इतिश-इतिहास २५ इतिश (सं० पु०) एक ऋषि । इनके गोत्रापत्य को लिये स्मरणातीत कालसे भारत में इतिहासका समादर ऐतिशायन कहते हैं। भी होता आया। गृह्यसूत्र तथा मन्वादि धर्मशास्त्र में इतिह (सं० अव्य.) एवह किल, हन्द-समा०। श्राद्धादि पिटकार्यमें इतिहास और पुराण सुनानेको पुराणानुसार, निःसन्देह इस प्रकार, हकीकतमें इसी जो व्यवस्था लिखो,उसका कारण भी यही है। यथा- तरह। "आयुष्मता कथा: कीर्तयन्तो माङ्गल्यानौतिहासपुराणानीत्याख्यापयमानाः।" इतिहास ( स० पु०) इतिह पुगवत्तं प्रास्ते अस्मिन् ; ( आश्वलायनग्टह्यसूत्र ४५) इतिह-पास-घ, ६-तत्। पुरावृत्त, प्राचीन आख्यान, "खाध्याय श्रावयेत् पिवे धर्मशास्त्राणि वहि । तवारीख। पुरावृत्त कथा ही इतिहास है। इसे अष्टा आखयानानोतिहासाच पुराणान्धखिलानि च ॥” (मनु २।७२) दश शास्त्रके अन्तर्गत मानते हैं। "ऋग्वे दो यजुब्दः साम महाभारतमें लिखा है- . वेदोऽथर्वाङ्गिरस इतिहास: पुराण' विद्या उपनिषदः झोका: सूवाण्यनुव्याख्या "भारण्यकञ्च वैदेभ्यो ओषधिभ्योऽमृत यथा । नानि ।" ( यजुर्वेदीय शतपथब्राह्मण १४।५।४।१०) इदानामुदधि श्रेष्ठो गौरिष्ठी चतुष्पदा । ___उपरोक्त ब्राह्मण और अपगपर प्राचीन ग्रन्थमें येथे तानौतिहासानां तथा भारतमुच्यते । इतिहास और पुराण वाक्यका उल्लेख देख अति यौन टावयछाई ब्राह्मणान् पादमन्ततः ॥ प्राचीन कालसे इतिहास और पुराण नामके स्वतन्त्र अक्षय्यमनपान वैपितृस्तस्योपतिष्ठते । इतिहासपुराणाभ्यां वेद समुपयेत् ॥" ( आदिपर्व, १०) ग्रन्थको विद्यमानता समझ पड़ती है। अथव-संहिता (१५।६।४), और छान्दोग्योपनिषद् अर्थात वेदोंमें जैसे आरण्यक, ओषधियों में अमृत, (७।१।१) मध्य इतिहासका उल्लेख पाते हैं। छान्दो जलाशयोंमें समुद्र और चतुष्पदोंमें गौ थ8 है, वैसा ग्योपनिषत् तथा कौटिल्यके अर्थशास्त्रमें इतिहास ही इतिहासोंमें भारत श्रेष्ठ है। जो व्यक्ति श्राद्धके पञ्चमवेद कहकर निर्दिष्ट हुआ है। महाभारतकार समय ब्राह्मणसे इस भारतका अन्ततः एक चरण भी कृष्णद्दे पायनने कहा है- सुज पाता उनका दिया अन्नपान पिलोकमै अक्षय "धर्मार्थकाममोचानामुपदेशसमन्वितम् । होता है। इतिहास और पुराणों के द्वारा वेदका पूर्ववृत्तकथायुक्त मितिहास प्रचक्षते ॥" हो अर्थ प्रकाशित होता है। , जिसमें धर्म, अर्थ, काम और मोक्षका उपदेश एवं ___उड़त महाभारतीय श्लोकमे जान पड़ता, कि महा- पुरावृत्त कथा रहता, वह इतिहास कहाता है। भारत हमारा इतिहास है, इसके पूर्व भी बहु इतिहास विष्णुपुराणको टोकामें (२४।१०) श्रीधरस्वामीने | रहा उनमें भारत श्रेष्ठ इतिहास कह परिचित हुआ भी ऐसा और एक प्राचीन वचन उद्धत किये हैं था। आश्वलायन-रगृह्यसूत्रके (३।४।४) “भारत- .महाभारत-धर्माचार्याः” इत्यादि वचनसे मालम होता "चार्यादि बहुव्याख्यान देवर्षि चरिताश्रयम् । इतिहासमिति प्रोक्त' भविष्यास तधर्मयुक् ॥" है, उस समय 'भारत' और 'महाभारत' नाममें विभिन्न इतिहास प्रचलित था। हम प्रचलित महा- ऋषिप्रोक्त बहु व्याख्यान, देवर्षिचरित तथा अङ्गत . भारतसे भी जान सकते, कि पहले लक्ष श्लोकी महा- धर्म कथादि जिसमें हो वह इतिहास है। महात्मा चाणक्य ने निर्देश किया है-"पुराणमितिहत्त- भारत प्रचलित नहीं रहा, महाभारत में हो है- माख्यायिकोदाहरणं धर्मशास्त्र अर्थशास्त्रं चेतिहास:।" (कौटिलीय अर्थशास्त्र) "चतुर्विंशतिसाहसी चके भारतम'हितां । पुराण, इतिवृत्त, आख्यायिका, उदाहरणा, धर्मशास्त्र उपाख्यानविना तावद्वारत पोचते बुधैः ॥" और अर्थशास्त्र यह सब ही इतिहास हैं। व्यासदेवने प्रथम २४००० श्लोकमयो भारत-संहिता इतिहासमें चतुर्वर्ग फल-लाभको कथा है; अतएव बनायी थी। वास्तविक वर्तमान प्रचलित संस्करण- इतिहास पञ्चमवेद श्रुतिमें कौर्तित हुआ और इसी समूहमें उस आदि संहिताको अनेक कथा रहते भी ___Vol III.
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/२६
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