उपजापक-उपटना उपजापक (स.त्रि०) उप-जप-ख ल। १ भेदक, वा अबलम्बनकारक, सहारा या टेक लेनेवाला । कानाफूसी करनेवाला। २ प्रोत्साहक, उभारने- (लो०) ३ जीविकानिर्वाह, वसर-जिन्दगी। वाला। उपजीवकत्व (सं० लो०) न्यायके मतसे-१ कार्यत्व, "घातयो िविध दररोणाचोपजापकान् ।” (मनु ।२७) काररवाई। २ प्रयोज्यत्व, इस्तमाल । उपजाय (स. भव्य०) जायाके निकट, औरतके पास। उपजीवन (सं० क्लो०) उप-जीव करणे या उपजिगमिषु (स० त्रि.) निकट उपस्थित होने का जीविका, रोजी। अभिलाषी, जो नज़दीक पहुंचना चाहता हो। उपजीवनीय (स० त्रि०) उपजीवन करने योगा, उपजिज्ञास्य ( स० वि०) निगूढ, छिपा हुया। | जो रोज़ी चलाता हो। उपजिहीर्षा (स. स्त्री० ) उप-ह-सन्-अ । धातोः | उपजीविका (सं० स्त्री०) उपजीव्यतेऽनया, उप-जीव कर्मण: समानकर्ट कादिच्छायां वा। पा ११७। अप्रत्ययात्। पा ३।३१०२१ संज्ञायां कन् क न वा। उपजीवन, रोज़ी, रोजगार । अपरके ट्रव्यादिको हरण करनेको इच्छा, दूसरेको उपजीविन् (सं० त्रि०) उपजीव-णिनि । १ आश्रित, चीज़ चोरानोको खाहिश । जो सहारा पकड़े हो। २ वेतनभोगी, तन्खाहपर उपजिह्वा (स'. स्त्री०) १ कोटविशेष, किसी वसर करनेवाला। किस्मोको चौटौ। २ मूल जिह्वा, हलकका कव्वा। उपजीव्य (सं० लो०) उप-जीव-ण्यत् । १ आश्रय, ३ अखके मुखका एक रोग, घोड़े के मुंहमें होनेवाली सहारा। “उपजीव्यद्रुमाणाच विंशतिदिगुणो दमः।” (याज्ञवल्का) एक बीमारी। इसमें जिह्वाके नीचे सूजन आ जाती उपजोष (सं० पु. ) उप-जुष-धज । १ पोति, है। (जयदत्त) ४ जिह्वागत मुखरोग, जौभमें होने- मज़ा। (अव्य.) उप-जुष-अम् ।२ प्रोतिसे, मजे में। वाली मुंहको बीमारी। उपजोषण (सं. लो.) आस्वादन, मजेदारी। "निहायरुढ़ः स्वयथु हि जिज्ञामुन्नम्यजातः कफरक्तयोनिः । | उपना (सं० स्त्रो०) उप-ज्ञा कर्मणि घज । १ आद्य- प्रसेककण्डूपरिदाहयुक्ता प्रकथ्यतेऽसावपजिहिकैति।" ज्ञान, असली समझ। जो ज्ञान विना उपदेश आता, वही उपना कहाता है। भावे अङ । २ आदि दृषित कफ एवं रक्तसे अग्रभागको तरह अधो- कथन, पहली बात। भागमें जिह्वाग्र फूल उठता, जिससे लालास्राव, कण्डू उपनात (सं० त्रि.) उप-ज्ञा-त। विना उपदेश- और दाह उपजता है। इसी रोगको उपजिह्वा कहते जात, बे सिखाये समझा हुआ। हैं। वैद्यक मतसे इस रोगमें जिह्वाग्र कर्कश पत्र उपज्मन् (सं० पु०) पादार्पण करते हुआ, जो हारा रगड़ यवक्षारसे प्रतिसारण करना चाहिये। चढ़ रहा हो। विकट, यवक्षार, हरीतको और चिता सकल सम | उपज्योतिष ( स० ली.) १ ज्योतिष शास्त्रानुगत गणि- भागमें मिला रगड़ने पथवा उक्त सकल ट्रव्य के कल्क तादि, नजमका हिसाब । २ देशविशेष । ( वराहमिहिर) तथा चतुर्गुण जल द्वारा तैल पका चुपड़नेसे यह रोग उपज्वलित ( सं० त्रि.) प्रकाशमान, जो जल सत्वर ही आरोग्य होता है। रहा हो। उपजितिका, उपजिह्वा देखो उपटन ( हिं• पु० ) १ चिह्न, दाग, उभार । उपजीक (सं० पु.) जल देवता। २ उबटन। उपजीव ( स० वि०) उपगतो जीवम् । जीवनो- | उपटना (हिं० क्रि०) १ बनना, उभर आना। पगत, जीने-जामनेवाला। .२ स्थानान्तरित होना, हटना । ३ नष्ट होना, मिर उपजौवक (सं• वि.) उपजीव-खु ल । १ जीविका | जाना, किसी काममें न लगना। ... चलानेवाला, जो जिन्दगी बसर करता हो । २ पाश्रय । "भून बोवा उपट गया।" (लोकोशि).. :
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/३०३
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