३८२ उरश्छद-उरहना समझ पड़ता है। अभिसार देश जाने पर तबिकटस्थ उरसना (हिं क्रि) चञ्चल होना, हिलना-डलना। उरगके राजाने अर्जनसे आकर युद्ध किया था। उरसाना (हिं क्रि० ) उद्दे ग बढ़ाना, वहम बढ़ाना। (भारत, सभा २६ १०) उरसिज (सं० पु.) उरसि वक्षःस्थले जायते, उरस पाचात्य प्राचीन भूवत्ता टलेमिने इस स्थानको | जन-ड। स्तन, औरतों की छाती। वर्श ( IFarsa Regio) बताया है। (Ptolemy, उरसिरह, उरसिज देखो। Geog. VII I 45) चीना इसे उ-ल-शी कहते थे। उरसिल (सं० वि०) उरस्-इलच। लोमादि-पोमादि- चौना परिव्राजक युअन् चुयङ्ग यहां आये थे। पिच्छादिभ्यः शनेलच:। पा ५/२।१० । प्रशस्त वक्षः स्थलवाला, उनके समय यह राज्य २०० लि (प्रायः साढ़े तीन जिसके भरी या चौड़ी छाती हो। सौ मील) विस्तृत था। प्रधान नगर एक मोलसे उरसिलोमा (स. त्रि.) वक्षःस्थलपर रोम रखने- अधिक था। उरश उस समयपर काश्मीर राज्यके वाला, जिसके छातीपर बाल रहें। अधीन रहा। युअन् चुयङ्गने राजधानीसे प्रायः उरसो (अरिसिंह)-उदयपुरके एक राणा। १७६२ आध कोस दूर अशोकनिर्मित एक बौद्ध स्त प देखा | ई में यह अपने पिता राणा राजसिंहके स्वर्गवास था। उसके निकट महायान मतावलम्बी कई बौद्ध रहते होनेसे गद्दीपर बैठे थे। किन्तु सरदार लोग इनसे थे। इस जनपदका नाम आजकल 'रश' चलता, जो चिढ़ गये। उन्होंने इन्हें राजच्य त कर स्वर्गीय राणाके मुजफ्फराबादसे पश्चिम पड़ता है। इस प्रदेशका प्रधान | मृत्यत्तर-जात रत्नसिंह नामक पुत्रको गद्दोपर बैठाना नगर मानसर, नौशहर और कृष्णगञ्ज वा हरिपुर है। चाहा। फिर एहयुद्ध होने लगा। दोनों दलोंने इसके अधिवासो अतिशय बलशाली और दुर्दान्त मराठोंसे साहाय्य मांगा। उज्जैनके निकट युद्ध में होते हैं। जलवायु मनोरम है। राणा हार गये। वचन्द बरवा देखो। उरश्छद (सं० पु० ) उरो छाद्यते अनेन, उरस्- | उरस्कट (स' पु०) उरः कव्यते श्राक्रियते अनेन, छद-णिच्-ध। कवच, बखतर। उरस्-कट-क । बालकका यज्ञोपवीत विशेष, जो सरस्, उरः देखी। जनेऊ लड़कों को किसो त्योहार पर मालाको तरह उरस (सं० त्रि०) १ दृढ़ एवं प्रशस्त वक्षःयुक्त, पहनाया जाता हो। मजबूत और चौड़े सोनेवाला । (हिं० वि०) उरस्तः (सं. अव्य.) उरसकादिक तसि। उरसो २ नीरस, फोका, जो खाटु न हो। ३ वक्षस्थल, सौना। यञ्च । पा ४।३।११४ । वक्षःस्थलसे, छातीको तर्फ। . ४ मरनेके दिनका मेला। यह अजमेरमें प्रति उरस्त्राण (सं० लो०) उरस्त्रायते, न करणे ल्यूट । वक्षः- वर्ष खवाजा मुईनुद्दीन चिश्तीके मरणदिवस पर लगता स्थलको बचानवाला कवच, छातीका तवा, बख्तर। है। यहां गुजरात और बम्बईके मोमिन अधिक प्रात | उरस्य (स. त्रि.) उरसा निर्मितः, उरस्-यत्। हैं। कितनी ही भेट चढ़ती है। रातको दरगाहमें बहु-१हृदयजात, सिदरिया, छातीसे निकला हुआ। उरस्- मूल्य वस्त्र बिछा रोशनी की जाती है। गाना होता अण। २ वक्षःस्थलमें सब्रिहित, सोने में लगा हुआ। और चङ्ग बजता है। लोग गोल बांधकर अपने शरीरको उरस-य। शाखादिभ्यो यः । या ४ ६१०३। ३ हृदययोग्य, तलवारों तथा कटारोंसे पीटते और दरगाहको चारो छातीका जोर चाहनेवाला। ४ धर्मज, असौल। ओर नाचते घूमते हैं। किन्तु मृत साधुके प्रतापसे ५ उत्तम, बढ़िया। उनको चोट नहीं लगती। बम्बई प्रान्तके थाना नग-उरस्वत् (स. त्रि.) उरस्-मतुप, मस्य वः । उर रमें भी इमाम शाह अलीकी दरगाहका उरस प्रसिद्ध सिल, भरी-पूरी छातीवाला। है। वेशाख मासमें कोई एक हजार मोमिन यह मेला उरहना (हिं. पु.) अवलम्बन, शिकवा, किसी देखने पाते हैं। । खराब कामकी शिकायत।
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/३८३
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