पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/३१२

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उपधृति-उपनय उपति (स० स्त्रो०) उप-ध-क्तिन् । १ ज्योतिः, मतसे-इसमें धूनेका चूर्ण बांध व्रणरोगके क्षतको किरण । २ सन्धारण, संभाल। चिकित्सा करना चाहिये। इस रोगमें सोहागा और उपधेय ( स० त्रि.) उप-धा-यत्। मन्त्र द्वारा पास्फोतका मूल एकत्र पीस प्रलेप चढ़ानसे नख स्थापनीय, रखा जानेवाला । निकल पाता है। उपमा (स. स्त्री०) १ श्वास ग्रहण, सांस लेनेको उपनगर (सं० लो०) शाखानगर, शहरके पास बात। २ उपध्मानीय शब्द उत्पन्न करनेवाली वाक् को पासका गांव । चेष्टा । उपनत (सं० त्रि०) उप-नम-ता। १ नम्र, भुका उपमान (स० क्लो०) उप-ध्या-करण ल्य ट । १ प्रोष्ठ, हुआ। “शौरः प्रतापोपनतरितस्ततः।" (माघ १२२३३) होंठ। २ खासग्रहण, सांस खींचनेका काम। २ शरणागत, पनाहमें पड़ा हुआ। ३ उपस्थित,हाजिर। उपध्मानिन (स. त्रि.) खास ग्रहण करनेवाला, ४ उपगत, पहुचा हुआ। ५ प्राप्त, पाया हुप्रा। जो सांस लेता हो। उपनति (सं० स्त्री०) उप-नम भावे तिन्। १ नमन, उपध्मानीय (सं० पु.) प और फ के बाद विसर्ग झकाव। २ उपगम, पहुंच। ३ उपस्थिति, हाजिरी। स्थान में लेखनीय गजकुम्भावति वर्ण विशेष । | उपनद (स. अव्य०) नदीके समीप, दरयाके पास । "उपूपध्मानीयानामोष्ठौ।” (सिद्धान्तकौमुदी) उपनद (सं.वि.)१बड़, बंधा। २ सब्रद्द, लगा। उपध्वस्त (सं० त्रि.) उप-ध्वन्स-त । १ नष्ट, उपनना, उपजना देखो। बरबाद। २ अधःपतित, गिरा हुआ। ३ मिथित, | उपनन्द (सं० पु०) १ वसुदेवके पुत्र। यह मदि- मिला हुआ। राके गर्भसे उत्पन्न हुये थे। (विशुपु० ४१५११) “सौन्या: उपध्वस्ता: साविवा वत्सतयः" ( यजुः २४।१४) 'उपध्व' २ गोपपति नन्दके कनिष्ठ भ्राता। ३ बौद्धशास्त्रोक्त सनमधःपतनम् ।' (महौधर) नागराज विशेष । (स्वयम्भू पुराण ५ अ०) ४ काशीराज उपनक्षत्र (सं० ली.) राशिचक्रस्थ तारकाभेद, ब्रह्मदत्तके पुत्र। इन्होंने राजपुरोहितके कनिष्ठ भ्राता छोटा सितारा। अश्विनी प्रभृति २७ नक्षत्र में प्रत्येकके कुहनको सहकारितासे युवराज नन्दको मार डालनका अनुगत सत्ताईस-सत्ताईस तारका हैं। इन्हींका यत्न किया था। (बोधिसत्त्वावदानकल्पलता ८५) नाम उपनक्षत्र है। ज्योतिषशास्त्र के मतसे ७२९ उपनन्दक (सं० पु०) उप-नन्द-खिच्-ख ल । १स- उपनक्षत्र होते हैं। तारा देखो। राष्ट्रके एक पुत्र। (भारत-आदि ६७ १०) (त्रि.) उपनख (स'० लो०) सुश्रुतोक्त चिप्प नामक क्षुद्र २ आनन्दजनक, खुशी पैदा करनेवाला। रोग विशेष, उङ्गल-बड़ा। उपनय (सं० पु.) उप-नो-करणे अच् । १ उप- “नखमांसमधिष्ठाय पित्त वातच वेदनाम् । नयन, नज़दीक पहुंचानेका काम । २ संस्कार कर्म करोति दाहपाकौ च तं व्याधि चिप्पमादिशेत् ॥ विशेष, जनेऊ। ३ न्यायावयवभेद, मन्तिककी एक तदैव क्षतरोगाख्य' तथोपनखमित्यपि ॥” (निदान १३ अ०) बात । इसमें उदाहरणापेक्ष साध्यका उपसंहार । पित्त एवं वायु नखके मांसको पकड़ जो रोग रहता है। जैसे-धूमवान् वस्तु हो वह्निमान् होती है। बढ़ाता, वही चिप्प वा उपनख कहाता है। यह गौतमसूत्रमें लिखा-"उदाहरणापेक्षस्तथेत्यु पस'हारो न तथेति पककर वेदना तथा दाह उत्पन्न करता है। इसे वा साध्यास्योपनयः ॥” (१९३८) चत रोग भी कहते हैं। चक्रदत्तके मतसे- उपनय दो प्रकारका होता है-अन्वयो उपनय "चिप्पमुचाम्बु ना स्विन्नमुद्धृत्याभ्यज्य तं व्रणम् ।” ( ५५॥१८) और व्यतिरेको उपनय। (गौतमहति) ४ न्यायके मतसे चिप्परोगमें उष्ण जलसे खेद लगा छेदनेसे तैलाभ्यन सिद्ध और जानकालक्षण-जैसे अलौकिक प्रत्यक्ष साध- करनेपर ब्रणको प्रतीकार पहुंचता है। वैद्यकके नके सन्निकर्षका भेद। इसमें सन्निकर्ष रूपके हारा