उद्भिद विद्या रावरण, फिर पुकेशर और सर्वोपरि गर्भकेशर होता । ( Polysepalous ) और सम्म णे वा असम्पर्ण है। गर्भकेशरके साथ पुकेशरका जो सम्बन्ध रहता है। रूप मिलकर वहिश्छद नलाकार बननेसे वहिरा- उसके अनुसार पुष्यका समूह तीन श्रेणीमें बंटता है।। वरणको युक्तच्छदक (Gamo-sepalous) कहते १म को अवजात (Hypogynous ) अर्थात प्रादर्श-| हैं। नलके मुखाग्रसे वियुक्त अंश अङ्ग (Limb) रूपविशिष्ट कहते हैं। यह पुकेशर पुष्पाधारके ऊपर | कहाते हैं। पुष्य विनाशके बाद बहिरावरण और गर्भ केशरके नीचे रहता है। चम्मका फूल नो गिर पड़ता ( जेसे अफीमके फलमें ) अथवा डालने पर इसका उदाहरण मिलेगा। द्वितीय पारि जितने दिन किसलय चलता, उतने दिन या जात ( Perigynous) है। इसमें तीन बहिःस्तवकके कुछ अधिक भी बना रहता है। अन्तरावरण हो जुड़कर पुष्पाधारपर पहुंचनेसे पूबै एक नल निकलता पुष्यको रक्षा रखनेका अन्तःस्तवक है। उसके पना- है-जैसे गुलाब, इमली प्रभृतिमें। टसीय का नाम कार इन्द्रियको दल कहते हैं। अन्तरावरणके दल उन्नात (Eypigynous) है। इसमें उक्ल नल गर्भ परस्पर मिलने से युक्तदलक ( Mono-petalous ) और केशरसे लिपटता और पु कैशर गर्भकेशर पर चढ़ा- वियुक्त रहनसे बहुदलक (Poly-petalous) नाम जैसा देख पड़ता है-जैसे अमरूद और जामुनका पड़ता है। अन्तरावरणका नियत रूप पांच प्रकार फल। जो केशर युक्तदलान्वित अन्तरावरण पर है-१ नलाकार ( Tabulary) २ सुरङ्गाकार ( Hy- रहते, उन्हें दलोज्जात ( Epipetalous) कहते हैं। pocrateriform) ३ चक्राकार (Rotate) ४ घण्टा केशरके स्थानानुसार विपर्णिक उद.भिद प्रधानतः तीन कार (Campanulate) और ५ धुस्तुराकार (In- श्रणीमें विभक्त हैं। १म का अवजात और पुष्या fundibuliform ) फिर अन्त्रावरणका अनियत वरणसे वियुक्त होनेपर चतुर्विमुक्तस्तवको (Thala | रूप तीन प्रकार है-१ ओष्ठाकार ( Labiate), miflorae); श्य का वहिरावरण, अन्तरावरण तथा २ छमाकार ( Personate ) और ३ जिह्वाकार केशर एकत्र मिल नलाकार रहने एवं केशर उन्नात (Lingulate )। यदि अन्तरावरण वहिरावरणको वा परिजात पड़नेसे त्रियुक्त वहिःस्तवकी ( Calici अपेक्षा दीर्घकालस्थायी रहता, तो किसी स्थलपर florae) और ३य का दलोज्जात केशर गर्भ केशरके सत्वर गिर पड़ता है। धुस्त र पुष्पके पुंकेशरका ऊपर वा चार पाच चढ़ने तथा अन्तरावरणयुक्त कार्य शेष होनेपर अन्तरावरण और वहिरावरण तिरछा दल लगनेसे हियुक्तान्तःस्तवकी (Corolliflorae) तिरछा पृथक् पड़ छूट जाता है। अन्तरावरण और नाम है। वहिरावरण एक वर्ण का रहनेसे समवेश ( Perianth) पुष्पक चार स्तवक रहनेसे सम्प ण समझा जाता कहाता है। एकपणिक उद्भिद प्रायः ऐसा ही है। प्रथम असम्प ण पुष्पमें बहिरावरण एवं अन्तरा होता है। वरण नहीं पड़ता, द्वितीय अन्तरावरणका प्रभाव रक्षक वा प्रधान इन्द्रियविहीन पुष्यको लग्न कहते रहता और तृतीय एक जाति केशरविशिष्ट अथवा हैं। फिर समुदय केशरका पुस्तवक (Androceum) उभय केशरका भी कहीं ठिकाना नहीं लगता। केवल और समस्त गर्भकेशरका स्त्रीस्तवक (Gynecium) केशरविशिष्टको केशरी और केवल गर्भ केशर विशिष्ट नाम है। केशर दल और गर्भमें रहनेपर दो अंशसे पुष्पको स्वोकेशरी कहते हैं। समस्त पुष्य पुंकेशरी विशिष्ट हो जाते हैं। प्रथम अंश वृन्तके दण्ड जैसा किंवा स्त्रोकेशरी होनेसे वृचका नाम एकलिङ्गभाक | एक नाल है। उसे सूक्ष्म वन्त वा तन्तु (Filament) (Diecious) है-जैसे ककड़ी और शहतूत। - कहते हैं। फिर अति अल्प विस्त त उसीका अन्त- वहिरावरणके अंश अर्थात् वहिश्छद प्रायः अव- भाग रण कोष वा परागकोष (Anther ) कहाता सक होते हैं। स्वतन्त्र स्वतन्त्र रहनेसे बहुच्छद! है। पत्रदलके अन्त दण्डकी भांति अनेक स्वसपर
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/२६९
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