पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/३३१

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

उपपुष्पिका-उपप्लुता तिर्यक, मनुष्य और ऋषिगण के कार्यनाशका उपक्रम | उपप्रदर्शन ( स० लो०) सूचना, निर्देश, इज़हार, लगने पर नारायणक विशेष विशेष अवतारका होना देखाव। रक्षा कहलाता है। उपप्रदान ( सं० लो० ) उप-प्र-दा-ल्य ट्। १ उत्कोच, ५म अन्तर-मनु, देवतासकल, मनुपुत्रगण, सुरेश्वर- रिशवत। २ सन्धिके निमित्त भूमि आदिका दान, गण, ऋषिगण और नारायण के अंशावतार जिसमें सुलहके लिये जमीन वग रहको बखशिश। अपने अधिकारपर वर्तमान रहते हैं, उसीको छः “साम चोपप्रदानञ्च भेदो दण्डश्च तत्त्वतः।" (रामायण) प्रकारका अन्तर वा मन्वन्तर कहते हैं। ३ द्रव्यदान, दौलतको वखशिश। ४ दान कार्य, देने की इष्ट वंश-ब्रह्मासे उत्पन्न शुद्धवंशीय राजाओं के भूत, | बात । भविष्यत और वर्तमान सोनो कालोंको पुरुषपरम्पराके उपप्रलोभन (सं० लो० ) उप-प्र-लुभ-णिच-ल्यट । वर्णनका नाम वंश है। १ सम्यक् प्रलोभन, खासा लालच। करण ल्यः । ___७म वंशानुचरित-उक्त सकल राजावों और उनके वंश- २ समाक प्रलोभन-योग्य द्रव्य, जो चीज़ देखनसे खब धरोंके चरित्रका वर्णन वंशानुचरित कहलाता है। लालच लगता हो। ८म स'स्था-खभावसे या ईश्वरको मायासे विश्वमें ___ "उच्चावचानुपप्रलोभनानि ।” ( दशकुमार० ) पड़नेवाला नैमित्तिक, प्राकृतिक, नित्य और प्रात्यन्तिक | उपप्लव (सं० पु०) उप-प्ल-अप । १ आकाशसे चार प्रकारका विकार ही संस्था वा लय है। उल्कापातादिका उपद्रव, पासमान से तारे वगैरह हम हेतु-अज्ञानवशतः कर्मकारी जीव इस विश्वको टने की बात । २राहु ग्रह। ३ विप्लव, हङ्गामा । सृष्टिके आदिका हेतु है। यही अनुशयो रहता हो, ४ भय, खौफ । ५ अशुभ, बुराई। ६ विपत्ति, इसे कोई कोई अव्याकत भी कहते हैं। . श्राफत। ७ राजविप्लव, शाही झगड़ा। ८ चन्द्रादि १० अप्राश्रय-जाग्रत्, स्वप्न, सुषुप्ति तीनो अवस्था और ग्रहण। ८ उपरिवेष्टन, लटकाव। १० औपसर्गिक जीव-कुपसे वर्तमान रहनेवाले, मायामय एवं सकलके नरक-पीडन । ११ विकल्प। १२ प्रतिबन्ध । १३ शिव । साक्षिस्वरूप और समाधि प्रभृतिसे सम्बन्ध भाव उपप्लविन् ( स० त्रि०) उप-प्ल-णिनि। १ भययुक्त, रखनेवाले ब्रह्मका नाम अपाश्रय है। घटादि पदार्थ- खौफ़ज़दा, डरा हुआ। समूहमें मृत्तिकादि द्रव्य एवं रूप और सामान्यादिमें "नृपा इवोपप्लविन: परेभ्यः।" (रघु १३।७) सत्तामात्रकी तरह जो गर्भाधानसे मृतापर्यन्त सकल 'उपलविनो भयवन्तः ।' (मल्लिनाथ ) अवस्थापर युक्त तथा अयुक्त रहता है, उसे ही पुराण- उपप्लव्य ( स० लो०) उप-प्ल आधारे बाहुलकात विद् अपाश्रय कहते हैं। यत्। विराटके देशको राजधानी । (महाभारत, आदि उक्त लक्षण पुराणका ही लक्षण बताया गया है। २।२१२, उद्योग २४१, सौप्तिक ११॥५, शल्य ६२।२४ ) किन्तु परवर्ती श्लोक में 'प्राहुः क्षुल्लकानि महान्ति च | उपप्लत (सं० त्रि.) उप-प्ल-त। १ उपद्वयुक्ता, वचनसे वह उपपुराणका ही लक्षण जैसा समझ गड़बड़ में पड़ा हुआ। पड़ता है। विशेषतः पुराण पञ्चलक्षणात्मक ही सकल “उपनुतं पातुमदो मदोद्धतैः।” ( माघ ) पुराणों में प्रसिद्ध है। पुराण देखो। . २ राहुग्रस्त, राहुसे घिरा हुआ। ३ भीत, खौफजदा। उपपुष्पिका (सं० स्त्री० ) उपगता पुष्पिकाम्, ४ पीड़ित, तकलीफ़ज़दा। ५ विपद्ग्रस्त, मुसीबत संज्ञायां कन्-टाप अत इत्वम्। जम्भा, जमहाई। झेलनेवाला। उपपौर्णमास (सं० अव्य.) पूर्णिमाको, पूरनमासीके | उपप्लुता (सं० स्त्री०) योनिरोग, रेहमका फासिद दिन। इदराक । गर्मिणीके श्लेष्मप्रवतिके अभ्याससे और छर्दि उपपौर्णमासो, उपपौर्णमास देखो। एवं खास विनिग्रहसे वायु क्र होकर कफको योनिमें