- विधवा रानीने मार्तण्ड-रावको गोद लिया। किन्तु कुमार शिक्षा पाते हैं। महाराजके स्कलमें केवल कुछ सप्ताह बाद मार्तण्ड-रावको निकाल हरिरावने | दक्षिणी ब्राह्मण पढ़ते हैं। मन्दसोर और खारगांवमें" राज्यका भार अपने हाथ उठाया था । हरिरावके समय भी अंगरेजी स्कूल हैं। समस्त राज्यमे अराजकताकी धूम रही। १८४.१ ई०को । २. इन्दौर राज्यका प्रधान नगर। यह अक्षा० २२० Vol III.
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