उपयुक्त-उपला ३३६ उपर्युक्त (सं० वि०) उपरिकथित, ऊपर कहा हुआ। उपलब्धा (सं० स्त्री०) उपलब्धः अर्थों यस्याः । उपल (स.पु०) उपलाति, उप ला-क अथवा उ-पल- आख्यायिका, सच्ची कहानी। अच्। १ पाषाण, पत्यर। उपलब्धि (सं० स्त्री०) उप-लभ-क्तिन्। १ ज्ञान, "रेवां द्रक्षास्युपलविषमे विन्धपाद विशीणीम् ।" (मेघदूत ) । समझ। २ मति, अक्ल । ३ प्राप्ति, हासिल । ४ अनु- २ रत्न, जवाहिर। मान, अन्दाज। उपलंक (स० पु०) पाषाण, पत्यर। . उपलब्धिमत् (सं० त्रि.) समझ पड़ने योगा, जो उपलक्ष (स० पु०) उपलक्ष्य देखो। खवालमें आ सकता हो। उपलक्षक (स' त्रि०) उप-लक्ष रख ल। १ उद्भावक, उपलभित् (सं० पु०) पाषाणभेदक, पथरचटा। अन्दाज़ लगानेवाला। २ उपादानके लक्षणले इतर- उपलभेद, उपलभेदिन् देखो। बोधक, जाती आसारसे दूसरेको बतानेवाला। ३ दर्शक, उपलभेदिन् (सं० पु०) पाषाणभेदी वृक्ष, पथरचटा। देखनेवाला। (Plectranthus aromaticus ) वैद्यकशास्त्र के मतसे उपलक्षण (सं० लो० ) उप-लक्ष करणे ल्य ट! इसका पर्यायशब्द-खेता, पलभित्, शिलगभैज, अश्म- १अजहत्वार्थालक्षणा, शाब्दिक शक्तिविशेष। अपने भेदी, शिन्नाभेद, नगभिन्नक, भेदक, अश्मन, गिरिभित्, जैसे दूसरे वस्तुको भी बता देना उपलक्षण कहलाता भिन्नयोजिनी और पाषाणभेद है। यह शीतल, तिक्त, है। अजहत्वार्था देखो। २ अन्यका उद्दोधक लक्षण, ! तौक्षण, कषाय, वस्तियोधक एवं भेदक होता और अर्श, निशान्। ३ विशेषण, सिफत । ४ दर्शन, देख-भाल । गुल्म, मूत्रकृच्छ्र, मूत्राघात, हृद्रोग, पथरी, योनिरोग, ५ ध्यान, खयाल । प्रमेह, लोहा, शूल, व्रण तथा वातादिको नाश करता उपलक्षणत्व (सं० लो०) चिह्न रहनेका भाव, निशान है। उपलभेदी वृक्ष भारतके नाना स्थानों में उत्पन्न पड़ जानेको हालत। होता है। उपलक्षयितव्य ( स० त्रि०) चिह्नसे समझा जानेवाला, उपलभ्य (सं० त्रि.) उप-लभ कर्मणि यत् । १ प्राप्य, जो आसारसे देख पड़ता हो। मिलनेवाला। (रघु ७२८) २ जेय, समझा जान उपलक्षित (सं० त्रि.) चिह्नसे प्रकाशित, निशान से लायक। (अव्य.) ३ज्ञानके साथ, समझकर । समझा हुआ। उपलभ्यमान (सं० त्रि.) समझा जानेवाला, जो उपलच्य (सं० पु.) १ अवलम्बन, टेक । २ प्रयोजन, मालम किया जा रहा हो। मतलब। ३ उद्देश्य, असली बात। ४ प्रमाण, सुबूत, उपलम्भ ( सं० पु०) उप-लभ-घञ्-नुम् । लभेछ । हवाला। (नि.) ५ प्रमाण दिये जाने योगा, जो पा ७:१।६४। १ अनुभव, समझ। “सोऽहमविघ्नक्रियोपलम्भाय हवाला दिये जाने के लायक हो। धमारवमिदमायातः।" ( शकुन्तला) २ लाभ, फायदा। उपलधिप्रिय (सं० पु० ) उपलधिः प्रियो यस्य । चमर उपलम्भक (स० वि०) उप-लभ-घज-नुम्-कन् । नामक जन्तु। चमर देखो। अनुभावक, खयाल करनेवाला । उपलब्ध (सं त्रि०) उप-लभ-त। १ प्राप्त, मिला उपलम्भन (सं• क्लो० ) अनुभव, ख़याल । हुआ। २ ज्ञात, समझा हुआ। ३ विचारा हुआ, जो उपलम्भा (सं० वि० ) उप-लभ ण्यत् नुम् । खयाल करनेके काबिल हो। उपात् प्रशसायाम् । पा ७१६६६ । १ स्तव्य, तारीफ़के काबिल । उपलब्धमुख (सत्रि०) सुख उठाये हुआ, जो पाराम २ प्राप्य, मिल सकनेवाला। उठाये हो। उपलवोरुत् (सं० स्त्री० ) गुल्मिनी, खूब फैलने- उपलब्धार्थ (सत्रि .) अर्थ समझा हुमा, जो मतलब | वाली बेल। पा चुका हो। उपला (स. स्त्री. ) उप-ला-क-टाप् । १ शर्करा,
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/३४०
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