. इन्दौर है। यह उत्तरसे दक्षिण १२० मोल लम्बा और १८७६ ई०को नर्मदापर पुल बंधा था। इन्दौरसे नीम- ८२ मील चौड़ा है। बीचो बीच नर्मदा नदी बहती चको जानेवाली पक्की सड़कपर ही मवू नगर पड़ता है। राज्यका दूसरा बड़ा भाग अक्षा० २४.३ एवं है। इन्दौर से खंडवेको भी पक्की सड़क निकली है। २४.४० उ० और द्राव. ७५०६ तथा ७६° १२ इन्दौर नगरमें महाराज रूईका एक पुतलोघर पू०के बीच पड़ता है। यह प्रदेश पूर्व से पश्चिम ७० चलाते हैं। अफीम धड़ाधड़ बाहर भेजी जाती है। मील लम्बा ४० मील चौड़ा है। प्रधान नगर राम अन्नका चालान अधिक नहीं होता। पुरा, भानपुरा और चंदवाड़ा है। तीसरा भाग इतिहास-होलकर वंश गड़रिये सहाराष्ट्रोंसे सम्बन्ध अक्षा० २३. २८ उ० तथा ट्राधि० ८५° ४२ पू०पर रखता है। किसी गड़दियेके लड़के मल्हार रावने अवस्थित और महोदपुर नगरसे संयुक्त है। चौथे इस वंशकी प्रतिष्ठा की है। वह १६८३ ई०को भागमें अक्षा० २२०१० उ० और द्राधि० ७४° ३८ दक्षिणमें नीरा नदीपर होल नामक ग्राममें उत्- पू०पर धीनगर विद्यमान है। कई छोटे-छोटे राज्य पन्न हुये थे। करका अर्थ अधिवासी है। इसीसे इस इन्दौरके अधीन हैं। सिवा इसके खासगी या सरकारी वंशका उपाधि होलकर अर्थात् होल ग्रामका १५०से भी अधिक ग्राम लगते हैं। ग्राम समृद्ध हैं। अधिवासी पड़ गया है। युवावस्था पर मल्हार राव प्रायः दश लाख रुपये वार्षिक ग्रामोंका प्राय है। अपने घरका काम छोड़ किसी महाराष्ट्र पदाधिकारी- उत्तरमें चम्बल और दक्षिण में नर्मदा नदी बहती। को अश्वारोही सेनामें भरती हुये थे। १७२४ ई०को है। दक्षिण दिक् विन्ध्याचल पर्वत खड़ा है। राज्यके वह पेशवाके अधीन पांच सौ सवारोंके नायक बने । मध्यको मन्दसोर उपत्यका समुद्रतलसे छः सात हजार थोड़े ही दिनमें मल्हार रावको कितनी ही भूमि फोट ऊंची है । ढाक, बल और दूसरे झाड़का जङ्गल पुरस्कार स्वरूप मिली थी। १७३२ ई०को उन्होंने पड़ता है। भूमि उवैरा है। प्रधानत: गेहूं, चावल, पैगवाके प्रधान सेनापति बन मालवेके मुगल सूबेदार- बाजरा, दाल, राई, सरसों, गन्ना और रूईको फसल को युद्धमें नीचा देखाया, इस विजयके उपलक्ष में होती है। अहिफेनको कृषिके लिये भूमि अतिशय मल्हाररावको इन्दौर और जीते प्रान्तका अधि- ___ उपयुक्त है। उम्दा तम्बाकू भी बहुत पैदा होती। कांश सैनिक व्ययके लिये दिया गया था। १७३५ है। जङ्गलमें साखको बीड़ लगायी जाती है। वन्य ई०को वह नर्मदासे उत्तर रहनेवाली महाराष्ट्र-सेनाके पशु सिंह, चित्रव्याघ्र, विडाल, तरक्षु, शृगाल, नौल अध्यक्ष बने। फिर बारह वर्षतक मल्हारराव मुग- गाव, और जङ्गली भैसा मिलता है। नक्र और | लोंसे लड़ने और बसरेसे पोर्तगीजोंको निकालने विषाक्त सपैकी कोई कमी नहीं। तथा रुहेलोंसे लखनऊको नवाबी बचाने में सहायता इन्दौर में राजवंशीय महाराष्ट्र, हिन्दू, कुछ मुसल पहुंचाते रहे। इसी बीच अधिकार और प्रभाव मान और बहुतसे गोंड तथा भौल रहते हैं। सेनामें बढ़नेसे वह भारतीय नरेशोंमें अग्रगण्य हो गये थे। युक्तप्रदेश और पञ्जाबके लोग अधिकांश हैं। भील | १७६१ ई०को पाणिपथ युद्धसे मल्हारराव सकुशल वन्यद्रव्य खा, आखेट मार और सभ्य प्रतिवासीको लट पीछे हट पाये। वह मध्य-भारत पहुंचते ही अपने अपना निर्वाह करते हैं। किन्तु अब युद्धपाठशालामें विशाल राज्यको घटा सम्बद्द और नियमित बनाने में शिक्षा पानसे वह पुलिस और पलटनमें अच्छा काम लगे। १७६५ ई०को मल्हारराव स्वर्गवासी हुये। देने लगे हैं। लोकसंख्या दश लाखसे अधिक है। मल्हाररावके पुत्र मालीरावको राज्यका उत्तराधिकार बम्बईसे ३५३ मोल दूर खंडवा जश्शनसे होल- मिला था। किन्तु वह सिंहासनपर बैठने के नौ मास कर-प्टेट-रेलवे मवूकी राह इन्दौर नगरको जाती है। बाद हो पागल होकर मर गये। मालौरावके बाद महाराजको अतिरिक्त लाभका अधांश मिलता है।। सुप्रसिई अहल्या-बाईने सेनापति तुकाराव जोके साथ
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/४१
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।