२२. उत्पलगन्धिक-उत्पलिनी उत्पलमन्धिक, उत्पलमन्धि देखो। उत्पलाक्ष (सं० पु०) काश्मीरके एक प्राचीन राजा। उत्पलगोपा (सं० स्त्री०) श्वेत शारिवा, सफेद, ये सिद्धके पुत्र थे। इन्होंने ५३ वत्सर राजत्व किया। राज्यको प्राप्तिका काल २१७८ कलाब्दः अनन्तमूल। उत्पलचक्षुस् (सं० वि०) उत्पल सदृश नेत्रयुक्त, था। ( राजतरनिणी १।२८६) नौलोफर जैसी आंखोंवाला, जिसके निहायत उम्दा उत्पलादि (सं० पु०) वैद्यकोक्त औषध विशेष, प्रांख रहे। एक दवा। रक्तपद्म, रक्तकर्पास एवं करवीका मूल, उत्पलदल (सं० लो०) तबामक अस्त्र विशेष, इसी गन्धमात्रा, जीरक तथा रक्तचन्दन समुदयको सम- नामका एक नश्तर। यह चौरफाड़में काम आता है। भागमें चणकर एकत्र मिलाये और चावल के धुले हुये (अविसहिता) पानौसे खिलाये। इसके सेवनसे रक्तमूत्र, योनि, कटि उत्पलपत्र (सं० ली.) १ कुवलयदल, कमलका एवं कुक्षिका शूल और प्रदर शीघ्र नष्ट होता है। पत्ता । २ स्त्रीके स्तनका नखक्षत। ३ तिलकभेद, एक | उत्पलापोड़ (स० पु०) काश्मीरके एक राजा। प्रकारका टोका। इसे हिन्द चन्दनसे मस्तकपर लगाते यह अजितापीड़के पुत्र रहे और ३१ वत्सर राजत्वके हैं। ४ छेदन एवं भेदनका वैद्यकास्त्रविशेष, चौर बाद सिंहासनसे च्युत हुये। इनके बाद अवन्तिवर्मा फाड़का एक नश्तर। यह छ: अङ्गल रहता है। (सश्चत) राजा बने थे। (राजतरङ्गिणी ४।७०८-१५) उत्पलपत्रक ( स० लो० ) चिकित्सास्त्रविशेष, उत्पलाभ (सं० त्रि०) पद्मसदृश, नीलोफर-जैसा, एक नश्तर। पूर्व समय यही अस्त्र चीरफाड़में चलता जो कमलसे मिलता जुलता हो। उत्पलावन (सं० लो०) पञ्चालस्थ एक अति प्राचीन तीर्थ। (भारत अनुशासन २५।३३) "पाञ्चालेषु च कौरव्य कथयन्ता त्पलावनम् ।" (भारत बन ८७।१४) , था। इसका फलड़ा चौड़ा रहता है। यहां नारदरूपो लिङ्गमूर्ति विद्यमान है। उत्पलपुर (सं. लो.) काश्मीरका एक प्राचीन नगर। उत्पल नृपतिने इसे बसाया था। ( राजतरङ्गियो) "वशिष्ट्य विदाभूम्यां नारदश्वोत्पलावने ।" ( प्रभासखण्ड ८० भ० ) उतपलभेद्यक (सं० पु.) कर्णबन्धाततिभेद, किसी तभद, किसी उत्पलिन् (स.त्रि०) उत्पलसे प जालिन नि पं. नीलो- किस्मको पट्टी। फरसे भरा हुआ। "वत्तायतसमोभयपालिरुत्पलभेद्यकः।” ( सुत्र त) . उत्पलिनी (सं० स्त्री०) १ जलज पुष्यविशेष, उत्पलमृत् (सं० स्त्री०) सौराष्ट्रमृत्तिका, काबिस। छोटा कमल। संस्कृत पर्याय कैरविणी, कुमुद्दती, उत्पलशाक (सं० पु०) शाक विशेष, एक सबजी। कुमुदिनी, चन्द्रेष्टा, कुवलयिनी, इन्दीवरिणी और उत्पलशारिवा (सं० स्त्री०) १ श्यामालता, दूधी। नीलोत्पलिनी है। हिन्दीमें इसे बधोला कहते हैं। २ अनन्तमूल। वैद्यकके मतसे यह शीतल एवं तिक्त होती और तृष्णा, उत्पलषटक (सं० लो०) ज्वरातिसार रोगका एक भ्रम, वमि, कास, क्षय, यक्ष्मा, कफ, वात, पित्त, आम- औषध, बुखारके दस्तोंकी एक दवा । उत्पल, रक्त, रक्तातिसार, अर्श और ग्रहणी प्रभृति रोगोंको धान्धक, शुण्ठी, पृश्निपर्णी और बालविल्वको अति खोती है। इसका वीज खाटु, रूक्ष, शीतल और गुरु है। उष्ण गायके तक्रमें पोसे और उसके लाजसे मण्ड बना २ छन्दोवृत्तिभेद, एक प्रकारका जगतो छन्द। . शीतल करके रोगीको पिलाये। यह औषध ज्वराति ३ नदी विशेष, एक दरया। ४. कोषग्रन्थविशेष सारको दबाता और जठराग्निका बल बढ़ाता है। लगातको एक किसाब । ५ उत्पलपुष्पसमूह, . (पविसविता) नौलोफरके फल का टेर। . .....
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/२२१
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