२४१ न होना हो सकल प्रकार उदररोगका प्रधान कारण | 8 त्रिदोषजनित, ५ लोहोदर, ६ बगुद, ७ भागन्तुक, है। लिखते हैं- पौर पदकोदर। “अनिदोषान्मनुष्यायां रोगसङ्घाः पृथम्विधाः । “पृथक् समस्त रपि चेह दोष : नौहोदरं पद्धगुदं तथैव । मलढया प्रवर्तन्त विशेषे योदरावि तु॥" (चरक) भागन्तुकं सक्षममष्टमञ्च दकोदरचे ति वदन्ति तानि ॥" (मनुत) मनुष्य के अग्निदोषसे पृथक् पृथक नाना प्रकारको चरकमें लिखा है-अत्यन्त उष्ण, अत्यन्त लवण- पौड़ा उपजती है। विशेषतः उसके कारण मल बंधने- मिश्रित, क्षार, दाहजना, उग्र एवं अत्यन्त अम्ल द्रव्य पर अनेक उदर रोग फूट पड़ते हैं। खाने,-वमन विरेचनादिके संशोधन बाद अनियमित किन्तु यह मत माननेसे वर्तमान चिकित्साशास्त्रके भोजन पाने,-रुक्ष, विरुद्ध तथा अविशुद्ध द्रव्य पेटमें साथ सामञ्जस्य पड़ना दुर्घट है। उदरके लक्षण पहुंचाने, प्लीहा, अर्थ, ग्रहणी प्रभृति व्याधिक अतिशय विचारनेसे स्पष्ट हो समझ सकते, कि उसमें अनेक वृद्धिपर पाने, वमनादि क्रियाके विश्वममें जाने,- प्रकारके रोग लगते हैं। पाकस्थलीको विवृद्धि किसी किसी पीडाका यथासमय प्रतीकार न लगाने,- ( Dilatation of the stomach ), पाकस्थली और रक्षता, वेगरोध, स्रोत सकलको दोषजनक क्रिया अन्त्रके भीतरका उपपदार्थ (Foreign bodies in the छाने,-आमदोष, संक्षोभ समाने,-अतिभोजन पचाने, stomach and intestines'), पाकस्थली, अन्त्रावरक अर्श, वायु और मलका रोध देखाने, अन्त्र का स्फुटन झिल्ली प्रभृति स्थानका कर्कटरोग (Cancer of the | एवं भेद पड़ जाने, दोषका पतिशय सञ्चय बढ़ पाने, stomach, peritoneum etc.), पाकस्थ लो, अन्त्र । पापकर्म उठाने और मन्दाग्निका दोष हो जानेसे उदर- प्रभृति यन्त्रका छिद्र (Perforation of the stomach रोग उपजता है। सुश्रुतमें भी सक्षेपसे ठीक ऐसे ही and intestines), लोहाको पुरातन विवृद्धि (Cronic कारण कई हैं- enlargement of the spleen, ague-cake; leu "दुर्वलाग्ने रहिताशनस्य सनष्कप्त्यन्ननिषे वनादा। cocythemia), प्लीहाका तरुणप्रदाह (Acute से हादिमिष्याचरणाच्च नन्तोई बिं गताः कोष्ठमभि चे प्रपनाः ।। splenitis), यवत्का प्रदाह (Suppurative गुल्माकतिव्यञ्जितलक्षणानि कुर्वन्ति घोराण्य दराणि दोषाः ॥" pepatitis), यवत्का स्फोटक (Abscess of the जिसके अग्निका तेज अच्छा नहीं, उस व्यक्तिक liver ), यवत्को विशुष्कता (Cirrhosis); यक्वत्के कुत्सित वा प्रतिभोजन पाने, किंवा सर्वदा खाने हाइटेडिड नामक कीटाणुका कोषावुद (Hytadid | अथवा नेहादिको अधिक व्यवहारमें लानेसे कोष्ठा- cysts of the liver), अन्त्रके स्थानविशेषका स्फोटक, थित दोष बढ़ते और उनसे गुल्म व्याधि-जैसे उदर अन्त्रावरक झिल्लीका प्रदाह ( Peritonitis), अन्चा रोग निकलते हैं। सामान्य लक्षण यह है- वरक झिल्ली तथा उदरके अन्य अन्य स्थानका टुबर "कुचराध्यानमाटोपः शोथः पादकरस्य च । कुलर नामक विचर्चिका-सञ्चय (Tubercular depo मन्दोऽनिः अस्यगण्डत्व काय बोदरलक्षणम् ॥” (चरक) sits in peritoneum, intestines etc..), अन्त्राव कुक्षिमें पायान वा पाटोप उठना, पाद और कर रोध (Obstruction of the bowels), स्त्रीके पर शोथ चढ़ना,अग्निमान्ध लगना, अक्ष्यगण्डत्व पड़ना जरायुका प्रदाह (Metritis), अण्डाधारका जल और कशता बढ़ना उदररोगका लक्षण है। शोथको सञ्चय (Ovarian dropsy), बक्ककको पौड़ा सकल प्रकार उदररोगका सामान्य लक्षण मानने- ( Diseases of the kidneys) प्रभृति व्याधि उदर- पर पित्तोदर प्रभृतिके निदान में विरोध पड़ता है। रोगसे भिन्न नहीं। . उदररोग उपजनेसे पूर्व ये लक्षण झलकने पायुर्वेदके मतसे उदररोग पाठ प्रकारका होता| लगते हैं-भली भांति सुधा न खगमा, सुस्वादु, सिह है-१ वातजनित, २ पित्तजनित, कफजनित, एवं गुरुपद बड़ा विलम्ब बगने पथवा कोई दूब ___Vol III. 61
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