३६० उपासनीय-उपेक्षा उपासनीय (स' त्रि.) उपासना किये जाने योग्य, पड़ता, वही क्षणिक है। सन्धि अथवा अस्थिके संयोग- जो परस्तिशके काबिल हो। स्थानमें उत्पन्न होनेवाला उपास्थि स्थायी कहलाता है। उपासा (स. स्त्री०) उप-पास भावे अ-टाप। समूहरूपसे निकलनेवाले उपास्थिक समावेशका नाम १ उपासना, मजहबी खयाल । २ सेवा, खिदमत।। आकस्मिक है। (हिं० पु०) ३ अन्न-जल ग्रहण न करनेवाला, जो उपास्थिक (सं० पु०) मत्स्यको एक श्रेणी, किसी फाक से हो। किस्म की मछली। जिस मत्स्यके कङ्कालमें कण्ठक उपासादित (स. त्रि.) उप-प्रा-सद-णिच-त । नहीं रहते, उसे उपास्थिक कहते हैं। १ प्राप्त, हासिल किया हुआ। (लो०) भावे त। उपास्य (स० त्रि. ) उप-आस कर्मणि ण्यत। २ प्राप्ति, हासिल। १ सेव्य, खिदमत किये जानेके काबिल। २ चिन्त- उपासित (स० त्रि०) उप-पास-त। १ पूजित, नीय, खयाल किये जाने के काबिल। (भारत, अनु ८ अ०) परस्तिश किया हुआ। २ उपासना करनेवाला, जी ३ माननीय, इज्जत किये जानेके लायक। (अव्य.) परस्तिश करता हो। ४ सेवा करके, खिदमत बजाकर। उपासितव्य (संत्रि०) उपासना किया जानेवाला, उपास्यमान ( सं० त्रि० ) उपासना किया जाने- जो परस्तिश किये जाने के काबिल हो। २ पूर्ण वाला, जो परस्तिश पा रहा हो। किया जानेवाला, जिसे पूरा करना पड़े। ३ चिन्त उपाहार (स० पु०) लघवाहार, इलका नाश्ता। नीय, खयाल किया जानेवाला। इसमें केवल फल और मिष्टान्नादि खाते हैं। उपासिट (स. त्रि.) उपासना करनेवाला, जो उपाहित (सं० त्रि. ) उप-आ-धा-क्त। १ आरो- पूजता हो। पित, लगाया हुआ। (लौ०) २ अग्ना त्पात, उपासी, उपासित देखो। आगका झगड़ा। उपासीन (स'• त्रि०) निकट बैठा हुआ, जो दखल उपाहृत ( सं० त्रि.) उप-आ-हक्त। १ टहीत, जमाये हो। पकड़ा हुआ। २ समर्पित, नजर किया हुआ, जो दे उपास्तमन (सं० लो० ) सूर्यास्त, गु.रुब-आफताब, | डाला गया हो। सूरजका बना। उपेक्ष ( स० पु०) श्वफल्कके पुत्र और अकरके उपास्तमय (स० अव्य.) सूर्यास्त के समय, अाफ चाता। (हरिवंश ३५ १०) ताब गु.रूव होनेके वता । । उपेक्षक (सं० त्रि०) उप-ईक्ष-खुल्। १ उपेक्षा- उपास्ति (सं. स्त्री.) उप-पास-तिन्। १ उपासना, कारक, लापरवा। २ धैर्ययुक्त, सब्र करनेवाला। परस्तिश। यदुपा स्तिमसावत्र परमात्मा निरुप्यते ॥” (कुसुमाञ्जलि २) "उपेक्षकोऽसङ्गसुकोमुनिर्भावसमाहितः।” (मनु ६।४३) २ सेवा, खिदमत। 'उपेचकः शरीरस्य वद्याधुत्पाद तत् प्रतोकाररहितः।' (कुल्ल क) उपास्त्र (सं.ली.) उपगतमस्त्रम्। अस्त्रोपकरण, उपक्षण (सलो०) उप-ईक्ष भावे ल्य.ट। १ अना- दूसरे दरजेका या छोटा हथियार । तूनादिको उपास्त्र दर, औदासीन्य, लापरवाई। २ त्याग, तक, छोड़ कहते हैं। बैठनेका काम । ३ राजावोंका एक उपाय । उपाय देखो। उपास्थि (सं.ली.) शरीरके अन्तरस्थ अस्थि जैसा नाय । निजामानोगा। एक पदार्थ, कुररी, चबनी या मुरमुरी हडडी। १ त्याज्य, छोड़ दिये जाने काबिल । २ प्रतीकारको ( Cartilage ) उपास्थि वा कोमलास्थि प्रायः तीन चेष्टाके अयोग्य, जिसपे रोककी कोशिश चल न सके। प्रकारका होता है-क्षणिक, स्थायौ और आकस्मिक। “नश्यतपुरस्तादनुपेक्षणीयम्।” (रषु) जीवके देहको प्रथम अवस्था में जो अस्थि के बदले देख उपेक्षा (सं. स्त्री० ) उप-ईच-अ-टाप। १त्याग,.
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/३६१
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