पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/३८०

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उम्मी-उरःक्षत उम्मी (हि.) उम्बी देखो।

विषयोंके साथ यह भी लिखा गया-कोटाके प्रधान

उम्मेद (फा० स्त्रो०) आशा, विश्वास, तमन्ना, मन्त्रीका पद जालिमसिंहके सन्तानको छोड़ दूसरा भरोसा। “एक दम हजार उम्मेद।" ( लोकोक्ति ) पा न सकेगा। उम्मेद खान्-बङ्गालवाले शासक शायस्ता खान्के पुत्र।। ३राजपूताना प्रान्तस्थ बूंदी राज्यके एक महाराज । १६६०-६५ ई० को शायस्ता खान्ने इन्हें पैदल फौजका १८०० ई में अपने पिता महाराज बुधसिंहके परलोक नायक बना चट्टग्राम जीतन भेजा था। इन्होंने पहुंचनेसे इन्होंने बन्धुवान्धव जोड़ बूदीपर अधिकार पाराकानियों का कितने ही स्थानोंपर हरा चट्टग्रामपर जमाया था। बुधसिह देखो। किन्तु अांबेरके महाराज एकाएक अधिकार कर लिया। ईखरी सिंहने आक्रमण कर इन्हें मार भगाया। उम्मेद उम्मेदवार (फा. पु०) १ आकाङ्की, मुतवक्का, बास सिंहने होलकरके साहाय्यसे १८०४ ई में ईश्वरी तकनेवाला। २ अवलम्बी, मातहत। (वि०) ३ अाशा- : सिंहको हराया और दो धर दवाया था। इसके विष्ट, जिसे उम्मेद रहे। उपलक्षमें पाटनका परगना होलकरको भेट मिला। डम्मेदवारी (फा. स्त्री०) स्पृहालुता, अ फिर जयपुरके महाराज सवायी माधवसिंह बंदीपर चाहना। चढ़े थे। किन्तु उन्होंने जो वार्षिक कर ठहराया, वह उन्मेद सिंह- राजपूतानाप्रान्तस्थ कोटा राज्यके महा अधिक दिन न चल पाया। १८१३ई में यह अपने पुत्र राव। यह १८४६ ई में गद्दीपर बैठे थे। अज- अजिसिंहको राज्य सौंप तीर्थ सेवनार्थ चलते बने। मेरके 'मेयो कालेज में इनकी शिक्षाका कार्य सम्पा- उम्य (सं० ली. ) उमाया प्रतस्या, उमा-यत् । दित हुआ। 'विभाषातिलमायोमाभ्यागुभ्यः। पा ५॥२॥४। औमौन, अतसा वा ___२ राजपूताना प्रान्तस्थ कोटा राज्यके एक राजा। हरिट्राका क्षेत्र, अलसी या इलदीका खेत । इनके पिताका नाम गुमानसिंह था। उन्होंने देव- उम्र (अ. स्त्री०) वयस, सिन। युवकको 'कम लोक चलते समय इन्हें प्रधान मन्त्री जालिमसिंह उम्र' या 'नौ उम्र', आजीवन क्लेशको 'उम्र भरका श्रालाको सौंपा। उस समय इनका वयस केवल पैमाना', वृद्धको ‘उम्ररसौदा', दोघेजीवनको 'उसनुह', दश वत्सर ही रहा। १८२७ई में राज्याधिकार जीवनयात्राको 'उम्रका प्याल', आजीवन बन्दीको मिला था। ज़ालिमसिंहने मराठोंका उत्पात उम्रकैदी और आजोवन बन्धनको उम्रकैद कहते हैं। अपनी प्रजापर पड़ने न दिया। १८६० ई में करनल उम्रचन्द्र बरवार-उदयपुरके एक दीवान। १७६८ मानसन होलकरसे हार कोटे पौछे फिरे थे। किन्तु ई में उज्जनके पास राजपूतों और मराठोंका युद्ध नानाप्रकार साहाय्य पाते भी वह नगरसे दूर हो रखे होनेपर राणा उरसी हारे थे। उदयपुरको सेंधियाके गये। कारण उनके वहां पहुंचनेसे होलकर चिढ़ घेरनेपर इन्होंने बड़े बुद्धिवल और पराक्रमसे बचाया। सकते थे। १८७४ ई०में अंगरेज गवरनमेण्टने उर-पर० सक. सेट सौत्रधातु। यह गमन करने होलकरके चार परगने जालिमसिंहको दिये, जो या चलने-फिरनेके अर्थमें व्यवहृत होता है। . पहले उनके ठेकैमें थे। कारण उन्होंने अंगरेजोको उर (सं० पु०) उर-क। १ मेष, मेढा, भेड़ । पूर्ण साहाय्य दिया और सझटके समय मित्रवत् २ एक ऋषि। इन्हें लोग वातवंशीय कहते हैं। व्यवहार किया था। किन्तु प्रभुभक्त जालिमसिंहने | उरः (सं० लो०) ऋ-असुन्-किच्च। १ वक्षः, हदय, उनकी सनद गवरनर जनरल लाड हेष्टिङ्गससे कह | दिल, छाती। “खयं दास उरो सावपि ।" (ऋक् १।१५८।५) महाराज उम्मेदसिंहके ही नाम लिखायो। १८७५ (वि.) २ उत्तम, बढ़िया, अच्छा। ई.को अन्यान्य राज्योंके साथ कोटा भी अंगरेज उर:क्षत (स. ली.) १ उरोव्रण, सोका जखम, गवरनमेण्ट के अधीन हुआ था। सन्धिपत्र में अन्यान्य/ छातीका घाव। २चयरोग, तपेदिक, ।,