उष्ट पादिका-उष्णप्रस्रवण बाद जब वृष्यात देखायी देता, तब मरुभूमिके मध्यसे उष्णकटिबन्ध (सं० पु०) ककैट क्रान्ति और मकर- निकाल यह कलौंदे या खरबूजका जल पी लेता है। क्रान्तिके मध्यका स्थान, मिन्तक-हारा, गर्म खण्ड । क्षुधा लगने पर जसे छोटा पक्षी बालका दाना तोड़ यह ४७ प्रशस्त है। उष्णकटिबन्ध में सूर्यको किरणे तोड़ चुगता, वैसेही शुतुरमुर्ग बड़े बड़े पत्थर, लोहे के सोधी पड़नेसे उष्णता अधिक रहती है। टकड़े, कङ्कड़, कांच के बरतन, तांवके सिक्के और टूटे उष्णकर (सं० पु.) उष्णः करः किरणो यस्य, जते निगलने लगता है। अफरीकाके लोग इसके अथवा उष्ण' करोति, उष्ण-क-अच। १ सूर्य, आफ- अण्ड खाते हैं। प्राचीन कालसे विलायतमें इसके ताब। (त्रि.) २ उष्णकारी, गर्म करनेवाला, जो परका बड़ा आदर है। पालनेसे शुतुरमुर्ग हिल गरमी लाता हो। जाता है। किन्तु अपरिचित व्यक्तिको निकट पाते उष्णकाल (स० पु०) उष्णश्चासौ कालच, कर्मधा। देख यह प्रायः आक्रमण करता है। बाइबिलमें ग्रीष्मकाल, गरमौका मौसम । शुतुरमुर्गका मांस निषिद्ध ठहरा है। (Levitiens ,xi. 16.) | "तक्रनैव ऋते दद्यात् नोषणकाले न दुर्बले।” ( मुश्रुत ) उष्टपादिका (स, स्त्री०) मदनमालिनी, चमेली। उष्णग (सं० पु०) ग्रीष्मकाल, गरमौका मौसम। उष्ट्रयान (सं० लो०) उष्ट्र द्वारा वहन किया जाने “चित्त रहसि मे सौमा नदीकूलमिवोच्छगः।” (रामायण ५॥३१॥३६) वाला यान, ऊंटगाड़ी। उष्णगु (सं० पु०) उष्णः गौः किरणो यस्य, ओका- उष्ट्रशिरोधर (स.ली.) भगन्दर रोगविशेष। । रस्य इखत्वम्। सूर्य. आफ़ताब। उष्ट्रस्थान (सं० लो०) उष्ट्रस्य स्थानम्, ६-तत् । उष्ट्रके उष्णकरण (स० त्रि०) उष्ण करनेवाला, जो गम पावासका स्थान, ऊंटके रहनेको जगह। करता हो। उष्ट्रासिका (सं. स्त्री०) उष्ट्रस्येव पासिका पास उष्णता (स. स्त्री०) आतप, गरमौ। नम्। उष्ट्रासन, अटकी तरह बैठनको हालत। उष्णत्व (सं० लो०) उष्णता, गरमी। उष्ट्रिका (सं० स्वी०) उष्ट्रस्य आकृतिरिव आकृति- उष्णादीधिति (सं० पु.) उष्ण दौधितयः किरणां यस्याः। १ मृन्मय सुरापात्र विशेष, शराब रखनेको यस्य। सूर्य, आफताब । एक महीका वरतन। उष्ट्रस्य स्त्री, उष्ट-कन्-टाप् अत उष्णनदी (स. स्त्री०) उष्णा चासो नदी चेति, इत्वम्। २ उष्ट, ऊंटनी।। नित्यकर्मधारयः। वैतरणी नदी। . ___"धुर्भङ्गविक्षेपविदारितोष्ट्रिका:” (माघ १२:१६ ) उष्णप्रस्रवण (स. क्लो०) तप्तकुण्ठ, गर्म पानीका उष्ट (सं० स्त्री०) उष-ष्टन्-डीए । उष्ट्रिका देखो। झरना। जिस प्रस्रवरसे उष्ण जल निकलता अथवा उष्ण (सं० पु. लो०) उष-नक् । इन्षिञ्जिदौङ ष्यविभयो । जिस स्थानका जल सर्वदा उष्ण रह बहता, उसका नक् । उप श२ । १ ग्रीष्म, गरमीका मौसम। २ आतप, | नाम उष्णप्रस्रवण पड़ता है। धूप। ३ पलाण्डु, प्याज। ४ उष्मा, जलन। ५ अग्नि, पृथिवीके नाना स्थानों में उष्णप्रस्रवण विद्यमान हैं। भाग। ६ सूर्य, श्राफताब। ७ नरकविशेष । ८ पित्त, भारतवर्षमें जो स्थान उष्णप्रस्रवण रहनेसे तीर्थ सफरा। ८ कौञ्चद्दीपस्थ वर्षविशेष। (त्रि.) समझ जाते, उनके नाम नीचे दिये जाते हैं- १० प्रशीतल, गर्म। ११ तीव्र तेज़। १२ अनलस, वौरभममें वक्रखर नामक पवित्र तीर्थस्थान है। फुरतोला। इस पुण्य भूमिमें न्यूनाधिक ८ प्रस्रवण चलते हैं। ___ वैद्यक मतसे उष्ण वीर्य द्रव्य पित्तप्रकोपकारी, लघु उनमें सूर्यकुण्ड नामक प्रस्रवण प्रधान है। उष्ण होते. एवं वातश्लेषनाशक होता है। भी सूर्यकुण्ड के जलसे लतायें उपजा करती हैं। जलके उपक (सं.वि.) उष्ण कार्य यस्य, उष्ण-कन्। ऊर्ध्व भागमें उपजनेवाली प्रायः हरी और अधो- १ क्षिप्रकारी, फुरतौला। भागमें होनेवाली अधिक तापके कारण पीली पड़
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/४०५
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