जताताई-ऊनौ जताताई (हिं. वि.) बे समझ, उजड्ड, जटप- 1 ऊधम (हिं. पु.) उत्पात, बखेड़ा, झगड़ा। टांग काम करनेवाला। जधमी (हिं० वि० ) उपद्रवी, झगड़ालू, बखेड़िया। जति (स० स्त्री०) अव-क्तिन् जट, वे-क्तिन् । १ रक्षा, जधर (वै० क्लो०) अधस् पृषोदरादित्वात् सस्य ः। हिफाजत। २ वयन, बुनावट । ३ सिलाई, सौनेका पशस्तन, चौपायोंका घन। “ऊधनलग्रा जरन्त ।" (अक काम । ४ लीला. तमाशा । ५ क्षरणा, चुवाई। कर्तरि घरा१२) शिच । ६ रक्षाकत्तों, रखवाली करनेवालो। ७ पुरा-जधव (हिं.) उद्धव देखो। णोंके दशविध लक्षण में कर्मको वासना । जधस् (वै० क्लो०) जन्द-प्रमुन्, जन्दस्य जधादेशः । ___मन्वन्तराणि सद्धर्म ऊतयः कर्मवासना: " (भागवत ।२०।१४) पशस्तन, चौपायेका थन । (शतपथब्रा० २।५।१५) अतिम (हिं.) उत्तम देखो। जधस्य (सं. लो०) अधसि भवम्, उधस-यत् । जद (अ० पु.) १ अगुरु वृक्ष, अगरका दरखू त । १ टुग्ध, दूध । (वि.)२ दुग्धकर, दूध पैदा करनेवाला। २ अगुरुकाष्ठ, अगरको लकड़ी। ३ वादिन विशेष, जधस्वती (सं० स्त्री०) जवम्-मतुप, मस्य वः स्त्रियां बरबत बाजा। (हि.) ४ उद्दिडाल, जद बिलाव। डोप । अपने स्तनमें अधिक टुग्ध रखनेवालो गो, अदन, ऊदल देखो। | जो गाय अपने थनमें ज्यादा दूध रखती हो। ऊदबत्ती (हिं० स्त्री०) धूपबत्ती। यह अगुरुका “सिषिचुःम जान् गावः पयसोधखतौमुदा।" (भामवत १।१०५) ठसे दाक्षिणात्यमें प्रस्तुत की जाती है। पूजापाठके अधो (हिं० ) ऊदव देखी। समय धूप देने और सुगन्ध लेनेको इसे सुलगाते हैं। जन् (धातु) अदा० चुरा० पर० सक० सेट। “ऊनत्व अदविलाव (हिं.) उदिडाल देखो। परिहाने। ( कवि० टु) न्यून बनाना, कम करना, घटाना। उदल (हिं. पु.) १ वृष-विशेष, गुलबादल। यह | जन (स.त्रि०) उनन्-अच् अथवा अव-नक-उट् । ब्रह्म, दाक्षिणात्य और हिमालय के नीचे वनमें अधिक इषिश्चिदोङ प्यविभ्यो नक्। उप २२ । ज्वरत्वरसियऽविमवामिति । पा उपजता है। इसका तन्तु बहुत दृढ़ होता है। उससे दाहा२०। १ होन, छोटा। २ न्यून, कम । ३ असं पूर्ण, बहुत मोटो रज्ज बनती है। २ उदयसिंह। यह नातमाम। “ऊन न सत्वेष्वविको बवाधे ।" (रषु २११४) थाल्हाके छोटे भाई थे। जदन महोवेवाले नृपति पर (हिं.) ४ ऊर्णा, चौपायोका गर्म रोयां। भारतमें मालके मुख्य सामन्तोंमें एक थे। बाल्य कालमें हो। हिमालयके मेषका रोयां उत्तम होता है। काश्मोर इन्होंने माड़व पर चढ़ अपने बापका दांव लिया।। तथा तिब्बत के लिये विख्यात है। अफगानिस्थान- पृथ्वीराजसे भी इन्होंने कई बार युद्ध किया था। को भेड़ भी अच्छा जन देती है। अर्णा का तन्तु बहुत अन्तको बेलाके गौने में पृथ्वीराजके अन्यतम वीर चौड़ाने सूक्ष्म, दीर्घ, दृढ़, कोमल और दोप्त निकलता है। इन्हें मार डाला। जदलको वीरता भारतप्रसिद्ध है। जनक (सत्रि०) जन स्वार्थ कन् । होन, छोटा। उदा (हिं.वि.) १रक्तवर्ण मिश्रित कृष्णवर्ण, | जनचत्वारिंश (सं० त्रि.) जनचत्वारिंशतः पूरयः, सुरखी-अमिज काला बैंगनो। (पु०) अश्वविशेष, एक उट्। चत्वारिंशसे एक संख्या न्यून, चालीस, एक घोड़ा। यह रक्तवर्ष मिश्रित कष्णवर्ण का होता है।। कम चालीस, ३८। जदी-सेम (हिं॰ स्त्री.) केवांच। जनता (हिं. स्त्री०) न्यूनता, कमौ। ऊधन (वै. लो०) अधस पृषोदरत्वात् सस्य नः। ऊनविंशत (सं० त्रि०) उनतीस, २९ पशका स्तन, चौपायेका थन। . अनविंशति (सं० वि०) उन्नीस, १८ । "उताई नसुतसोम ते दिवा सख्याय वन उधनि।" (ऋक् सा१०४२०) |जना (हिं० वि०) न्यून, कम, छोटा । अधन्ध (स• लो०) अधनि भवम्, अधन्-यत् । जनित (सं० वि०) घटाया या कम किया हुआ। | जनी (हिं. वि.) १ कई निर्मित, जनका बना
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/४१२
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