पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/३०५

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३०४ उपदंश ब्रह्मचारिणी, संसर्गरहिता, रजःस्खला, दीर्घ कर्कश, (Simple chanere ), कठिन उपदंश ( Indurated सङ्कीर्ण गूढ़ रोमयुक्ता,प्रतिक्षुद्र अथवा अति वृहत् हार- or Hunteran chancre), क्षयकारी उपदंश (Phage. विशिष्टा, दूषित जलके प्रक्षालन, शुक्न मूत्रके वेगधारण denic chancre ) एवं गलित उपदंश ( Sloughing और मैथुनान्तके अप्रचालन इत्यादि किसी कारणसे chanere)। पथ में दोष लगते और क्षत पड़ते या न पड़ते जनने वैद्यक ग्रन्थसे पांच प्रकारका जो उपदंश बताया, न्द्रियका फट जाना ही उपदंश है। उसमें भी प्रत्येकका लक्षण स्वतन्त्र लगाया है। युरोपीय चिकित्साके कोई तत्त्वज्ञ डाकर कहते पुरुषके वातिक उपदंशमें मेढदेशपर सूच चुभने- यह पीड़ा संस्रवके भिन्न नहीं उपजती। किन्तु जैसी व्यथा उठती, भेदनवत् वेदना बढ़ती और कम्पन ससवका प्रथम स्थान खोजनेसे मानना पड़ेगा सहित कालो फन्सी पड़ती है। स्त्रीको जननेन्द्रियका किसी विशेष कारणसे इसकी उत्पत्ति हुई। फिर तो काठिन्य लगता, त्वकका भेद पड़ता, स्तब्धभाव रहता हर हो जायेगा-सा कारण लगनेसे, विना संस्रवके और वायुजन्य नानाप्रकार लेश बढ़ता है।* भी उपदंश रोग निकल सकता है। अब कारण देखना __ पैत्तिक उपदंशमें पुरुषके मेद्रपर दाह उठता और चाहिये। अखके ग्लाण्डस-जैसे रोग (Glandus)| बद्दल दयुक्त पीतवर्ण फोड़ा पड़ता है। फिर स्त्रीको और कुकर के एक प्रकार क्षतसे उपदंश उठता है। ज्वर हो जाता, शोथ सताता, तोव दाह देखाता, क्षिप्र स्त्रीस'सर्गकालोन लसिका वा पूय भिक सूक्ष्म पाक पाता, पित्तका दुःख सताता और पक्क डम्बर- चममें चिपटनसे इसकी उत्पत्ति है। परस्पर संसर्ग जैसा वर्ण निकल आता है। से उपदंश स्त्री और पुरुष उभयको लग जाता है। श्लैष्मिक उपदंशमें पुरुषके मेढ़देशपर खेतवर्ण परस्पर संसर्गपर स्त्रीमें होते पुरुष और पुरुषमें | कठिन अथच गाढ़ सावयुक्त और स्त्रीके कठिन, अल्प रहते स्त्रीको यह रोग पकड़ता अर्थात् एकजनमें वेदनायुक्त, शोथ एवं कण्ड विशिष्ट चिक्कण वर्ण बृहत् उपजनेसे अन्यको.निस्तार नहीं मिलता। स्फोटक उठता है। पुरुषके मेढदेशपर रक्तज उपदंशमें युरोपीयोंने उपदंश रोगको नाना श्रेणी में बांटा है। ताम्र वा कृष्णवर्ण स्फोटक उठता, अधिक रक्त पड़ता, प्रधान यह हैं- पैत्तिककी भांति सकल लक्षण लगता, ज्वर चढ़ता, १ प्राथमिक उपदंश ( Primary Syphilis)। दाह रहता एवं शोथ बढ़ता है। स्त्रोके रक्तज उप- २ हितीय अवस्थाका उपदंश (Secondary Syphilis) दंशका लक्षण पुरुष ही जैसा रहता, फिर भी अनेक ३ टतीय अवस्थाका उपदंश ( Tertiary Syphilis)| स्थलमें रोग नहीं मिटता और यावज्जीवन लश उठाना ४ सार्वाङ्गिक उपदंश (Constitutional Syphilis) पड़ता है ।१. ५ कौलिक उपदंश ( Hereditary Syphilis)। सचराचर जननेन्द्रियको वाद्य एवं आभ्यन्तरिक __* “सतोदभेदस्फ रणे: सक्कशे : स्फोटैर्व्यवस्वे स् पवनोपद'शम्।" त्वक, लिङ्गके मुण्ड अथवा त्वक् एव ग्रन्थिके मध्यस्थान (भावप्रकाश) अग्थिक अधोभागमें क्षुद्र वटिकाकार एक पूय निकलता “वा के पारुष्य त्वक परिपुटनं स्तब्धमेदता विविधाच वातवेदनाः।" (सुश्रुत) है। फिर वही फटकर विशेष लक्षणाक्रान्त क्षत बन . + “पी हुक्ले दयुतैः सदाहै: पित्ते न रक्त : पिशिताभभास:।" जाता है। मैथुनकालसे पांच-छः दिनके मध्य यह (भावप्रकाश) क्षत पड़ा करता है। इसोका नाम उपदंश या पातशक "पत्तिके ज्वरः वयथः पकोडुम्ब रसाशस्त्रीवदाहः चिप्रपाक: ।। है। युरोपीयोंने इसे प्राथमिक उपदंश लिखा है। पित्तवेदनाश्च ।" (सुश्रुत)

  • “सकण्डुरैः शोषयुतैमहद्भिः शूक्त धन: स्रावयुतैः कफेन।" (भावप्र०)

यह रोग नानाप्रकार होता है। तन्मध्य चार प्रकारका तन्मध्य चार प्रकारका १ "रक्तजे कणस्फोटप्रादुर्भावोऽत्पर्थ मसूकमवत्तिः पित्तलिझान्यत्यर्थ" उपदंश सचराचर देख पड़ता है, यथा-सहज उपदंश' ज्वरदाही शोषय यापार्य व कदाचित।" (सब त) ... ta