उत्तराधिकारिन्-उत्तरायणान्तवृत्त २१३ ( कन्या, पुत्रहीना और विधवा अधिकारिणी नहौं । एकग्राम-भुक्त अधिवासीको मिलता है। ऐसा कोई न होती।) विवाहिता दुहिताके अभावमें दौहित्र अधि रहनेसे राजा उत्तराधिकारी है। (दायभाग) कारी होता अभावमें उसके पिताका खत्व है। उत्तरान्वित (संत्रि०) उत्तराको साथ लिये हुआ। पिताके न रहनेसे माता और उसके भी अभावमें भ्राता उत्तरापथ (सं० पु.) उत्तरा उत्तरस्यां पन्थाः, अच् । उत्तराधिकारी है। प्रथम सोदर, सोदर न होनेसे भारतवर्षका उत्तरस्थित देश, श्वार्यावतका उत्तरांश । वैमात्रे यको अधिकार दिया जाता है। सोदरके "उत्तरापथदेशस्य रचितारो महीक्षितः।” (हरिवंश) मरनेसे उसका पुत्र, उसके अभावमें मात्रेय-चाल- उत्तराफाला नौ, उत्तरफल्सा नी देखी। पुत्र उत्तराधिकारी होता है। सोदरके माढविषयमें उत्तराभाद्रपद, उत्तरभाद्रपद देखो। प्रथम अपने सोदर, उसके अभावमें मात्रेयका ग्रहण उत्तराभास (सं० पु० ) दुष्ट उत्तर, खराब जवाब, है। इसीप्रकार विमाताके विषयमें प्रथम विमाटपुत्र, जो उत्तर ठीक न हो। स्मतिने इसे ग्यारह प्रकारका उसके अभावमें उसका असं सृष्ट पुत्र लिया जाता है। लिखा है। यथा-१ सन्दिग्ध, शकिया; जैसे कोई अभि- भ्राताके अभावमें भ्राहपुत्र और उसके भी प्रभावमें योग पानिपर कहे-मुझे स्मरण नहीं, मैंने सौ रुपये वैमात्रे य-भ्रामपुत्र अधिकार पा सकता है। भाटपुत्रके लिये या पैसे पैसे । २ प्रक्कतसे अन्यत्,असलीसे दूसरा- अभावमें भ्राटपौत्र है। उसके अभावमें पिटदौहित्र जैसे मैंने सौ रुपये नहीं सौ पैसे लिये हैं। ३ अत्यल्प, अर्थात निज भगिनीपुत्र वा वैमात्रेय भगिनीपुत्र, उसके। निहायत कम-जैसे मैने सौ नहीं, पांच रुपये लिये अभावमें पितामह, उसके अभावमें पितामही. उसके हैं। ४ अति भूरि, बहुत ज्यादा-जैसे मैंने सौ नहीं, अभावमें पिताका सहोदरचाता, उसके अभावमें दो सौ रुपये लिये हैं। ५ पक्षकदेशव्यापी-जैसे मैंने पिताका वैमात्रेय-धाता, उसके प्रभावमें पिताका सुवर्ण और वस्त्र दोनों नहीं, केवल सुवर्ण लिया है। सहोदरपुत्र, उसके अभावमें पिताका सहोदर-पौत्र, व्यस्तपद, जैसे मैंने सुवण नहीं लिया, उलटा मारा उसके अभावमें पिताका मात्रे य-पुत्र, उसके अभावमें गया हूं। ७ अव्यापी, बेसिर पर। ८ निगूढ़, मैंने पिताका मात्रेय पौत्र इत्यादि अधिकारी होता है। नहीं-किसी दूसरेने इनसे ऋण लिया होगा। पिताके कुलमें कोई न रहनेसे पितामहदौहित्र, उसके आकुल-जैसे मैंने रुपये लिये तो थे, किन्तु अब देने अभावमें प्रपितामह-दौहित्र, उसके अभाव में प्रपितामह नहीं। १० व्याख्यागम्य, समझानको जरूरत रखने- और उसके भी अभावमें प्रपितामहीको उत्तराधिकार वाला। ११ असार, जैसे मैंने व्याज दें मिलता है। प्रपितामहीके अभावमें पितामह का नहीं लिया। सहोदर वा व मात्रे य-भ्राता पुत्रपौत्रादि क्रमसे अधि- उत्तराभासता (स. स्त्री०) उत्तरको अपर्याप्तता, कारी हैं। इसीप्रकार पिण्डदगणके अभावमें मातामह, जवाबकी कमी। मातुल और मातुलपुत्र क्रमान्वयसे उत्तराधिकार उत्तराभासत्व (स० लो०) उत्तरामासता देखो। पाता है। मातुल-पुत्रके अभावमें अधस्तन सगोत्रीय, उत्तरायण (सं० लो०) उत्तरा उत्तरस्यां अयनं आहारदाता प्रभृति एक दूसरेके अभावमें उत्तराधिकारी सूर्यादेः, अण । पूर्व पदात् सज्ञायामगः । पा ८।३। सूर्यका होते हैं। उनके अभावमें ऊर्ध्वतन सगोत्रीय धनी, | उत्तर दिग् गमनकाल, मकरसंक्रान्तिसे छः मास । दत्त अन्न-भुक, वृद्धप्रपितामहादि पुत्रपौत्रादि क्रमसे "भानोर्मकरसंक्रान्तेः षण्मासा उत्तरायणम् ।” (सूर्यसिद्धान्त ) अधिकार पाते हैं। उनके अभावमें चतुर्दश पुरुषके "शिशिरय वसन्तोऽपि गौमः स्यादुत्तरायणे ।" (हारौत १।४५०) जातिसम्पर्कीय अधिकारी हैं। उभयकुलमें कोई न उत्तरायण, शिशिर, वसन्त और ग्रीष्म ऋत रहनेसे धनीका उत्तराधिकार गुरु, उसके प्रभावमें | पड़ता है। शिष्य, उसके प्रभावमें सतीर्थ और उसके भी प्रभावमें ! उत्तरायणान्तवृत्त (सं• क्लो०) सूर्यके उत्तरवाली गतिकी Vol III. 54 .
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/२१४
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