उद्भिविद्या २६५ उसोका नाम कन्द (Balb) है। वह अधिकतर । उसको इरित्स्तर कहते हैं। इरित्स्तरसे बाहर मूलाकार काण्ड सदृश होता है। जैसे घाया। काण्ड चीप पैदा करनेवाला स्तर (Cortical lair) है। दो प्रकारका है-दारुमय और रसाल। उद्भिद्के सवैवहिःस्थित स्तरका नाम चर्म ( Epidermis) है। शरीर में जो गोलाकार वस्तु पाते है,उसे बुबुदु (Shell) यह स्तर अधिकांश देख पड़ता है। नारियल कहते हैं। बुबुद अति सूक्ष्म चर्मसे निर्मित क्षुद्र या वैसे ही वृक्षके बीच जब पत्र फूटते, तब काण्डके क्षुद्र दाने होते हैं। उनमें कोई न कोई कठिन वा द्रव | नववर्धिष्णु अंशवाले अग्रभागसे निकटस्थ कितने ही पदार्थ रहता है। उद्भिद और प्राणीका देहका एकत्र | बुदबुद सञ्चित पदार्थ द्वारा कठिन पड नली-जैसे बन दृढ़बद्ध बुदबुद् के स्तरद्वारा निर्मित है। वास्तविक | जाते हैं। फिर वही नली एक बुदबुदके स्तरसे रक्षित किसो जीवित पदार्थको पहिचान करनेके लिये प्रथम रहती है। उक्त नली और कठिन बुदबुद सकल बुदबुद को चिन्ता रखना पड़ती है। नारङ्गीका गूदा एकत्र स्तवक स्तवक पर मिल काण्डमें चच्च वा तन्तु देखनेसे बुद बुद का दृष्टान्त मिलता है। बुदबुद का उत्पादन करते हैं। परिमाण अङ्गलके चार सौ भागमें एकसे तीनतक किसी काण्डकी समस्त कलिकायें एककालमें बैठता है। और किसी किसी उद्भिद में स्क्र जैसी ही व्यक्त हो डाल नहीं बनतों। उनमें अनेक गुप्त पेचदार नली ( Spiral vessel ) रहती है। ऐसे रहतौं और वर्धिष्णुके अनिष्ट होने पर देख पड़ती हैं। आकारविशिष्ट एवं सञ्चित पदार्थयुक्त और गोल बुद- कितनी ही परिवर्तित कलिकाओंके कठिन और बुद के संयोगसे ( Anular vessel) मण्डलाकार नली। सूच्यग्रवत् बननेसे कण्टक निकलता है। निकलती है। बुदबुद् अपने मध्यस्थ सञ्चित पदार्थ के शरीफ़ और पीपलके पेड़में प्रत्येक पर्वको सन्धिसे कठिन पड़नेसे नालाकार बन जाते है,जिन्हें कोष्ठ कहते एक-एक पत्र निकलता है। इसको एकोत्तरक्रम हैं। कोष्ठके वहिःस्थित व्यावर्तक स्तरको त्वक्को और | कहते हैं। मदार और सें हुड़ प्रभृति कितने ही बुदबुद्विशिष्ट मध्यस्तम्भका नाम मज्जा है। एक पेड़ोमें प्रत्येक पर्वको सन्धिसे दो पत्र टते हैं। इसका पणिक उद्भिद दारुमय काष्ठविशिष्ट होनेसे नारियल | नाम प्रतीपस्थ है। और विपर्णिक पामके पेड़ जैसा देख पड़ता है। काण्ड आदिम अवस्था पर कलिकामें रहता है। मज्जा और वल्कलके अव्यवहित निम्नभागमें अणु तन्मध्यस्थित स्तरविशिष्ट और घन सनिविष्ट पत्र यथा. वीक्षणयन्त्र लगानेसे काष्ठका स्तर दृष्टिगोचर होता है। काल प्रस्फुटित हा सौन्दर्य, वर्णोत्कर्ष एवं सद्गन्ध वही त्वक् और काष्ठको वृद्धिका प्रधान स्थान है। वहां द्वारा प्रकृतिको मतवाला बना देते हैं। बुबुद् अतिसूक्ष्म प्राचौरविशिष्ट और अपने उप ___ इन पत्रोंका निगूढ़ तत्त्व ढूढ़नेसे नहीं मिलता। रिस्थ सञ्चित पदार्थसे विहीन रहते हैं। नूतन काष्ठ जितना ही इनको उत्पत्तिका विषय जांचते है, उतना स्तरमें निर्माता बुद्बुद, केवल दीर्घ एवं पदार्थक | हो प्राणों में अभूतपूर्व आनन्दका सञ्चार हो निकलता है। सञ्चयसे परिमाणमें कठिन तथा जलहारा अभेद्य हो। इसलिये कहना पड़ता है-सिवा उस विश्वविधाता सकते हैं। अन्तरस्थ कठिन काष्ठके स्तरको सार वा जगदीखरके कौन इसप्रकार कार्य को सुसम्पन्न कर आन्तरिक काष्ठ ( Heart-rood ) कहते हैं। वह सकता है! हम जैसे रक्तके शोधनार्थ खास लेते है, नाना वर्णयुक्त हो सकता है। सर्वापेक्षा अन्तरस्थ वैसे ही पत्र भी वायुग्रहणसे जीवगणके श्वासयन्त्रका स्तरका नाम तन्तत्पादक प्रदेश (Liber) है। क्योंकि कार्य चलाते हैं। वे वायुके ग्रहण और रचनके कागज बननेसे पहले वृक्षका उक्त भाग निकाल लोग सिवा अधिक परिमाणसे जलका भी निषेक करते हैं। लिखा-पढ़ी करते थे। तन्तूत्पादक प्रदेशसे बाहर दृष्टिका जल प्रथम गिरकर मोमें घुसता है, जिसे एक स्वतन्त्र हरित् एवं प्रस्फट बुदबुद होता है।। उद्भिदका मूल चसता है। प्रत्येकवचमें सहस्र सहन - Vol III. 67
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