पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/४१८

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जर्णपट-जर्वकेश जर्ण पट (सं० पु०) लूता, मकड़ा। (सपु०) अर्जेन दृणाति विदारयति, जर्ज- ऊर्णमद (सं० वि०) जर्णमिव नदीयः, जण- अल अच् वा। अर्जि दृणतेरणचौ पूर्वपदान्यलोपथ । उण् ५।३० । मद्रीयस् निपातनात्। कम्बलादिके समान कोमल, १ धीर, बहादुर। २ राचस। ३ धान्यादि रखनेका कम्बलकी तरह मुलायम। एक पात्र, कुशूल। "ऊर्गमदं प्रथख ।” (कौशिकमू० २३।१३७) जव (स.वि.) उत-हाङ-डः पृषोदरादित्वादूरा- अर्णवाभि, ऊनाभ देखो। देशः। १ उच्च, ऊंचा। २ उत्कृष्ट, उम्दा । ३ उप- ऊर्ण (सं. स्त्रो०) अणु-ड-टाप् । जाते डः । उप ५४७ रिस्थ, उपरो। ४ अनन्तर, पिछला। ५ परित्यक्ता, १ मेषादिका लोम, पश्म, जन। पश्म देखो। २ भृदयके छुटा। ६ उत्पाटित, उखड़ा। (लो.) ७ उच्चता, मध्यवर्ती मृणालसूत्रके समान सूक्ष्म रोमराजीका चिह्न ऊंचापन। ८ अव देश, उपरौ मुल्क। ८ मृदङ्ग विशेष। यह चिह्न होनेसे मनुष्य चक्रवर्ती राजा वा। विशेष, किसी किस्मका ढोल या तबला। महायोगी होता है। ३ चित्ररथ गन्धर्वकी पत्नी। । ऊधक (सं. पु०) अव: सन् कायति शब्दायते, ऊर्णापिण्ड (सं० पु०) अनका गोला। जवं-कैक। मृदङ्गविशेष, किसी किस्म का ढोल या अर्णामय (सं० लो०) जर्णा विकारार्थे मयट । मेष तबला। लीमनिर्मित सूत्रादि, ऊनी धागा वगैरह। । ऊध्वं कच (सं० त्रि.) अर्धा उत्पाटिता: कचा यस्य, "कामयं कौतुकहस्तसूवम् ।” (कुमार) । बहुव्री०। अवंगत केश रखनेवाला, जो बाल नोचा ऊर्णायु (सं.पु.) अर्णा अम्त्यस्य, ऊर्णा-युस् सित्वात् या उखाड़ा जा चुका हो। . प्रातो न लोपः। १ मेषलोम-निर्मित कम्बलादि, अलकण्टा (सं० स्त्रो०) अर्ध्व कण्टः कण्टको यस्याः, ऊनी कम्बल वगैरह। २ मेष, भेड़। ३ जणंनाभ, बहुव्रौ।। महाशतावरो, बड़ा सतावर। मकड़ा। ४ क्षणभङ्ग। ५ किसो गन्धर्वका नाम। अव कण्ठ (सं० वि०) अव: कण्ठो यस्य, बहुव्रौ । जर्णावत् (सं.वि.) जणानिर्मित, उनी। ग्रोवादेश उन्नत किये हुआ, जो गर्दन उठाये हो. जावन (६० वि०) ऊर्णा अस्यास्ति, ऊर्णा वनच्। ऊध्र्व कण (स त्रि०) कान खड़े किये हुआ। १ ऊर्णायुक्त, जनसे भराहुआ। २ मेषादिलोमनिर्मित, ऊर्ध्वकर्म ( सं० क्लो०) जव जव देशप्राप्ता) जनी। “जीवनमित्येतत् वरुणस्य नाभिम् ।” (शतपथब्रा० ७।३।२।३५) कर्म। मृतव्यशिके उद्देश्यसे किया जानेवाला सकल कर्णावल (सं० वि०) अर्णायुक्त, जनी। वाहादि। जासूत्र (वै.ली.) जर्णा एव सूत्रम्। मेषादिलोम, अव काय (सपु०-लो०) कायस्य जवम् । १ कटि- जन। “कर्णसूत्रेण कवयो वयति।” (शक्लयजुः १९८४) देशसे उपरिस्थ अवयव, कमरसे उपरका जिस्म । जर्व ऊर्णास्तुक (स० त्रि०) ऊर्णायुक्त, ऊनी, भेड़ वगैरहके, उन्नत: कायो यस्य, बहुबो०। उन्नत देहवाला, जो बालका बना हुआ। । ऊंचा पूरा जिस्म रखता हो। कर्णास्तुका ( स० स्त्री० ) ऊर्णास्तवक, जनको लच्छो। ऊर्ध्वक्शन (स० त्रि.) फेनाता हुआ, जो आग जणु (धातु) अदा० उभ० सक० सेट् । “ऊणु मल आच्छादने छोड़ रहा हो। यह सोमका विशेषण है। (कविकल्पद्रुम) पाच्छादन करना ढांकना। "ऊर्ण नाव स शस्त्री अवं केतु (स. त्रि०) ऊर्ध्व उन्नत केतुर्यस्य यत्र वा। ६ नराणामनीकिनीम् ।” (भटि १४।१०३) उस्थित ध्वजावाला, जिसके झण्डा खड़ा रहे। २ उड़तौ जणुत (सवि.) आच्छादित, ढका हुआ। ध्वजावाला, जिसमें झण्डा फहराता देखें। (पु.) जणु वान् (सं.वि.) आच्छादन करनेवाला, जी ३ जनकवंशीय एक राजा। . ढांकता हो। ___ "ऊर्ध्वकेतु सनम्दाजादनोऽव पुरजित सुतः ।" (भामवत ११३) जर्द (सं० वि०) अर्द-पच् । क्रीडायुक्त, खेलाड़ी। जव केश (स'० पु०) जर्व उव्रतः केशो यस्य, बहुव्री। Vol. III. 105 राय हा.