उदापि-उदावत २५० "उदानो नाम यस्त व मुपैति पवनीतमः । ११ शिष्ट, शरीफ.। १२ असाधारण, अनोखा। (पु०) ऊर्ध्वजक्र गतान् रोगान् करोति च विशेषतः।" (मुश्नुत) १३ दीर्घशालि, लम्बा चावल । (अव्य.) १४ ऊंचे महर्षि सश्रतके कथनानुसार अवं दिक सच्चरण खरसे, बुलन्द पावाज़में। (वै० त्रि.) १५ उत्तेजक, करने वाले वायुका नाम उदान है। इसके कुपित उठाने या भड़कानेवाला। (पु.) १६. उत्थानशील होने से स्कन्धसन्धिसे उपरिस्थित सकल रोग उपजते हैं। बाष्प, उठनेवाली भाप। १७ काव्यालङ्कार विशेष। योगार्णवमें इसका क्रियास्थान आदि इसप्रकार | इससे निर्जीव पदार्थमें शिष्टता प्रदर्शित करते हैं। निरूपित है- उदारा-सङ्गीतशास्त्रका सप्तक विशेष । सा ऋ ग म प "स्पन्दयत्यधर वक्त गावनेवप्रकोपनः । ध और नि सात स्वरको एकत्र करने से सप्तक संज्ञा उद्देजयति मर्माणि उदानो नाम मारुतः ॥ होती है। मनुष्यके देहमें स्वाभाविक तीन. सप्तकसे विद्यत्पावकवर्णः स्यादुत्थानासनकारकः। . अधिक नहीं निकलते। एसीसे भारतीय सङ्गीतशास्त्रमें पादयोईन्तयोश्चापि सर्वसन्धिषु वर्तते ॥” उदारा, मुदारा और तारा तीन सप्तकका उल्लेख है। उदानवायु अधर और मुखको फड़काता है।। नाभिसे जो सप्तक उठता, उसे सङ्गीतज्ञ उदारा कहता यह चक्षु एवं शरीरको प्रकोपकारी और मर्मको है । वेदान्तके मतसे यह अनुदात्त है। उत्तेजक है। वर्ण विद्यत् एवं पावक जैसा होता है। उदाराशय (स. त्रि.) उतक्लष्ट प्राशयविशिष्ट, ऊंचा इसीके सहारे लोग उठते बैठते हैं। हस्त एवं पाद मतलब रखनेवाला, बड़ा। सकल सन्धिमें यह विद्यमान है। उदावत्सर (स० पु०) वर्ष विशेष। इस वर्ष रौप्य वैद्यकके मतानुसार उदानवायु ऊपरको चढ़ता देने से महाफल मिलता है। इदावत्सर देखो। है। इसौके सहारे गाना और बात करना होता है। उदावर्त ( स० पु०) उत्-श्रा-वृत्-घञ्। रोग- विशेषतः यह अर्ध्व-जत्रु-गत रोग बढ़ाता है। (सुश्रुत ) | विशेष, पेटको एक बीमारी। इसके होनेसे न तो मल २ उदरावर्त, ढोंढो। ३ सर्प, सांप। ४ पक्ष्म, | गिरता, न मूत्र उतरता और न वायु ही चलता है। पलक। ५ बौद्ध शास्त्रभेद। इस शास्त्र में बुद्धदेवका “वातविरमूवज भानुक्षवोमारवमौन्द्रियः । चरित्र लिखा है। व्याहन्यमानरुदितैरदावों निरुच्यते ॥” ( सुश्रुत) उदापि (सं० पु०) सहदेवके पुत्र और मगधराज जरा वायु, मल, मूत्र, जम्भा, अशु, काश, हिक्का, सन्धके पौत्र। (हरिवंश) उद्गार, वमि, शक्र प्रभृतिका वेग रोकने पर वायु उदापक्षी (सं० पु०) विश्वामित्रके एक पुत्र । (भारत) अर्वजान से यह रोग उतपन्न होता है। इसी कारण उदाप्य (वै० अव्य०) धाराके ऊपर, दरयाके सामने । उदावत नाम पड़ा है। .. उदाम (हिं.) उद्दाम देखो। "तुतृष्णाश्वासनिद्रानामुदावर्तो विधारणात् । उदायन (हिं.) उद्यान देखो। वायु:कोष्ठानुगो रुः कषायकटुषिक्तकैः । उदायुध (सं० वि०) उदूर्ध्व आयुधो यस्य । उद्धृतास्त्र, भोजनैः कुपित: सद्य सदावर्त करोति हि ॥” (सुश्रुत ) - हथियार उठाये हुआ। (रघु १२।४४ ) क्षुधा, तृष्णा, निद्रा और खासका वेग रोकनेसे भी उदार (सं.वि.) उत् उत्कृष्टं पा समन्तात् राति यह रोग हो जाता है। फिर रुक्ष, कषाय, कट ददाति, उत्-प्रा-रा-पातश्चेति क। १दाता, देने और तिक्त भोजन कोष्ठमें पहुंचनेसे वायु भड़कना बाला। २ महात्मा, साधु । (गीता ॥१८) ३ सरल, | इसकी उत्पत्तिका दूसरा कारण है। सीधा। ४ उत्कृष्ट, बढ़िया। ५ गम्भीर, गहरा। "वृष्यादित परिक्लिष्ट होणं शूलैरभिद्रुतम् । महोच्च, बहुत ऊंचा। ७ वदान्य, रहीम । ८सार- शकहमन्त' मतिमानुदावर्तिनमुत्सृजेत्।" वान, असली। ८ रम्य, उमदा। १. न्याय्य, वाजिब।। सुश्रुतने कहा-उदावत रोगमें तृष्णात, अत्यन्त
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/२५१
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