पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/२८९

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२८८ उन्ने यत्व-उन्मथन उन्नेयत्व (स. ली.) १ज्ञापनयोग्यत्व, समझाये। उन्मत्तदर्शन (सं० त्रि.) उन्मादग्रस्त, जो पागल- जाने काबिल हालत। २ जन्य ज्ञानविषयत्व (न्यायकौमुदौ) | जैसा देख पड़ता हो। उन्मज्जक (सं० पु.) उत्-मस्ज-ख ल। १ तपखो उन्मत्तप्रलपित (सं० त्रि.) उन्मादको अवस्थामें भेद। उन्मज्जक तपस्वी गले बराबर जलमें खड़े हो कहा हुआ, जो पागलपनसे कहा गया हो। तपस्या किया करते हैं। उन्मत्तरस (सं० पु.) शौताङ्ग सन्निपातपर दिया "करदने जले स्थित्वा तप: कुर्वन् प्रवर्तते । जानेवाला एक औषध । रस एवं गन्धकको तुल्यांश उन्मचकः स विज्ञ यस्तापसो लोकपूजितः ॥” (योगसार) ले धुस्तरफलके द्रवमें एक दिन घोंटे और फिर सबके (त्रि.) २ जलमें डूबनेवाला। बराबर त्रिकटुका चूर्ण छोड़े। इस औषधके सेवनसे उझज्जन (स. लो०) उत्-मस्ज-ल्युट । १ प्लवन, शीताङ्ग सन्निपात दूर होता है। ( रसेन्द्रसारसग्रह) तैरने या पानी में कूदनका काम। २ शिवके किसौ उन्मत्तरूप, उन्मत्तदर्शन देखो। गण का नाम। उन्मत्तलिङ्गिन (सं० त्रि.) उन्मत्त बनता हुआ, उन्मण्डल (स.ली.)) ज्योतिषोक्त दिनरात्रिकी क्षय जो झूठमूठ पागलपन देखाता हो। वृद्धिका ज्ञापक मण्डल विशेष । उन्मत्तत् (स'• अव्य०) उन्मत्त व्यक्ति की भांति. “पूर्वापरचितिजसमयोबिलग्न' यान्ये अवै पललवैः चितिजादधःस्थे । । पागलकी तरह। सौमा कुजादिपरि चाचलवैन वैतदुन्मण्डलं दिननिशी: क्षयवृद्धिकारि" | उन्मत्तवेश (सं० पु०) शिव, महादेव । (सिद्धान्तशिरोमणि ) | उन्मत्ता, उन्मत्तकारिणौ देखी । उन्मण्डलकणे (सं० पु.) ज्योतिषोक्त उम्मण्डलस्थ उन्मत्तावन्ति-काश्मीरके एक राजा। चन्द्रवर्माके मारे सूर्यको छायाका कर्ण। जानपर शवंट और अपरापर मन्त्रिगणने पार्थपुत्र "युतारनाशार्क हहदभुजजाया खरामतिथ्यवभुवो (१० १५ ३०) इताः परः ।। उन्मत्तावन्तिको काश्मीरका राजासन सौंपा था। किन्तु पलश्नुतिन्नः पलमा विभाजितः परोऽथ वोवृत्तगते रवौ श्रुतिः ॥" इनके राजत्वकालमें अत्याचार और व्यभिचार वृद्धिगत (सिद्धान्तशिरोमणि) होने लगा। राजा विज्ञ मन्त्रिगण की बात न मान दृष्ट' उन्मण्डल (स• पु०) ज्योतिषोक्त अक्षक्षेत्रके प्रदर्शनार्थ लोगोंके तोषामोदमें. भूले और अत्यन्त गहित उमण्डलका शगु । आचरणसे फूले थे। भयसे पिता पार्थने राजधानी छोड़ उन्मत्त (स. त्रि.) उत्-मद-त। १ उन्मादग्रस्त, जयेन्द्रविहारमें जा सपरिवार वास किया। वहांके पागल । २ वाह्यज्ञानशून्य,बेखबर।३ मतवाला। (पु०) भिक्षुक जा कुछ उन्हें आहारीय देते, वे उसौपर जीते करणे त । ४ धुस्त र, धतूरेका पेड़। ५ खेतधुस्त र, थे। 'कन्तु इनसे वह भी सहा न गया। उन्मत्तावन्तिने सफेद धतूरा। ६ मुचकुन्दवृक्ष। ७ राक्षसविशेष। दुत्त लोग लगा अपने पूजनीय पिता और ज्ञाति- . । उम्मत्तक (स'. त्रि.) उन्मत्त इव, कन्। १ मत वर्गको मरवा डाला था। राजा इतने निष्ठ र थे, कि वाला, जो नशेमें हो। २ उन्मादग्रस्त, पागल। गर्भवतीका पेट फड़ा गर्भस्थ भ्रूण को देखते और उसमें __कौवोऽथ पतितस्तजः पङ्ग रुन्मत्तको जड़: " (याज्ञवल्का २।११३), आनन्द मानते। अवशेषमें राजयक्ष्मा रोगसे आक्रान्त उन्मत्तकारिणी (स. स्त्रो०) दुग्धिका, दूधी। हो इन्होंने (८३८ ई०) प्राण छोड़ा। काश्मीर देखो। उन्मत्तगङ्ग (सं० क्लो०) देशविशेष। (सिद्धान्तकौमुदी)| उन्मथ (सं० पु०) उत्-मथ-अप । वध, कत्ल । उन्मत्तगीत ( सं० त्रि०) प्रलापसे कहा हुआ, जो | उन्मथन (सं० लो०) उत्-मथ भावे ल्यु ट । १ उन्म- पागलपनसे गाया गया हो। दैन, धक्का-मुक्को। २ हिंसा, मारकाट। (र ४ाद ) उन्मत्तता (सं० स्त्री०) उन्मादग्रस्त होनेकी बात, | ३ सुश्रुतोक्त यन्त्रक कर्मका एक भेद। (नि.) कतरि पागलपन। त्य । ४ मदन-कारक, मल डालनेवाला ।