पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/२८३

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२८२ उनाव अधिक नशा पोये थे। उधर मुसलमानोंने दुर्ग में पहुंचते | माली, कलवार, धानुक, भङ्गी, सोनार और मल्ल ही असि खींची और अविलम्ब ही राजदुर्ग अपने ! प्रभृति उच्च-नीच सभी हिन्दू रहते हैं। मुसलमानोंमें हाथमें कर लिया। राजपरिवारके निरस्त्र लोग पशुके पठान, शैख और सैयद ज्यादा हैं। वे प्रायः सकल समान मारे गये। दुर्घटनाके समय राजपुत्र शिकार हो सुन्नी सम्प्रदायभुक्त हैं। खेलने गये थे। अकस्मात यह दारुण संवाद पा वे जमीन दोरसा, मटियार, बलुई और असर कई मानिकपुरको अपने सम्पर्कीय एकजनके पाश्रयसे भगे। भागों में विभक्त है। कई वर्षके अन्तरसे गई उपजता है। उसस्थानके नरेशने राजपुत्रके साहाय्यार्थ मुसलमानों जिस वर्ष गई नहीं होता, उस वर्ष कृषक यव, उड़द, पर अपना सैन्य भेजा। किन्तु दोबार पराजय हुआ। मूग, ज्वार प्रभृति बोते हैं। ऊख, नील, सन, कपास, युहमें मुसलमानोंको फौज भी बहुत मरी। उधर बैस अफीम, तम्बाकू. सरसों और तरह तरह की सबजीको राज तिलकचन्द्र अयोध्या प्रदेश के दक्षिण भागमें स्वाधीन खेती भी होती है। भावसे राजत्व चलाते थे। मुसलमानोंने उनाव ले २ अपने जिले को तहसील। यह अक्षा... उनके परितोषार्थ कितना हो उपढौकन पहुंचाया और १७ तथा २६ ४० उ. और ट्राधि०.८०.२१ एवं साथ ही यह भी कहलाया-'हमारे बुजुर्ग बहाउद्दीन ८०.४४ पू० के मध्य अवस्थित है। चार परगने शहाबुद्दीन से मिलकर कुलोज लड़ने जाते थे। लगते हैं-उनाव, परियर, सिकन्दरपुर और हरहा। लेकिन विष्णुराजने उन्हें बेइन्साफोसे मार डाला। भूमिका परिमाण ३८५ वर्ग मील है। लोकसंख्या इसीसे हमने उनाव ले लिया है।' तिलकचन्द्रने प्रायः दो लाख है। सोचा-मुसलमानोंको चिढ़ाना अच्छा नहीं, क्योंकि ३ अपने जिलेका प्रधान नगर। यह अक्षा. उससे हमपर भी विषद पड़ सकती है। इस प्रकार २६. ३२ २५“ उ० और ट्राधि० ८०.२ पू. पर कान- अग्रपश्चात् देख उन्होंने उपहार ग्रहण किया और पुरसे साढ़े ४ कोस उत्तरपूर्व अवस्थित है। कोई वचन दिया-'हम आपसे विवाद बढ़ाना नहीं चाहते। १५ देवदेवोके मन्दिर तथा १० मसजिद हैं। इस हमारे अधिकारका कोई राजपूत आप लोगोंपर अस्त्र नगरको प्रतिष्ठाके सम्बन्धमें एक प्रवाद सुनते हैं- म उठायेगा।' फिर दिल्लोके सम्राटने सन्तुष्ट हो पूर्वकालमें उनाव नगर वनसे भरा था। कोई सवा सैयदोंको 'जमीन्दारौ'की सनद बखू शी थी। सिपाही हजार वर्ष पहले वङ्गराजके अधीनस्थ गजसिंह नामक विद्रोहके समय उनावके कितने ही लोग अंगरेजोंसे चौहान सिपाहीने इस स्थानको परिष्कार करा 'सराय- लड़े। जनवारके राजा यशोसिंह फतेहगढ़में ठहर गड़ा' नामक एक नगर बसाया। किन्तु अल्प दिन पलातक अंगरेजोंको नामा साहबके पास पकड़ भेजते | बाद ही वे इसे छोड़ गये थे। फिर कान्यकुबराज थे। अंगरेजी-सेनापति हावलकने उनके विरुद्ध सैन्य अजयपालने उन्नाव नगर पर अपना अधिकार भेजा। युद्ध में यशोसिंह पाहत हुये, जिससे उनके जमाया। उन्होंने खांडेसिंहको इस स्थानका शासन प्राण निकल गये। बलवा मिटनेपर अंगरेजोंने कर्ता बनाकर भेजा था। कुछ दिन बाद उनवन्त स्थानीय गजपुत्रको फांसीपर चढ़ाया और राज्यको सिंह नामक कोई विसेन जातीय खांडेसिंहको छीन स्वीय कर लगाया। उस समयसे आजतक उनाव मार इस स्थानके स्वाधीन राजा बने। उन्होंने अपने ब्रटिश शासनमें ही विद्यमान है। नामानुसार 'सरायगड़ा के बदले उनाव नाम रखा ____ अधिवासियोंमें राजपूतोंको संख्या अधिक है। था। १४५० ई में तहशीय राजा अमरावत सिंहके फिर ब्राह्मण, गोसाई, कायस्थ, बनिया, अहीर, लोध, | समय सैयदोंने छलकर कौशससे इस नगरको अपने पासी, काछी, कोरी, चमार, नाई, तेली, तंबोली, हाथ लिया। बरई, कुरमी, धोबी, कहार, कुम्हार, लोहार, भुरजी, .. १८५७ ई० को २८ वौं जुलाईको उनावमें सेना-