उत्त'सिक-उत्तमपुरुष १ कर्णभूषण, बालो, कानका गहना। २ शिरोभषण, इन्हें मार डाला था। प्रियव्रतके पुत्र टतीय मनु। कलंगी। १. छब्बीसवें व्यास। ११ जनपद विशेष। ( भारत भीष्म उत्तंसिक (सं० पु.) नागविशेष । ९०) यह विन्ध्यप्रदेशमें अवस्थित था। पुराणान्तरमें उत्तंसित (सं० त्रि०) १ कर्णभूषणविशिष्ट, बाली उत्तमण और उत्तामार्ण पाठ लक्षित है। १२ अश्व- पहने हुआ। २ शिरोभूषण युक्त, कलंगो लगाये हुआ। विशेष, किसी किस्मका घोड़ा। यह बड़ा वीर होता उत्तराई–१ मन्द्राजप्रान्तके सलेम् जिलेका एक है। युद्ध में उत्तम आघात खाते भी अपने सादिनको ताल्लुक। यह अक्षा० ११.४६ तथा १२° २४ उ० नहीं छोड़ता। (जयदत्त) और ट्राधिक ७८.१५ एवं ७८° ४६ पु०के मध्य प्रव- विशेषणके रूप में समास लगनेपर उत्तम शब्द स्थित है। भूमिका परिमाण ८०० वर्गमौल है। प्रायः संज्ञासे पोछे आता है, जैसे-हिजोत्तम, सर्वोत्तम इसमें कोई ४३६ ग्राम लगते और प्राय ११०००० और नरोत्तम। मनुष्य बसते हैं। हिन्दुवों को ही संख्या सबसे अधिक उत्तमगन्धा (सं० स्त्री०) मल्लिका, चमेली। है। कुछ मुसलमान और ईसाई भी हैं। दक्षिण, उत्तमगन्धाव्य (सं० त्रि०) मधुर-सौरभ-विशिष्ट, मोठी पूर्व और थोड़े बहुत पश्चिम भी पहाड़ खड़े हैं। ख शबूवाला। उत्तरको पोर तिरुपातूर उपत्यका है। भूमि प्रधा- उत्तमता (सं० स्त्री० ) १ श्रेष्ठता, ख बी, बड़ाई। नतः लाल और रेतीली है। । २ साधुशीलता, नेकचलनी, भलाई। २ अपने ताल्ल कका प्रधान नगर। यह दक्षिण- उत्तमताई (हिं०) उत्तमता। पश्चिम मन्द्राजरेलवेके जोलारपेट जड-शन-टेशनसे कोई उत्तमपद (सं० पु०) उच्चस्थान, ऊंचा पोहदा। २४ मील दूर है। उत्तमपालैयम्-मन्द्राजप्रान्तीय मदुरा जिलेके पेरिया- उत्तङ्ग (सं० पु०) महादेवके एक अनुचरका नाम। कुलम् ताल्लुकका एक नगर । यह अक्षा०८४८३." (हिं०) उत्तुङ्ग- देखो। उ० और द्राधि० ७७° २२ २० पू०में चिन्नामनूरसे उत्तट (सं० त्रि०) स्वीय तटको उत्सित करनेवाला, ५ मील दक्षिण अवस्थित है। पहले उत्तमपालैयम् जो अपने किनारेको सोचता हो। मदुराके एक प्राचीन पालैयम् राज्यका प्रधान उत्तप्त (सं० लो०) उत्-तप-क्त। १ शुष्कमांस, सूखा स्थान था। गोश्त। २ सन्ताप, उबाल, गर्मी। (नि.)३ तप्त, उत्तमपुरुष (सं० पु.) १ श्रेष्ठ मनुष्य, अच्छा तपा हुआ, गर्म। ४ सन्तप्त, जो जल गया हो। ५ परि अादमी। २ शाब्दिक गणका उत्तम व्यक्ति, फेलके सत, तरबतर, नहाया-धोया। ६ चिन्तित, फिक्रमन्द । गरदानका आदना सोगा । (First person) उत्तभित (सं० त्रि.) उन्नमित, झुका हुआ। हिन्दीमें 'मैं' शब्द उत्तमपुरुषका द्योतक है। कर्ता उत्तम (सं० त्रि०) उत्-तमप। १ उत्कृष्ट, श्रेष्ठ, कारकमें सकर्मक क्रियाके साथ प्रयोग पड़नेपर 'ने' उमदा,बढ़िया। "उत्तम मध्यम नीच लघु निज निज थल अनुहारि।" आगम होता है। जैसे-मैंने पत्र पढ़ा था। किन्तु (तुलसी) २ अन्त्य, आखिरी। "उत्तमशब्दोऽन्यार्थः।" अकर्मक और वर्तमान तथा भविष्यत कालकी सकर्मक ( सिद्धान्तकौमुदी) ३ प्रधान, खास, सबसे बड़ा। ४ प्रथम, क्रियाक साथ 'ने'का आगमनका निषेध है। जैसे-मैं औवल। (अव्य०) ५ अत्यन्त, निहायत, बहुत । पत्र पढ़ता हूं, मैं पत्र पढ़गा, मैं आता है, मैं आया (पु.) विष्णु। ७ व्याकरणानुसार-अन्त्य पुरुष, था और मैं आऊंगा। 'मैं' का बहुवचन 'हम' है। आखिरी सौगा। युरोपीय इसे आदिपुरुष कहते हैं। 'मैं के साथ वर्तमानकालको क्रियापर 'ईका आगम ८ सुरुचिके गर्भजात उत्तानपादके एक पुत्र। यह | पड़ता है, जैसे-मैं बोलता है। कर्मकारकमें 'मैं' का ध्रुवके सौतेले भाई और प्रियव्रतके भतीजे रहे । कुवेरने । 'मुझे' आदेश हो जाता है, जो अव्यय लगनेसे अपने Vol III. 52
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