पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/३००

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उपग्रहण-उपचर २६४ कैतुरष्टादश प्रोतमुल्ला स्वादकविशतिः। "कथशन न गृहीष्यामि मूत्वा धर्मोपातकः।" (भारत-पाच ८०) हाविशतितमं कम्पस्वयोविंशच वचकम् ॥ (पु.) ४ पारगवध वृक्ष, लटजीरा। निर्वातच चतुर्विममुक्त्वा अष्टानुपाग्रहा: " (जयोतिस्तत्त्व) उपघाती, उपधातक देखो। सूर्योक्रान्त नक्षत्रसे पञ्चम विद्युन्म ख, अष्टम शून्य, उपघुष्ट (सं.वि.) शब्दायमान, गूंजता हुआ। चतुर्दश सन्निपात, अष्टादश केतु. एकविंशति उल्का, उपघोषण (सं० ली.) घोषणा, ढिंढोरा, जाहिर हाविंशति कल्प, त्रयोविश वच पौर चतुर्विंश निघात करने की बात। नामक नक्षत्र-सब पाठ उपग्रह होते हैं। | उपन्न (सं० पु.) उप-इन घञर्थ का उपच्न पाश्रये । पर कर्मणि घञ् । ८ कारारुव, क दमें पड़ा हुआ।। शश५। १ निकटाश्रय, पासका सहारा। उपग्रहण (सं• लो०) उप-ग्रह ल्युट । निकटसे "छेदादिवोपनतरोव्र तत्यौ।" (रष) ग्रहण, नज़दीकको लेवायो। २ खौकार, मन्न. री। २ समीपस्थ विधामागार, जो ठहरनेको जगह ३ संस्कारपूर्वक वेदका ग्रहण वा अध्ययन । ४ यन्ना पास हो हो। ३ पात्रय लेनेवाला, जो सहारा .. दि साधक आधारकरण । पकड़े हो। 'न सव्येन वेदोपयः' (कर्काचार्य ) सपन (सं० वि०) उप-ब्रा-ड। सम्बन्धीय, सरोकार "दचिणस्तस्तस्य सानास कद्रव्यस्य इस्तकम्पादिना स्नन्दनावर | रखनेवाला। बरसा सव्यहस्सगृहीतवेदैमाधारकरणमुपग्रहणमुच्यते।" उपस (हिं.) उपाइ देखो। (कातौष श्रौतसूबभाथे कर्वाचार्य ११६) उपच (स.वि.) उपचिनोति, उप-चि-ड। अत्य- उपप्राह (सं• पु०) उप-ग्रह-णिच्-अच् । १ उप- माषपिष्टक मिश्रित, जिसमें उड़दका आटा थोड़ा । ढौकन, भेट । कर्मणि घन । २ उपहारस्वरूप | मिला हो। (शतपथब्रा० १०१।१.१०) दिया जानवाला वस्तु, जो चीज नजर की जाती हो। उपचक्र (स पु०) चक्रवाक पचविशेष,चकोर। चक्रवाक "सच्चाक्चानुपयावान् राजभिः प्रापितान् बइन् ।” (भारत-समा ५१ १०) देखो। इसका मांस लघु, ध, उष्णवोये, पाकमें कट 'उपयाहान् उपहारान् ।' (नीलकण्ठ) पौर बल तथा अग्नि बढ़ानेवाला हाता है । (राजनिघण) उपमाघ (सं० वि०) उप-ग्रह-णिच्-यत्। १ समीप लपचक्षुः ( स० लो०) १ दियचक्षु, चशमा। (भव्य०) लाकर रखने योग्य, जो नज़र किये जाने काबिस २ चक्षुके समीप, खके पास । हो। (पु.) २ पढौकन, भेंट। उपचतुर (स'• त्रि०) प्रायः चार, करीब चार। उपघात (सं० पु०) उपहन्यते अनन, उप-हन उपचय (सं० पु.) उप-चि-अच। १ वृद्धि, बढ़ती। करणे घञ् । १रोग, बीमारी। २ विनाश, बर- २ उन्नति, तरक्को। (माघ रा५५) ३ आधिक्य, ज्यादती। बादो। ३ कर्मको अयोग्यताका सम्पादन। . ४ पुष्टि, मजबूतो। ५ समूह, मुण्ड। संग्रह, "काकेभ्यो राताममिति बालोऽपि देशितः। चुनाव। ७ ज्योतिषोत लग्नसे ढतीय, षष्ठ, दशम उपधातप्रधानत्वात् न वादिभ्योऽपि रचति ॥” (मौमांसाकारिका) और एकादश स्थान। अपकार, बुराई। ( मनु १।१०६).५ इन्द्रियगणके निज उपचयभवन (सं० लो०) दण्ड कहत्तभेद, एक छन्द । कार्य उत्पादनको अक्षमता, नाताकतो, कमज़ोरी। उपचयापचय (स.पु.) वृद्धि और हास, बढ़ती- ६ पापस्सह। ७ होमभेद। घटती, नफा-नुकसान् । "चरौ तु बहुदै बत्यो होमः स्यादुपधातवत्।" (छन्दोगपरिशिष्ट) | उपचर (सं० पु०) उप-चर-अच् । १ प्राप्ति, पहुँच । उपधातक (सं० वि०) उप-हन-खुल। १ नाशक, २ उपचार, हाजिरी। उपचार देखो। (को०) चरस्थ बरबाद करनेवाला। २ पोड़क, तकलीफ देनेवाला। समीपम्। ३ दूतका सामोप्य, एलचीका पड़ोस । अनिष्टकारक, बुराई करनेवाला। (अव्य०) ४ दूतके समीप, एलचौके पास।...