उत्कूज-उत्क्रोश उत्कूज (सं० पु०) कोकिलका शब्द, कोयलका उत्कोचक (सं० वि०) उत्कोच-कन्। १ उपायन गाना। दान करनेवाला, जो रिशवत देता हो। २ उपायन उत्कूट (सं० पु.) छत्र, छाता, आफताबी। ग्रहण करनेवाला, रिशवतखोर। (पु.) धीम्या- उस्कूदन (सं.ली.) वलान, उछलकूद। श्रमके निकटस्थ तीर्थविशेष। (भारत पादि १८३१०) उत्कूल (वै०नि०) १पर्वतपर चढ़नेवाला, जो उत्कोठ (सं० पु०) कोठरोगभेद, किसी किस्मका ज'चेपर हो। (अय.) २ पर्वतपर, पहाड़के ऊपर। जुजाम, एक कोढ़। इस रोगमें उदीर्ण पित्त, श्रेषण उत्कूलित (सं० त्रि.) सागर वा नदीके तटपर पानीत, और अनिलके ग्रहसे असम्यक् वमन होता और जो किनारे लगा हो। सकण्ड, रागवान् तथा सानुबन्ध बहु मण्डल पड़ता है। उत्कृति (सं० स्त्री०) २६ अक्षरका छन्दोविशेष। (भावप्रकाश) इसमें चार-पद होते हैं। उत्क्रम (स० पु०) उत-क्रम-अच् । १ व्यतिक्रम, उत्क्रत्त (सं० वि०) उत्-कृत्-न। १ छिन्न, कटा वैपरोत्य, इनहिराफ, भड़काव। २ उपरि वा वहि- हुअा। २ उत्खात, खुदा हुआ। गंमन, ऊपरी या बाहरी चाल। ३ उन्नति, तरक्को। उत्कृत्य (सं० अव्य०) छिन्न करके, काटकर। उत्क्रमण (सं० लो०) उत्-क्रम-ल्याट । १अपसरण, उत्कृत्यमान (सं० त्रि.) छिन्न किया जानवाला, जो उड़ान, निकास। २ वैपरीत्य, इनहिराफ, भटकाव । कट रहा हो। उत्क्रमणीय (सं.वि.) त्यागने. योग्य, जो छोड़ उत्कृष्ट (सं० त्रि०) उत्कृष्-त । १ प्रशस्त, बढ़ा देनेके काबिल हा। हुमा, जो खिंचकर ऊपर या बाहर निकल गया हो। उत्क्रान्त (सं० वि०) उत क्रम-क्त। १ उहत, उभरा २ उत्तम, श्रेष्ठ, उम्दा, बढ़िया। ३ उत्कर्षान्वित हुआ, जो आगे निकल गया हा। २ उल्लवित, लांधा ऊंचे दरजेवाला। ४ कर्षणवत, खिंचा हुआ। हुआ, जो पौछे रह गया हो। ५ सर्वोत्तम, सबसे अच्छा । ६ आकर्षित, खिंचा हुआ। उत्क्रान्ति (सं० स्त्रो०) उत्-क्रम-क्तिन्। उहमन, उत्क्लष्टता (सं० स्त्री० ) श्रेष्ठता, उम्दगी, बड़ाई। उल्लङ्घन, सबकत, उभार, निकास, आगे बढ़ जानेको उत्कृष्टत्व (सं० लो०) उत्कृष्टता देखो। हालत । "प्रियमाग्यस्योतक्रान्तिप्रकार" (मधुसूदनसरस्वती) उत्कष्टभूम (सं० पु०) श्रेष्ठभूमि, बढ़िया जमौन्। उत्क्रान्तिन् (सं० वि०) उगमनकरनेवाला, जो आगे उत्कृष्टवेदन (सं० लो०) श्रेष्ठकुलके साथ विवाह- निकल गया हो। कार्य का समापन, ऊंचे खान्दानवाले आदमीसे शादीका उत्क्राम (स० पु.) १ उगमन, उल्लङ्घन, सबकृत, करना। प्रागे बढ़ जानेको हालत। २ वैपरोत्य, इनहिराफ, उत्कष्टोपाधिता (सं० स्त्री०) प्रवल मायाको स्थिति, उलट-पुलट। . बड़े धोकेको हालत। उत्क्रामत् (सं० वि०) उद्दमनकारो, सबकत ले उतकेन्द्रक शक्ति (सं० स्त्री०) बलविशेष, एक ताकृत। जानवाला, जो आगे बढ़ रहा हो। वेगसे आवर्तमान वस्तु में इसका उद्भव होता है। यह उत्क्रष्ट (सं० वि०) १ उच्चैः स्वरसे कथन करता.' उक्त वस्तु के अंश विशेष अथवा तदुपरिस्थित अन्य हुया, जो ज़ोरसे बोल रहा हो। (लो.)२सगब्द ट्रव्यको केन्द्रसे पृथक् फेंक देती है। उत्केन्द्रकशक्ति कथन, पुरशोर गुफ्तगू, चेंचें। हो चक्रका कर्दम निकाल इधर उधर छिटकाती उत्क्रोद (वै० पु.) परमाबाद, उनास, खुशो। . रहती है। उत्क्रोश (सं० पु.) उत्क्रुश-अच् । १ जलचर उत्कोच (सं० पु०) उत्-कुच सोचे क । उपायन, पक्षिविशेष, एक दरयायो परिन्द। यह मत्स्यघाती रिशवत, स। होता है। इसका मांस रक्लपित्तघ्रा, भोतल, स्निग्ध,
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/२०४
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।