तौरपर ३२० उपनिवेश साथ ले समुद्रके पथसे यात्रा की। जलमें घूमते-घूमते चौना परिब्राजकोंको वर्णनासे समझ पड़ा, कि वे सागरतौरवर्ती शूर्पारक नामक बन्दरमें जा पहुचे ! ई० वतीयसे पञ्चम शताब्दी पर्यन्त कास्पीय सागरके थे। किन्तु इस भयसे वे फिर अकूल समुद्र में चलने | । कुछ कुछ निदर्शन रहा, उस लगे, यहां रहने से कोई दूसरा अनिष्ट न पड़े। समय कश्यप प्रभृति मुनियोंका आश्रम विद्यमान था। अकस्मात् प्रबल तूफानसे विजयका जलयान टूट गया कह नहीं सकते-इस समय वहां हिन्दू रहते हैं या था। विजय और उनके सहचरोंने समुद्रतरङ्गमें डूबते. नहीं। यह भी हो सकता, कि विधर्मियों के प्रभाव उछलते एक स्थानपर किनारको भूमि पायो। इस सभोने भिन्न भिन्न धर्मको अवलम्बन किया हो। स्थानका नाम ताम्रपर्ण (वा सिंहल) था। उस पुराणपुरी नामक एक अध्वबाहु हिन्द सन्नधासीकी वर्ण- समय उक्त स्थानमें यक्षोंका वास रहा। विजयने नारी समझो, कि वे कास्त्रीय सागरके तौरपर ज्वाला- कूवेणी नाम्नी एक यक्षिणीके साहाय्यसे इस स्थानको मखी नामक तीर्थको गये थे। उस समय अष्ट्राकान जीता था। उस समय जो जो व्यक्ति राजकुमारके साथ और पारस्यके दक्षिणस्थ खरक नामक होप में भी हिन्द आये, उनमें कितनों ही ने स्व-ख नामके अनुसार उक्त | रहे। यहांतक, कि तुरस्क राजाके बसरा नामक द्वीपमें नगर बसाये-जैसे अनुराधपुर, विजितनगर नगरमें अनेक हिन्दू वास करते थे। वहां कल्याणराय प्रभृति। इसीप्रकार ई० से ५४३ वर्ष पहले सिंहल और गोविन्दराय नामक देवताओं की मूर्तियां विद्यमान द्वीपमें सबसे आगे बङ्गालो उपनिवेश संस्थापित हुश्रा थौं। (Asiatic Researches, Vol. V. P. 41-52.) था। ( महावंश ६ष्ठ और ७म परिच्छेद) समागत वङ्गवासी उक्त पुराण पुरोको वर्णनासे फिर समझ पड़ा, कि सकल हो सनातन हिन्दू धर्मावलम्बो थे। किन्तु उस समय युरोपोय रूसराज्यके मस्को नगर में राजा अशोकके समय कितनों होने बौद्धधर्म ग्रहण इन्होंने हिन्दुवोंसे साक्षात् किया था। इस वर्णनाके किया। सिंहल देखो। अमूलक न ठहरते मानना पड़ेगा, कि एक समय ___ अब देखना चाहिये-प्राचीन काल में हिन्दू भारत हिन्दुवोंने युरोपीय रूसराज्यमें पहुंच उपनिवेश वर्ष छोड़ उत्तर और पश्चिम कितनी दूर तक गये थे। लगाया। निम्नलिखित इतिहास पढ़नसे साव जैसा इधर सुदूर एशिया-माइनर प्रदेशके बोघस्कई नामक समझ पड़ता है, कि अतिप्राचीन कालमें हिन्दवाने स्थानमें बिलर नामक जर्मन पुराविक प्रयत्नपर युरोपमें जा उपनिवेश किया था- भूगर्भसे जो सकल प्राचीन निदर्शन निकले, उनके नोविया नामक एक सैरीय ईसाईने ई० ढतीय पढ़नेसे हम मालम कर सके-ईसा जन्मके १६०० वर्ष | शताब्दीको अरमनी भाषामें एक इतिहास लिखा था। पहले इस प्रदेशमें वैदिक आर्य सभ्यता फैल गयी थी। इस ग्रन्थ में वर्णित है-“देमेतर और किसानो दोहिन्दू कास्य (Kassite) नामक आर्योंने उस सुदूर प्रदेशमें राजकुमारोंने राजाके विपक्षमें साजिश की थी। राजाने आधिपत्य जमाया। वे भारतीय वैदिकोंको तरह | उन्हें पकड़ने के लिये सैन्य भेजा। उभयने राजदण्डके इन्द्र, वरुण, नासत्य आदि देवताओंके उपासक रहे।। भयसे खदेश छोड़ बलशकेश नामक राजाका आश्रय बाबिलनके सुप्राचीन इतिहाससे हमें समझ पड़ा लिया था। उस राजाने दोनोको ओरोन नामक ईसाके १८५० वर्ष पहले काश्य नामक जातिसे बाब- | राज्य दे दिया। यहां हिन्दू . राजकुमारहयने रूको सभामें प्रथम अश्व परिचित हुआ था। पाश्चात्य विसर्प (विसार) नामक एक नगर बसाया था। पुराविदोंके मतानुसार काश्य जातिको किसी शाखाने उसके बाद आष्टिषट् नामक स्थानमें पहुंच वे भारत- ही पधिक सुदूर पश्चिमको अग्रसर हो क्रमसे युरोप | वर्षीय देवमूर्ति सकल स्थापन करने लगे। इसी में आर्य सभ्यता फैलायी होगी। आर्य क्षत्रियोंको | प्रकार १५ वत्सरके मध्य हिन्दू उपनिवेश स्थायो चेष्टासे युरोप खण्ड में आर्य सभ्यता क्रमशः फैली। होनेपर उभय. भ्राताने परलोकको गमन किया।
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/३२१
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