२३८ उदयपुर वा मेवाढ़-उदयभास्कररस अविलम्ब खोदनेके लिये पादेश दिया। किन्तु दूसरे राजत्व चलाया था। १८५८ ई० में अंगरेजोंने फिर ही दिन औरङ्गजेब अकस्मात् पीडित हुये थे। इसलिये उदयपुर लिया और सरदार उत्तराधिकारीको आन्दा- उनको भय समा-सम्भवतः मन्दिरस्थ महादेवके मान होप यावज्जीवन निकाल कर भेज दिया। बल- प्राक्रोशसे मेरी दशा इसप्रकार बिगड़ी है। फिर उन्होंने वेमें सरगुजाके राजाने अंगरेजोंको साहाय्य पहुंचाया मन्दिर खोदने को मनाई कर दी थी। उन्होंके आदेशसे था। इसी महत्कार्यके लिये १८६० ई. में वृटिश पाखं पर एक मसजिद बनी। औरङ्गजबको आज्ञा गवरनमेण्टने यह राज्य उनको सौंपा। थो-कोई मुसलमान जबतक नङ्गे पैरों महादेवकी राजधानी रावकोब मांद नदीके तौरपर अवस्थित मूर्तिके दर्शन करने मन्दिरमें न जायेगा, तबतक इस है। उत्पन्न द्रव्य के मध्य लालमिर्च प्रचुर परिमाणसे मसजिदमें भी न घुसने पायेगा। होता है। एतद्भिन्न कार्पास, निर्यास, नानाप्रकार ४ बङ्गालप्रदेशके अन्तर्गत पार्वतीय त्रिपुराराज्यका तैलवीज, धान्य, लोह और अल्प स्वर्ण भी मिल जाता एक विभाग। ५ पावतोय त्रिपुरा राज्यके मध्यका एक है। कोयलेको एक विस्तृत खानि खुदी है। ग्राम। यह गोमती नदीके तौर अक्षा० २३.६१२५ | उदयप्रभसूरि-एक विख्यात खेताम्बर जैन ग्रन्थकार । उ० और द्राधि०८१.३११०“पू० पर अवस्थित है। इन्होंने प्रवचन-सारोवार-विषमयद-व्याख्या और धर्म- त्रिपुरखरीका मन्दिर रहनेसे यह स्थान एक तीर्थ शर्माभ्य दय काव्य वा सङ्घपतिचरित नामक दो संस्कृत समझा जाता है। त्रिपुरेश्वरी देवीसे हो देशका नाम ग्रन्थ बनाये थे। शेषोक्त ग्रन्थ आबू पर्वतवाले प्रसिद्ध त्रिपुरा पड़ा है। प्रति वर्ष इस तीर्थ के दर्शनको नाना जैन-मन्दिरनिर्माता राजमन्त्री वस्तुपालके सम्मानार्थ स्थानसे सहन सहस्र यात्री आते हैं। कपास, तख.ता | लिखा गया। उदयप्रभसूरि श्रीविजयसेन सूरिके शिष्य और लह बहुत बिकता है। और नरचन्द्र सूरिक समसामयिक रहे। प्राचीन पावतोय त्रिपुराराजके मध्य स्थित एक उदयप्रस्थ (सं० पु०) उदयाचलको समस्थली। प्राचीन नगर। आजकल यह ध्वंसप्राय है। ई० उदयभद्र-एक बौद्धराजा। इन्होंने छः वर्ष राजत्व के १६ वें शताब्दमें उदयपुर राजा उदयमाणिक्यको किया था। बौद्धोंके प्रधान विनयाचार्य उपालि विद्य- राजधानी रहा । एक शिवमन्दिर विद्यमान है। मान रहे। अशोकके अनुशासनमें लिखा है-बुद्ध- मन्दिरमें महादेवके दर्शनार्थ समय समय बहु यात्री निर्वाणके साठ वत्सर बाद उदयप्रभको मृतुा हुई थी। पाया करते हैं। उदयभास्करकपूर (सं० पु.) स्वनामख्यात कपूर, ___७ छोटे नागपुरमें देशीय राजाके शासनाधीनस्थ | किसी किस्म का बनाया हुआ काफूर। यह पक्व और एक करद राज्य। यह अचा. २२° ३३० तथा सदल एवं निर्दल भेदसे दो प्रकारका है। उदय- २२. ४७७० और ट्राधि० ८३.४ ३० एव ८३ भास्कर पौत, सर, स्वच्छ, कठिन, कट, समुदित, अग्नि- ४'३० पू० के मध्य अवस्थित है। उत्तर सरगुजा, दीपक, लघु, श्रीद एवं पित्तकर होता और कफ, पूर्व रायपुर जिला तथा यशपुर राज्य, दक्षिण रायगढ़ कमि, विष तथा वातको खोता है। इससे नासा तथा और पश्चिम सीमापर विलासपुर जिला विद्यमान है। श्रुतिका रोग, लालास्राव, गलग्रह और जिह्वाका भूमिका परिमाण १०५५ वर्गमौल है। जड़त्व भी छूट जाता है। (वैद्यक निघण्ट) १८१८ ई० में अप्या साहबसे अंगरेजोको जो उदयभास्कररस (सं० पु.) १ कुष्ठाधिकारका एक सन्धि हुयी, उसके अनुसार उदयपुर पर उनके शास | रस, कोढ़ की एक दवा। केवल गन्धकसे मृत ताम्र नको अधीनता पड़ी। १८५७ ई० को सिपाही युद्धके दश, उषण (नाषण) पांच और विष (सोंगिया) समय स्थानीय सरदार और उनके भाईने अंगरेजों पर दो भाग डाल जलमें पोसे और रत्ती रत्ताको वटिका अस्त्र उठाया और इस स्थानको जीत कुछ दिन तक बना कुष्ठीको खिलाये। (रसेन्द्रसारसग्रह) मतान्तरसे
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