उत्तरकुरु जैनोंके अरिष्टनेमिपुराणान्तर्गत हरिवंशमें लिखा है उस स्थानको लांघते शैलोदा नानी नदी मिलती "नौलमन्दरमध्यस्था उत्तरा: फुरवो मताः।" (५.१६६) - है। उसके उभय तौरपर कीचक नामक वेणु है। नील और मन्दर पर्वतके बीच उत्तरकुरु है। सिद्ध उसी वेणु द्वारा नदीके पूर्व और परपार पाते- (विष्णुपुराण ।२१३) अब देखना चाहिये-प्राचीन शास्त्रके ! जाते हैं। उत्तरकुरु उसो नदीके निकट है। वहां अनुसार वर्तमान में किस स्थानपर कितनी दूरतक पुण्यवान् व्यक्ति रहते हैं। उत्तरकुरु निरूपित है। रामायणोक्त शैलोदा नदीका नाम महाभारतमें "ततोऽर्णवं समुत्तीर्य कुरूणाप्य तरान् वयम् । किसी किसी स्थानपर शिला लिखा है। प्राचीन ग्रीकों चणेन समतिक्रान्ता गन्धमादनमेव च ॥” (हरिवंश १७०११३) और रोमकोंने सिलिस् ( Silis ) नामकी एक नदी 'समुद्र के बाद उत्तरकुरु उतर इमने क्षणकालमें लिखी है। उसके साथ महाभारतको शिला नदीका गन्धमादनको भी लांघा था।' उक्त श्लोकसे अनुमान विशेष सादृश्य आता है। आजकल सिलिस नदीको होता है-समुद्रतीरसे गन्धमादन पर्वत पर्यन्त समुदाय जक्षतेश वा सरोकुल कहते हैं। (Ukert Geographie भूखण्ड पूर्वकालमें उत्तरकुरु वा कुरुवर्ष कहाता था। der Griechen und Romer, Vol. iii. 2, p. 238) राजतरङ्गिणीमें लिखा है-काश्मीरराज ललिता- सरोकुल नदी आरल हदमें गिरी है। युरोपीय भूवेत्ता दित्य के काम्बोज, मुःखार, दरद, स्त्रीराज्य प्रभृति कहते हैं-पूर्वकालमें पारल और कास्पियसागर एकत्र जीत लेनेपर उत्तरकुरुवासियोंने भयसे पर्वतप्रदेशका मिले थे। पाश्चात्य पुरातत्त्ववित् ट्राबोके मतसे वर्तमान आश्रय लिया। कास्पियसागर पूर्वकालमें उत्तरमहासागर तक विस्तृत "भूःखारा: शिखर सी यन्तिः सन्त्यज्य वाजिनः । रहा। रामायण में लिखा है-उत्तरकुरुके बाद उत्तर- कुण्डभाव तटुत्कण्ठां निन्युट्टटा हयाननाम् । समुद्र है। चिन्ता न दृष्टा भोट्टानां वक्त्वे प्रकृतिपाखरे। तस्य प्रतापो दरदां न सेहेऽनारतं मधु ॥ "तमतिक्रम्य शैलेन्द्रमुत्तरः पयसान्निधिः।” (किष्किन्धया ४२५४ ) स्त्रौरादेवास्तस्थाने वीक्षा कम्पादिविक्रियाम् । ब्रह्माण्डपुराणके मतमें भी इस स्थानसे उत्तर जर्मि- उत्तराकरवोऽविक्षस्तयाज्जन्मपादपान् ॥” (४।१६७-७५) समाकुल समुद्र है- उक्त श्लोक हारा स्त्रीराज्यके बाद ही उत्तर कुरु "उत्तरानां कुरुणान्तु पावे यत्तदुत्तरः । निर्दिष्ट है। स्त्रीराज्य गन्धमादनसे उत्तरपश्चिम लगता समुद्रः सोर्मिमालोक्य नागासुरनिष विताम् ॥” (५० अ०) है, जिसका वर्तमान स्थान तिब्बतका पश्चिमांश है। ____उक्त प्रमाणसमूह द्वारा स्पष्ट हो समझ पड़ता है- टलेमिने उत्तरकोह ( Ottarokorrha ) नामक पूर्वकालमें उत्तरकुरु कास्पिय-सागरके दक्षिण तोरसे एक जनपदक की बात कही है। वह संस्कृत उत्तर गन्धमादन पर्वतके उत्तरांश तक विस्तृत था। • कुरु शब्दका रूपान्तरमात्र है। उनके मतसे उक्त | . रामायण और महाभारतके मतमें यह स्थान स्थान सेरिका (चीन)का कियदंश है। ( Ptolemy, मणिमय और काञ्चनको बालुकासे सम्पन्न है। स्थान Geog. vi. 16) स्थानमें होरक, वैदूर्य और पद्मरागके तुल्य रमणीय रामायण के किष्किन्धाकाण्डमें लिखा है भूमिखण्ड हैं। यहां कामफलप्रद वृक्ष सकलक " तु देशमतिक्रम्य शैलोदा नाम निचगा। मनोरथ पूर्ण करते हैं। क्षीरी नामक वृक्षसे क्षीर उभयोत्तौरयोस्तस्य कोचका नाम वेणवः ॥ टपकता और फलके गर्भ में वस्त्र तथा आभरण उपजता ते नयन्ति पर तीर सिद्धान् प्रत्यान्यन्ति च । है। यहां पुष्करिणी सकल पझसे शून्य और मनोरम उत्तराः कुरवस्तव कृतपुण्यप्रतिथयाः ॥". ( ४३३३७-३८). है। इसीसे वह सर्वदा सुखस्पर्श रहती है। स्त्री- • भूःखारका वर्तमान नाम बोखारा है। यह तातारराज्यके पुरुष प्रियदर्शन और शुक्लवंशसंभूत हैं। स्त्री अप्सरा- अन्तर्गत है। ... . सदृश देख पड़ती हैं। सब लोग क्षीरी वृक्षका अमृत..
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/२०९
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