ऊर्जस्-ऊर्णनाभ ४१५ ऊर्जस् (सं० क्ली० ) ऊर्ज-सुन्। १ बल, जोर। स्थान तिब्बतसे स्वतन्त्र हुअा है। उक्त पय प्राय: २ अबरस विशेष। (भारत, अनु० ११२ १०) अधैं मोल विस्तृत है। उद्भिदादि अधिक नहीं उप- अर्जरानि (संपु०) बलदायक, ताकत देनेबाला। जते। स्थान-स्थान पर केवल स्तुपाकार प्रस्तर पड़े हैं। ऊर्जस्तम्भ (स• पु०) द्वितीय मन्वन्तरके सप्तर्षि में . शतद्रु नदी पार करनेपर देव नामक स्थानमें कुछ एक ऋषि। । उत्तर पहुंचने पर कई क्षुद्र ग्राम लक्षित होते हैं। ऊज स्वत (स' त्रि.) शक्तिशाली, ताकतवर। अजवती (स. स्त्री०) १ दक्षकन्या तथा धर्मपत्नी। देव नामक राजा ग्रोम कालमें यहीं आकर रहते थे। २ प्रियव्रतकी कन्या और उशनाकी पत्नी। ३ प्राणको ऊ देशमें यही स्थान अति मनोरम है। थोडी दर पत्नी। आगे गिरिमालासे सुवर्ण निकलता है। क्षुद्र क्षुद्र ऊर्जस्वी (स'लो०) ऊर्जस-विन्। १ अलङ्कार- पर्वत ग्रेनाइट प्रस्तरके बने हैं। उसके बीच-बीच विशेष। जिससे अतिशय महङ्कार झलकता, उसे अकोक-जैसे पत्थरके टुकड़े भी देखने में आते हैं। कवि अजखी अलङ्कार कहते हैं। (त्रि.) अति- यहां के लोग स्रोतके जलसे धो स्वण कणाको आहरण शयितं ऊर्जी बलमस्वास्ति। २ अतिशय बलवान्, करते हैं। बड़ा जोरावर। ३ तेजखी। । उर्ण देशमें शशक बहुत हैं। उनके पिछले पैर जर्जा (सं. स्त्री०) ऊज भावे अ-टाप। १ बल, ओर लोम बड़े होते हैं। गो, अश्व और गर्दभ प्रायः जोरावरौ। २ उत्साह, मौज। ३ वृद्धि, उठान। देख पड़ते हैं। हरण-जैसा एक जन्तु होता है। वह ४ अन्नरसको वितति विशेष । इन्दुर जैसा लगता है। दोनों कान बहुत बढ़े होते जर्जानी, जो देखो। हैं। किन्तु पूछका पता नहीं चलता। जिस छागके ऊर्जावान (संत्रि०) ऊर्जा प्रस्यास्ति, ऊर्जा-मतुप, लोमसे शाल बनता, वह यहां देखने को मिलता है। मस्य वः। १ बलवान्, ताकतवर। २ वृदियुक्त, बढा - पहले यह जनपद सूर्यवंशीय क्षत्रियों के अधिकारमें हुआ। स्त्रियां डोप । अर्जावती। था। एक बार लाधकके उग्र प्रकति तातारोंने यहांक “ऊनावती महापुण्यां मधुमती' विवम गाम् ।" (भारत, अनु० २६१०) राजाको मार डाला था। राजवंशीयोंने चीन-सम्रा- अजित (म त्रि०) अर्जत। १ बलशाली, ताकत ट्से साहाय्य-मांगा। कुछ काल यह चीन-सम्राटको वर। २ वृद्धियुक्त, उभरा हुआ। ३ विख्यात, मशहर रक्षणावेक्षण में पड़ा था, पौछे तिव्वतवाले दलई , ४ तेजखी। ५ उत्साहित, हौसलेमन्द। . लामाके हाथ लगा। "उपपत्तिमर्निताश्चयम् ।” (किरात ) यहांके अधिवासियोको अनिया कहते हैं। ऊर्जितात्रय (स० पु०) श्रेष्ठ, बड़ा, दिलदार। जण नाभ (सं० पु०) अर्णेव तन्तुर्नाभौ यस्य, नाभे- ऊर्जी (स.वि.) खाद्यविशिष्ट, जिसके पास खुब रुपतयानमित्यच् इखः । यापोः संज्ञाछन्दसोर्वहुलम् । पाहाश६३ . खाना रहे। कोटविशेष, मकड़ा। अपर नाम लता, तन्तुवाय और ऊण (स० वि०) ऊर्या प्रस्थास्ति, ऊर्णा अशै | मर्कटक है। यह नाना जातीय रहता और नाना आदित्वात् अच्। मेषलोमनिर्मित, जनौ, जनका श्रेणीमें विभक्त पड़ता है। पृथिवीके प्रायः सकल बना हुआ। देशोंमें ऊनाभ मिलता है। किन्तु क्रान्तिमण्डल- ऊर्ण देश-एक प्राचीन जनपद । ( भारत, सभा ५॥१८) | पर हो. इसका रहना अधिक है। विशेषतः कर्कट यह जनपद कैलास और हिमालयके मध्य अवस्थित / क्रान्तिका जण नाम बहदाकार होता है। वह केवल है। इससे पूर्व रावण-इद और उत्तरपश्चिम लाधक क्षुद्र क्षुद्र कोट खाकर ही सन्तुष्ट नहीं रहता, समय प्रदेश है। नौतिघाट नामक एक पथ द्वारा यह पाकर छोटे छोटे पचियों पर भोपाक्रमण करता है।
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/४१६
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