पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/३५३

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३५२ उपाख्यानक-उपात्तरंहस् उपाख्यानक ( सं० लो० ) क्षुद्रं उपन्यास, छोटी। ४ खेताम्बर जैन धर्मशास्त्र विशेष । खेताम्बर कहानी। जैन १२ उपाङ्ग मानते हैं-उपवायो सूत्र, रायपसेनी उपागत (सं० त्रि०) उप-प्रा-गम-क्त । १ स्वयं सूत्र, जीवाभिगम सूत्र, पत्रवणासूत्र, जम्बुद्दोपपन्नत्ति उपस्थित, खुद आकर पहुंचा हुआ। २ अनुभूत, सूत्र, चन्दपन्नत्ति सूत्र, सूर्यपन्नत्ति सूत्र, निरियावली- मालूम किया हुआ। ३ स्वीकृत, मञ्जूर किया | सूत्र, कप्पियासूत्र, कप्यवसियासूत्र, पुप्पियासूत्र हुआ। ४ घटित, पड़ा हुआ। और पुप्पचुलियासूत्र । ५ गौण विभाग, छोटा उपागम (सं० पु०) उप-प्रा-गम-अप। ग्रहवृदृनिधि हिस्सा। ६ गौण कर्म, छोटा काम । (पु.) गमञ्च । पा श५८। १ स्वीकार, मञ्जूरी। २ निकट ७ चित्रक, चौत। गमन, नज़दीक पहुँचनेका काम । ३ विघटन, | उपाङ्गचिकित्सा (स. स्त्रो०) छिन्त्रादि प्रतीकार, वाकिया। 8 अनुभव, तजरबा। जखमका इलाज । छिन्न, भिन्न, भग्न, क्षत और अस्थि- उपाग्नि (सं० अव्य. ) अग्निसमीप, पागके | भङ्गाके दग्धप्रतीकारको उपाङ्ग-चिकित्सा कहते हैं। पास। (वैद्यकनिघण्टु) उपाय (स'. लो० ) १ शिखाके समीप भाग, उपाचरित (स. त्रि० ) १ किसोको सेवामें लगा जो हिस्सा सिरसे लगा हो। २ द्वितीय श्रेणीका अव हुआ, फरमान्बरदार । (क्लो०) २ व्याकरणानु- यव, दूसरे दरजेका हिस्सा। सारसन्धिका एक नियम । इससे ककार और पकारके उपाग्रहण (सं० लो०) उप-पा-यह-लुट् । संस्कार | पूर्व विसर्गका सकार हो जाता है। पूर्वक वेदारम्भ, उपाकर्म। उपाचार (स• पु० ) १ स्थान, जगह । २ क्रम, उपाग्रहायणं ( स० अव्य० ) अग्रहायण मासमें | | कायदा। ३ सन्धिविशेष। इससे ककार और पका- पूर्णिमासीके दिन। रके पूर्व विसगका सकार हो जाता है। उपाङ्ग (सं० लो०) उपमितं अङ्गन। १ तिलक, उपाचार्य (सं० पु०) आचार्य का सहकारी। टीका। २ प्रत्यङ्ग, अङ्गका अङ्ग। महर्षि सुश्रुतके उपाजन (सं० लो० ) उप-अञ्ज-लुपट् । १ लेपन, मतसे मस्तक, उदर, पृष्ठ, नाभि, ललाट, नासिका, लिपाई। “मार्जनोपाजनैवै श्म पुन: पाकेन मृणमयम् ।" (मनु ५।१२२) चिवक, वस्ति एवं ग्रीवा एक-एक, कर्ण, नासा, 5, २ गोमयादि द्वारा अनुलेपन, गोबर वगैरहसे लीपनेका 'शङ्ख, स्कन्ध, गण्ड, कक्ष, स्तन, मुष्क, पाखं नितम्ब, काम। ३ अन्जनाधार हस्तादि। जानु, बाहु तथा अरु दो-दो, अङ्गलि बोस, त्वक् सात, उपाटना, उपाड़ना, उखाड़ना देखो। कला सात, वक्ष दो, कोष दो, हृदय, प्लीहा, फुस्फुस । उपात्त ( स० त्रि.) उप-प्रा-दा-त । १ टहीत, यकृत, लोम, आशय सात, अन्त्र, हार नौ, प्रधान शिरा | लिया हुआ। २ प्राप्त, मिला हुआ। ३ गुणागुण- सोलह, जाल बारह, कूच छह, रज्ज चार, सेवनौ सात, विवेचित, पसंद किया हुआ। ४ संग्टहीत, इकट्ठा अस्थिमिलनके स्थान पन्द्रह, सीमान्त अट्ठारह, अस्थि | किया हुआ। ५ निर्मित, बनाया हुआ। ६ अनुभूत, तीन सौ, अस्थिसन्धि दो सौ दश, स्नायु नौ सौ, | मालम किया हुआ। ७ अन्तर्भूत, शामिल किया पेशी पांच सौ, मर्मस्थान एक सौ सात, सिरा सात हुपा। '८ व्यवहृत, काममें लाया हुआ। ८ प्रारम्भ सौ, धमनी चौबीस, और योगवहा नाड़ी समस्त किया हुआ, जो शुरू हो। १. यथाक्रम-निर्दिष्ट, उपाङ्ग हैं। ३ विद्याका गौण भाग, इल्मका मामूली | सिलसिलेवार गिना हुआ। ११ अनुमोदित, माना. हिस्सा। हमारे शास्त्रके अनुसार अपाङ्ग चार हैं- हुआ। (पु.) १२ अमदगज, जो हाथी मत- पुराण, न्याय, मौमांसा और धर्मशास्त्र। ....... वाला न हो। पुराण-न्याय-मौमासा धर्मशास्त्राणि चेति चत्वार्य पान्नानि ।” (प्रस्थानभेद) । उपात्तरंहस (म त्रि.) शीघ्रगामी, जल्द चलनेवाला।