पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/३४८

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उपसर्या-उपस्तभक ३४७ उपसर्या (सं० स्त्रो०) उपस्त्रियतेऽसौ सृ कर्मणि , “अदत्तादाननिरतः परदारोपसेवकः ।" ( याज्ञवल्का ३।१३६ ) यत्-टाप् । गर्भयोग्य ऋतुमती गाय, जो गाय उपसेवन (सं० लो० ) उप-सेव भाव ल्य ट । १ परस्त्रो- उठो हो। | पर आसक्ति, दूसरेकी औरतसे फंस जानेकी बात। उपसागर (स० पु०) सागरांश विशेष, वहरका निकट रह सेवा करने की बात, जो खिदमत नज़- एक हिस्सा। इसके प्रायः चारो ओर स्थल वेष्टित दीकसे की जाती हो। रहता है। उपसेवा (स. स्त्री०) मान, पूजा, परस्तिग, इज्जत। उपसाना (हिं.क्रि.) बासी बनाना, सड़ा डालना।। उपसे विन् (सं० त्रि.) उप-सेव-णिनि। १ सेवा उपसार्य (सं० त्रि.) उपस अप्रजनार्थं खत्। करनेवाला, खिदमतगार । प्रापणीय, पहुँचा जाने काबिल । __ "दृष्टात्मा पुलिनबनान्तरोपसेवो ।" (श्रुत) उपसि (सं० अव्य.) क्रोड़में, गोदपर। उपस्कर ( स० पु०) उप-क-अप् समवाये चेति सुट् । उपसुन्द (सं० पु०) निकुम्भ नामक दत्यका पुत्र । १ उपकरगा, सहारको चीज़। “पास ना ग्रहस्थस्य चुल्ली यह सुन्दका कनिष्ठ भ्राता था। तिलोत्तमाके पेषण्य पत्करः ।" (मनु श६८) 'उपजरा गृहोपयोगिभाणं कुण्ड कटाहादि ।' रूपपर मुग्ध हो उसे पाने के लिये दोनों भ्वाता परस्पर (मेधातिथि )२ वैसवार, मसाला। ३ असम्यक वाक्य- लड़े और मुत्यु के मुखने जा पड़े। तिलोत्तमा देखी ।। बोधक शब्दका अध्याहार । ४ ग्रहसंस्कार, घरको २ नरकासुरका सेनापति। इसे कृष्णने मारा था। मरम्मत। ५ गुणान्तराधान, दूसरे वस्फका लगाव । उपसूर्यक (स. क्लो०) सूर्यमुपगतम्, स्वार्थ कन्। ६ यत्न, तदबीर। सूर्य के समीप मण्डलाकार परिधि, आफताबका कुस। उपस्करण (सं० लो०) उप-क भावे त्य ट-सुट । उपसृष्ट (सलो०) उप-सृज-क्त । १ मैथुन, डौला। १ भूषण, साज। २ उपकरण, सामान । ३ सयात, (बिकाणशे ० २।७३२) (त्रि.) २ उपसर्गग्रस्त, झगड़े में मारकाट । ४ गुणान्तराधानरूप संस्कार, दूसरा पड़ा हुआ। ३ विसृष्ट, बना हुआ। ४ कामुक, वस्फ लाने का काम । ५ विकार, एव । ६ वाक्याधार, चाहनेवाला। ५ व्याप्त, मामूर । ७ युक्त, लगा हुआ। जुमलेका टेका। ७हिंसन, कत्ल । उपसेक ( स० पु. ) उप-सिच भावे घ । उपस्कार (सं० पु.) उप-क भावे घज भूषणादी सुट । १जलादि सेचनहारा मृदुकरण, पानी वगैरह ढालकर १ भूषण, साज। २ सङ्घात, मार। ३ प्रतियत्नरूप मुलायम बनानका काम। २ व्यञ्जन। संस्कार, तदबीरका काम। ४ विकार, फर्क । ५ अध्या- उपसेट (सं० पु०) एक द्रव्य पर दूसरा व्य हार, छिपाव। ढालनेवाला पुरुष, जो आदमी कोई चीज़ किसी चीज उपस्कीर्ण (सं. त्रि.) उप-क-क्त हिंसने सुट । पर उंडेलता हो। हिंसित, जो मारा गया हो। उपसेचन (स लो०) उप-सिच-लुपट । १ जलसेक, उपस्कृत (सं० त्रि०) उप-वक्त भूषणादौ सुट । सिंचाई। २ रस, अर्क। (त्रि.) ३ उपसेककर्ता, १ भूषित, सजा हुआ । २ संहत, दबा हुआ। सौंचनेवाला। ३ संस्कृत, बना हुआ। ४ विकृत, दिगड़ा हुआ। " "वयः कोशास उपसेचनास:।" (ऋक् १०१६) ५ अध्याहृत, छिपा हुआ। उपसेन (स. पु०) बुद्धदेवके एक शिष्य । बुद्धने उपस्कृति (स० त्रि०) भूषण, साज । इन्हें अपने धर्मको दीक्षा दी थी। (भद्रकल्पावदान : अ० ) | उपस्तम्भ (स० पु०) उप-स्तन्भ-वञ् । अवलम्ब, उपसेवक (सं० त्रि०) उप-सेव-खुल् । १ उपभोग पकड़, टेक। - कारी, मज़ा उड़ानेवाला। २ परस्त्रीपर आसक्त, उपस्तम्भक (सं.वि.) अवलम्ब लगानेवाला, जो जो दूसरेकी औरतसे फंसा हो। , सहारा देता हो।