इन्थिहा-इन्दौवरिणी देवादि-भक्ति उपजाती, यशः फैलाती और धन दिल-1 है। यह क्रूरतावश चतुर्थ यदि अस्तगत मङ्गलजनक वाती है। अम्बरस्थ मुथहामें राजप्रसाद, लोकोप- नहीं पड़ती, तो रोगबृद्धि और धनहानि होती है। कार, सत्कर्मलाभ, देवादि-अर्चन, यशः और धन अष्टमाधिपके साथ मुथहा युक्त और अदृष्ट क्षुताख्य होता है। इसके लाभगत होनेपर विलास, सौभाग्य, दृष्टि से शुभ न होने पर दोनोमें मरण तथा एक योगमें पारोग्य, सन्तोष, राजसेवामें धन, सट्बन्ध और पुत्रादि मरणतुल्य लश मिलता है। मुथहा वा उसका मिलता है। मुथहाके व्यय में आनेसे अधिक व्यय, अधिप जन्ममें शुभलक्षणयुक्त पड़नेसे वर्षारम्भ पर शुभ- कुसंसर्ग, रोग, कार्यनाश, धर्म एवं अक्षय और सट् दायक और वर्षके पीछे अशुभ है। व्यक्ति के साथ बैर बढ़ता है। इसी प्रकार कर तथा इन्दम्बर (सं० लो०) नौलपद्म, आस्मानी कमल । क्षुत दृष्टिसे भी इन्थिहांका फल शुभाशुभ होता है। इन्दर (हिं०) इन्द्र देखो। रविसे युक्त वा दृष्ट होनेपर यह राज्य, मङ्गल और इन्दव (हिं० ) ऐन्दव देखो। अतिशय गुणप्राप्ति करती है। मङ्गलसे मुथहाके युक्त | इन्दाम्बर (सं० लो०) इन्द बहुमूल्य अबरं नील- वा दृष्ट होनेपर पित्त एवं उष्ण बढ़ता, अस्त्राघात वस्त्रमिव, उप. कर्मधा। १ नौलपद्म, आस्मानी लगता और रक्तप्रकोप उठता है। शनिके विषयमें कमल । (पु.) २ भ्रमर, भौंरा। भी उक्त ही फल मिलता है। सोमसे युक्त वा दृष्ट इन्दि (स. स्त्री०) इदि-इनि वा डीप् । लक्ष्मी, दौलत । होनेपर यह धौ, यशः, आरोग्य, और सन्तोष बढ़ाती इन्दिन्दिर (सं० पु०) इन्दि-किरच् निपातनात् । है। पापग्रहके साथ मुथ हा रहते दुःख उपजता है। मधुप, भौंरा। बुध वा शुक्र युक्त अथवा दृष्ट होनेपर यह स्त्री, सदबवि. इन्दिया (अ०५०) मत. राय।.. सुख, धर्म और अतुल यशोलाम करती है। वृहस्पतिक मन्शा, इरादा । ( अं० स्त्री०= India ) ३ भारतवर्ष । साथ मुथहा अाने वा तद्युक्त नक्षत्रसे देखे जानेपर स्रो, इन्दिरा (सं० स्त्री०) इदि-किरचटाए। लक्ष्मी, सदबुद्धि, पुत्र, सुख, स्वर्ण, रौप्य, वस्त्र, मणि और विष्णुप्रिया। मुक्तादि लाभ होता है। शनिके ग्टहमें पड़ने अथवा इन्दिरामन्दिर (सं० पु०) १ इन्दिरायां मन्दिरं उसके द्वारा देखे जानेपर यह वातरोग, मानभङ्ग और आश्रय-इव। विष्णु, लक्ष्मीपति, भगवान् । (को०) अग्नि धनक्षयादि करती है। किन्तु गुणयोगसे धन | २ लक्ष्मीग्रह। मिलता है। राहुसे युक्त वा दृष्ट होनेपर सुथहा धन, इन्दिरालय (सं० लो०) १ इन्दिरायाः प्रालयः, ६-तत् । यशः,सुख, धर्म और उन्नत भाव बढ़ाती है। चन्द्रयोगसे नौलोत्पल,लक्ष्मीके रहनेका स्थान पद्म। २ लक्ष्मीग्टह। सत्पद और स्वर्ण रत्नादि प्राप्त होता है। राहुके भोग्य इन्दिरावर (सं० क्लो०) इन्दिरायाः श्रीयाः वर एवं पृष्ठगत लव और सप्तम नक्षत्रयुक्त पुच्छको देखकर प्रियम् । नौलपद्म, पास मानी कमल। शुभाशुभ फल कहना चाहिये। मुथहाके शुभपृष्ठ एवं| इन्दी, इन्दि देखी। राहुपुच्छ गत होनेसे प्रापद आती और शत्र भय तथा इन्दीवर (सं० लो०) इन्दि-डीय इन्दौ तस्याः वर टुःखको मात्रा बढ़ जाती है। पापयोगमें दर्शनसे | वरणीयं प्रियम्। १ नीलपद्म, आसमानी कमल । अर्थ और सुख बिगड़ता है। जो जन्मकालमें बली २ साधारण उत्पल, मामूली कमल। ३ पद्मलता, और वत्सरान्तमें दुर्बल होता, उसके लिये एक हो गुलाबका झाड़। अशुभ ठहरता है। जिसकी दोनो ओर समान पड़ती, __“इन्दीवरघनश्याम राम' कमललोचनम् ।" ( रामायण ) उसके फलको मौमांसा भी नहीं घटती-बढ़ती। षष्ठ, | इन्दीवरा, इन्दीवरी देखो। अष्टम वा शेष अथवा इसी पृथिवीपर इन्थिहाधिपतिके | इन्दीवरिणी (सं० स्त्री० ) इन्दीवराणां समूहः, इनि- जन्तुमत किंवा कर होनेसे अदृष्ट अशभ मिला करता डो। पद्मलता, कमलको बेल । Vol III. 9
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