पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/२१२

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उत्तरफाल्गुनी-उत्तरवस्ति अण्। हादश नक्षत्र, बारहवां मसकन् कमरौ।। रोंकी एक श्वेणो। ३ खेती करनेवाले धोवियों और (B. Leonis) इसका रूप दक्षिणोत्तर मिलित नाइयों को एक श्रेणी। ४ वङ्गदेशीय हालिक कैवर्ती- पर्यङ्काकति तारकदय होता है। पर्यमा अधिष्ठात्री की एक श्रेणी। ५ मोचियोंको एक श्रेणी। देवता है। उत्तरफला नी नक्षत्र में जन्म लेनेसे मनुष्य उत्तरलक्षण (म० को०) प्रक्वत उत्तरका प्रकाश, दाता, दयालु, सुशील, कीर्तिमान, सुमति, श्रेष्ठ, धौर असली जवाबको झलक। (त्रि.) २ वाम दिक् और अत्यन्त मृदुखभाव होता है। इसके प्रथममें सिंह चिन्हित, बाई ओर निशान रखनेवाला। और उत्तर पादत्रयमें कन्या राशि पड़ता है। उत्तरलोमन् (सं० वि०) जपरो या बाहरी ओर उत्तरफाला नो, उत्तरफल्गुनो देखो। घुमावदार बाल रखनेवाला, जिसके बाल ऊपर या उत्तरभाद्रपद (स• पु०) षडूविंश नक्षत्र, छब्बी- बाहरको घूमे रहें। सवां मसकन् कमरी (a Andromede )। इसका उत्तरवयस (सं० क्लो) जोवनके पश्चाद वर्ष, जिन्द- पर्याय प्रोष्ठपदा और देवता अहिर्बुध्न है। यह | न । य गोके पिछले साल। पर्यवरूप अष्टतारात्मक होता है। इस नक्षत्रमें जन्म उत्तरवली (सं० स्त्री०) दो अध्यायमें विभक्त कठोप- लेनेसे मनुष्य धनी, कुलोन, कार्यकुशल, राजमान्य, | निषटुका द्वितीय भाग। बलवान्, महातेजखौ, सत्कर्मकारी और बन्धभक्त उत्तरवस्ति (सं० पु०) मूत्राशयमें नेह पहुंचानेका निकलता है। (स्त्रो०) टाप। उत्तरभाद्रपदा। सुश्रुतोक्त एक यन्त्र । सुश्रुतने कहा है-यह यन्त्र उत्तरमन्द्र (स.पु.) उच्च :स्वरसे मन्द मन्द गनिको रोगीको चतुर्दश अङ्गलि परिमित दीर्घ, और अग्र रीति, जोरसे धीरे-धीरे गानेका तरीका। यह षड्ज भागमें मालतोपुष्यके वन्त समान तथा क्षुद्र छिद्रयुक्त ग्रामको मूछना है। इसमें सरि ग म प ध नि स्वर होगा। इसमें स्नेहका परिमाण रहेगा। रोगीका क्रमशः पागको बढ़ते जाते हैं। (स्त्रो०) उत्तरमन्द्रा। वयस पचीस वत्सरसे कम ठहरने पर विचारसङ्गत उत्तरमात्र (सं० लो०) केवल उत्तर, सिर्फ स्नेहकी मात्रा रखना चाहिये। स्त्रीके अपत्य पथसे जवाब। चार अङ्गलि अन्तर पर मूत्रनाली लगी है। उसके उत्तरमानस (स. क्लो०) मानसके उत्तरस्थ तीर्थ | मुद्र तुल्य छिद्रका परिमाण दश अङ्ग.लि दोघ है। विशेष। उत्तरवस्ति लगानको अपत्यपथ में चार और मूत्र- "कालोदकं नन्दिकुण्डं तथा चोत्तरमानसम् । नालोमें दो अङ्गल पिचकारी देना चाहिये। पल्प अश्येत्य योजनशतादम्य णहा विप्रमुच्यते ॥” (भारत अनु० २५ अ०) वयस्का कन्याके एक ही अङ्गल यथेष्ट है। ऐसे उत्तरमीमांसा (सं० स्त्री०) उत्तरस्य वेदान्तभागस्य स्थलमै भौरभ वा शूकरका वस्ति व्यवहार्य हैं। उपनिषदुरूपस्य मीमांसा । वेदान्त, वेदके द्वितीय भाग अभावमें पक्षोके गलदेशका चर्म चलता है। वह भी जानकाण्डका विचारमूलक ग्रन्थ, ब्रह्मसूत्र । वेदान्त देखो। न मिलने पर हरिण के पद या अन्य किसी प्रकारका उत्तररहित (सं० त्रि०) उत्तरसे शून्य, ला जवाब, कोमल चर्म बस्ति बनाने में लगता है। प्रथम रोगीको जो जवाब न रखता हो। स्निग्ध और स्वद प्रयोग कर घतटुग्धसह यथाशक्ति उत्तरराद-राढदेशका उत्तरांश। वर्तमान वङ्गाल यवागू पिलाना चाहिये। फिर जानु परिमित स्थान- प्रान्तका वईमान, मुर्शिदावाद और वीरभूम जिला पर पृष्ठ टेक (उपविष्ट भावसे) और वस्ति तथा पूर्वकालमें उत्तरराढ़ नामसे ख्यात था। राढ़ देखो। मूनि देशमें उष्ण तैल लेप मेढ़नलको दृढ़ और ऋज़ उत्तरराढ़ी-उत्तरराढवासी। १ वशन्देशीय कायस्थोंको करे। उसके बाद मेढ़में शलाका द्वारा अन्वेषणकर एक श्रेणी। जो कायस्थ राढ़के उत्तर अंशमें रहे, वेहो छः अङ्गलि परिमाणसे अल्प अल्प चलाये। वस्ति इस नामसे विख्यात हुये। २ चौबीस-परगनेके लोहा- | लगा नल फिर धीरे धीरे निकालना चाहिये। स्रह