२३४ . उदयपुर वा मेवाढ़ : अरावली पर्वत और दक्षिण-पश्चिम महीकांटा है।। राजपूत-वीर संग्रामसिंह या साङ्गाजीके समय प्रक- यह अचा० २६. ४८ एवं २५.५४ उ० पौर द्राधि० बरके पितामह बाबरने चित्तौर घेरा। उन्होंने फतेहपुर- ७३.७ तथा ७५.५१° पू०के मध्य अवस्थित है। सौकरीके निकट आगे बढ़ मुगल सैन्यको गति रोकी भूमिका परिमाण १२६७ वर्ग मोल है। लोकसंख्या थी। किन्तु युद्ध में असाधारण वीरत्व देखात भी अव- लगभग डेढ़ लाख है। हिन्दू और जैन अधिक रहते | शेषको वे हार गये। उसी दिनसे साङ्गाराणा फिर हैं। स्थानीय पर्व तमें महेट, भील और मौना तीन देशको न लौटे, पर्वत पर्वत घूम केवल बुद्धका पायो- प्रकारको प्रसभ्य जाति रहती है। जन करते रहे। उनके मनमें था-जबतक हम युद्धमें इतिहास-बहुकालसे यहां सूर्यवंशीय राजा शासन मुगल बादशाहको न हरायेंगे,तबतक अपने देशको भी चलाते, जो महाराणा कहाते और अपनेको रामचन्द्र के वापस न जायेंगे। मनको पाशा मनमें हो रही, प्रल्य अधस्तन पुरुष बताते हैं। किन्तु प्राचीन शिला- दिनमें हो मृत्यु उन्हें खा गयो। १५३० ई०को साक्षा- लिपिसे प्रमाणित हुया है वे पहले ब्राह्मण थे, पोछे जीके पुत्र रत्नसिह राणा बने थे । उन्होंनेभी बूंदीराज- क्षत्रिय हो गये है। के साथ सम्मुख समरमें प्राण दे दिया। फिर रत्नके माता राजपूत राजगबमें उदयपुरके राणा हो श्रेष्ठ और विक्रमादित्यको राज्य मिला था। उस समय गुजरातके सर्वापेक्षा माननीय हैं। मुसलमान् बादशाहोंके मुसलमान बहादुर चित्तौर पर चढ़े। युद्ध चलने पर प्राधिपत्यकालमें राजपूतानेके प्रधान प्रधान प्रायः चित्तौरके दुर्भेद्य दुर्गमें यावतीय मान्यगण्य राजपूत- सकल हो राजा किसी न किसी दिल्लीसम्राटसे दव नारीने धाश्रय लिया था। जब देखा, कि दुर्ग बचाया गये थे। अनेकोंने कन्यादान भी दिया था। न जा सकेगा और शोध ही मुसलमानोके मुख में पड़ेगा, किन्तु प्रबल प्रतापशाली उदयपुरके राणाने मुसल तब प्रायः दो सहस्त्र राजपूतबालाने अमूख्य सतीत्वरत्न मानोंको अधीनता न मान अथवा अपनी कन्या रखने के लिये चितानलमें जीवन छोड़ा। दुर्गस्थित राज- उन्हें न सौंप जातीय गौरव बचाया था। उदय- पूत वीरोंने जब देखा-चिराराध्य जननी, प्राणप्रतिमा पुरके राणा राजपूत जातोय गहलोत श्रेणीको शिशो दयिता और स्नेह एवं आदरके रत्न कन्यागणने दीय शाखाके हैं। अकातर जीवन छोड़ राजपूत कुलका गौरव बढ़ाया ७२८ ई. में इस वशके बप्प रावलने सर्व प्रथम है। तो फिर वे तेजस्वी वीरगण भी टुगेका द्वार खोल मेवाड़में राज्य जमाया था। १२०१ ई में चित्तौरराज मुसलमानोंके सैन्यसागरमें कूद पड़े। एक-एक जन समरसिंहके मरनेपर उनके ज्येष्ठ पुत्रने राज्यसे भाग मुसलमानों को मारते मारते रणको शय्यापर सो गया। डंगरपुरवाले जङ्गल में जाकर राजधानी बसायी थी। और चित्तौर मुसलमानोंके हाथ लगा। पहले उदयपुरके राजाका रावल (राव) उपाधि रहा। ___ हुमायूके प्रतापसे बहादुर गुजरात लौट गये। किन्तु राहुपने राजा होकर रावल के परिवर्तमें राणा चित्तौर फिर विक्रमादित्यको मिला था। किन्तु अल्प उपाधि लिखा था। . दिनके मध्य ही सरदारों ने उन्हें राज्यसे हटा मार १२७५से १२८० ई. तक लक्ष्मणसिंहने राजत्व डाला। रणवीर नामक एक व्यक्ति राणा बने थे। किया। उसी समयपर अलाउद्दीन चित्तौरपर चढ़े थे। अल्प दिनके बाद साङ्गाराणाके कनिष्ठ पुत्र उदयसिंहने १३०३ ई में वोरकेशरी हमीर राजा बने। वे फिर मेवाड़का राजसिंहासन अधिकारमें किया। महमूदके विरुद्ध खड़े हुये थे। दिल्लोके सम्राटको उदयसिंहके राजत्वकालमें अकबर शाहने चित्तौर केदकर उन्होंने यवन-कवलित मेवाड़का राज्य फिर जीता था। उदयने चित्तौर खो अरावली पर्वतपर छुड़ाया। जिससे कि जयपुर, बूंदी और ग्वालियरके गिर्वा उपत्यकामें उदयपुर नामक नगर बसाया। रानमणने हमीरको यथाविहित सम्मानित किया था। यही स्थान उस समयसे मेवाड़को राजधानी बना है।
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/२३५
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