- उसूल-उ उसूल (प.पु.) १ मूलतत्व, जड़। २ मत, अकीदा।| उस्रयामन् (सं०वि०) प्रातः कालके समय बाहर यह शब्द 'अस्ल'का बहुवचन है। निकलने वाला।::.. - ... : :: उसेना (हि. क्रि०) पानीमें डाल और आगपर| उस्रा ( स० स्त्री०) उस्र-टाप । १ गाभी, गाय ! चढा किसी चीज को मिल न जानतक पकाना,उबालना। २ इन्दुरकर्णी लता, एक वेल। ३ पृथिवी, ज.मौन । उसेय (हि• पु०) वेणु विशेष, किसी किस्मका उनि (स'० स्त्री०) वस-कि । भ्रमणकारिणी, बांस। यह खसिया तथा जयंतिया पर्वत पर उप- चलनेवालो। .. जता है। उच्चता ५०-६० फीट रहती है। इसके | उस्रिक (वै० पु०.) उन-ठन् । जीर्ण वृष, बुट्टा बैल । चोंगे बमते, जो अनेक वस्तु रखनेके काममें लगते हैं।!.. "ये त्वादेवोषिकं मन्धमाना: पापा भद्रमुपजो षचाः।"(ऋक् १।१०१५) उसेर करना (हिं. क्रि.) १ स्मरण रखन, याद न उस्रिका (स. स्त्री०) उस्रिक टाप। अल्पदुग्ध- भूलना। २ प्रतीक्षा करना, राह देखना। ३ अप्र-! वती गाभी, थोड़ा दूध देनेवाली गाय। सब होना, नाराज, पड़ना। | उस्रिय (वै० पु.) उस अल्पार्थे घ। जीर्ण वृष, बुड्डा बैल । उस्तरा (फा.पु.) तुर, कुरा। काले बाल बना- "इहस्पतिरुनिया हव्यमुदः कनिवदहावशती रुदानत् । (सा५०४) मेको उस्तरा लेना और किसीका माल मारनेको कोरे| उम्रिया (वै० स्त्री०) उसिय-टाए। गयो, गाय। या उलटे उस्तरेसे मूडना कहते हैं। "पायातुमिव ऋतुभिः कल्पमान: संवेशयन् पृथिवीमुस्त्रियाभिः।" उस्ता (हिं. पु.) खालीफा, होशियार नाई। (अथर्व शप)... उस्ताद (फा० पु.) १ अध्यापक, माष्टर । २ ज्ञान- उड् (धातु) ग्वादि पर० सक० सेट् । इसका अर्थ वृद्ध, बड़ी अक्लका भादमी। “जाय उसाद खाली है। पीड़ित करना है। (खोकोक्ति) ३ धूत, चालाक, बदमाश। ४ गायक, उह (सं.. अव्य.) १ सम्बोधन वाचक ए। परे! वेश्याका गुरु। (वि.) ५ कलाविद्या, जानकार। श्री। २ निश्चयार्थवाणी-ठीक। दुरुस्त । खूव। ... उस्तादौ (फा. स्त्री०) १ कला कौशल, होशियारी, उहदा, मोहदा देखो। हुनर। २ चातुर्य, चालाको। ३ अध्यापकका कार्य, | उहदेदार, पोहदेदार देखो। माष्टरी। उहवां, उहां, वहां देखो। " उस्तानी ( फा• स्त्री.) १ गुरुपत्नी, उस्तादको औरत। उहान (सं० पु. ) देशविशेष, एक मुल्क। २ अध्यापिका, पढ़ानवाली औरत। ३ धूर्त स्त्री, | उहार, भोहार देखो। चालाक औरत। उहि, वह देखो। उम्र (सं० पु०) वस-रक् सम्प्रसारणम् । स्मायितचिव- | उही, वही देखो। विशकौति । उप ।१३। १ वृष, दैल। २ रश्मि, किरण । उह (वै. अव्य.) उह कू। १ खेदसूचक शब्द ३ सूय, पाफ़ताब। ४ अश्विनीकुमारहय। ५ देव। विशेष, ओह, बी, हाय। (त्रि०) २ वाहक, ले (वि.) ६ षासम्बन्धीय, सवेरे देख पड़नेवाला। जानेवाला। साम उहुव उपयुधः ।' (ऋक् ४।४५६४ ) ७ दीप्त, चमकदार। ८ स्वच्छ, साफ ।' उद्गमन उद्यमान (सं. त्रि.) वह-शानच कर्मणि। वहन कांरी.कंचा चटनेवाला।" ... | किया जानवाला जो माया मात्रा समन्वन (सं.वि.) दीप्त धनुयुत, चमकीली ययोद्यमानं खल भोगभीजिना।” (नषध) .... कमान् वाला। उ स पु०) वह-रक् सम्प्रसारणम्। वृष, बैल ।
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/४०९
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